प्रदेश के शिक्षकों के लिए डेथ वारंट है शिक्षा सेवा विधेयक

प्राथमिक ,जूनियर ,माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों के सेवा विवादों के त्वरित न्याय निर्णयन..

प्रदेश के शिक्षकों के लिए डेथ वारंट है शिक्षा सेवा विधेयक

प्राथमिक ,जूनियर ,माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों के सेवा विवादों के त्वरित न्याय निर्णयन के लिए विधानमंडल से पारित शिक्षा सेवा अधिकरण विधेयक पूरी तरह से नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन करता है। वही इस विधेयक को विभिन्न संगठनों ने डेथ वारंट करार दिया है।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिला अध्यक्ष विरेंद्र पटेल, अटेवा के जिला संयोजक अनूप सिंह माध्यमिक शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष डॉ गणेश सिंह पटेल व उपाध्यक्ष जानकी शरण शुक्ल, शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष कामता प्रसाद व जिला मंत्री नवल किशोर गुप्ता ने संयुक्त बयान में कहा है कि शिक्षा सेवा अधिग्रहण बिल को सरकार को वापस लेना पड़ेगा।

यह भी पढ़ें - युद्ध स्तर पर हो रहा है बुंदेलखण्ड एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य, देखिये एक झलक

यह किसी भी प्रकार से त्वरित न्याय नहीं दे सकता है।माध्यमिक शिक्षक (ठकुराई गुट) के संरक्षक केदार वर्मा व मोहम्मद वकार ने संयुक्त बयान में कहा कि विधेयक की धारा 8 में उच्च न्यायालय जाने पर रोक लगाई जा रही है जो सर्वोच्च न्यायालय के अनुच्छेद 32 तथा उच्च न्यायालय के अनुच्छेद 226 के विरुद्ध एवं नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन है।

उच्च शिक्षा में राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1963 के अंतर्गत कुलाधिपति (महामहिम राज्यपाल उत्तर प्रदेश)भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारों से गठित अधिकरण के समस्त पक्ष कार के रूप में होंगे।यह अपने आप में अपमानजनक एवं विडंबना पूर्ण होगा। 

यह भी पढ़ें -  सनी लियोनी का ब्राइडल लुक आया सामने, जानिये किस लिए ब्राइड बनी सनी

शिक्षक मोहम्मद वकार ने कहा कि सेवा संबंधी विवादों के संबंध में बेसिक शिक्षा अधिनियम 1972, उच्च शिक्षा अधिनियम 1973 एवं माध्यमिक शिक्षा अधिनियम 1921, वेतन वितरण अधिनियम 1971, सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 तथा समय-समय पर निर्मित संगत नियमावली वलियों में सेवा विवादों के शीघ्र समुसचित तथा समय बद्ध न्याय प्रदान करने के उपाय एवं प्रावधान विधमान हैं तो फिर से सेवा शिक्षा सेवा अधिकरण विधेयक पूरी तरह से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला होगा। इसके गठन के पीछे सरकार व अधिकारियों की मंशा किसी भी दशा में सही नहीं है।

मौजूदा बिल में अधिकरण का प्रारूप स्पष्ट नहीं है।केंद्र सरकार ने भी कई अधिकरणों को समाप्त करने का निर्णय लिया है। एक और इलाहाबाद हाईकोर्ट में 14 मंडलों के क्षेत्र अधिकार निहित है वही लखनऊ हाई कोर्ट में मात्र 4 मंडलों के क्षेत्राधिकार निहित है ऐसे में अधिवक्ताओं, बीएड धारकों,प्रतियोगी छात्रों को यह सीधे तौर पर भारी नुकसान पहुंचा रहा है।इस संबंध में संघ आगामी 5 मार्च को जिला अधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन प्रेषित करेगा।

यह भी पढ़ें -  उत्तर मध्य रेलवे 100% विद्युतीकरण की दिशा में बढ़ा रहा तेज कदम

What's Your Reaction?

like
0
dislike
0
love
0
funny
0
angry
0
sad
0
wow
0