सागर। बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समर्पित बहुप्रतीक्षित बुंदेलखंड विश्वकोश को अब सागर के हृदयस्थल सिविल लाइन में अपना स्थायी और गौरवशाली कॉर्पोरेट कार्यालय मिल गया है। रविवार को हुए इस ऐतिहासिक लोकार्पण समारोह ने सागर को समूचे बुंदेलखंड के बौद्धिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के केंद्र में बदल दिया। शहर की प्रतिष्ठित समाजसेवी मीना ताई, वृंदावन बाग मठ के पूज्य महंत श्री नरहरि दास जी और अपर कलेक्टर रूपेश उपाध्याय ने संयुक्त रूप से फीता काटकर कार्यालय का उद्घाटन किया, जो एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।
इस गरिमामय आयोजन की मुख्य अतिथि, सागर की लोकप्रिय सांसद श्रीमती लता वानखेड़े ने अपने प्रभावशाली उद्बोधन में कहा, "बुंदेलखंड को अक्सर विकास में पिछड़ा हुआ क्षेत्र माना गया है, परंतु यह विश्वकोश अब हमारे अतीत के वैभव और सांस्कृतिक पूंजी को नए शिखर तक पहुँचाएगा। यह केवल एक कार्यालय नहीं, बल्कि आत्म-गौरव का एक सशक्त स्तंभ है। मैं इसके लिए हरसंभव सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं डॉ. सरोज गुप्ता ने भावुकता से कहा, "यह कार्य उस पीढ़ी की स्मृति में हो रहा है, जिसने सागर को सांस्कृतिक केंद्र बनाया। मीना ताई के नाम पर बना पुस्तकालय उनकी जीवन साधना का सम्मान है।"
वृंदावन बाग मठ की ऐतिहासिक घोषणा: स्थायी कार्यालय हेतु भूमि दान
कार्यक्रम का सबसे अविस्मरणीय क्षण तब आया जब वृंदावन बाग मठ के मठाधीश्वर महंत श्री नरहरि दास जी ने तीसरी मंजिल पर बने कार्यालय की असुविधा को देखते हुए, संस्था को स्थायी भवन हेतु भूमि दान करने की घोषणा की। उनकी इस घोषणा से सभा भावविभोर हो उठी। महंत जी ने उद्घोष किया, "मठ का उद्देश्य ही संस्कृति की सेवा है। यह विश्वकोश हमारी माटी की स्मृति है और इसे संजोने की जिम्मेदारी हमारी है।"
अपर कलेक्टर रूपेश उपाध्याय ने भी अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, "बुंदेलखंड का बेटा होने के नाते मैं चाहता हूँ कि हमारी भाषा और संस्कृति विश्वपटल पर चमके।"
बुंदेलखंड विश्वकोश के सचिव सचिन चतुर्वेदी ने बताया, "यह भवन केवल एक संचालकीय इकाई नहीं, बल्कि एक विचार-आंदोलन की जन्मस्थली होगा। आने वाले वर्षों में यहाँ से इतिहास, साहित्य, भूगोल, परंपरा और लोकजीवन पर गहन शोध होंगे, जो बुंदेलखंड की पुनः परिभाषा करेंगे।"
मीना ताई पुस्तकालय का लोकार्पण और सांस्कृतिक प्रेरणा
इसी ऐतिहासिक पल को और अधिक जीवंत बनाते हुए मीना ताई पुस्तकालय का भी उद्घाटन किया गया। नगर की जनता जिन्हें स्नेहपूर्वक ताई जी कहती रही है, उन समाजसेवी मीना पिंपलापुरे के नाम से स्थापित यह पुस्तकालय आने वाले वर्षों में विद्यार्थियों, शोधार्थियों और पाठकों के लिए एक सशक्त प्रेरणा स्रोत बनेगा।
मीना ताई ने भावुक होकर कहा, "जो मुझे बताया गया था, आज उसे साकार रूप में देखकर संतोष है। मैं चाहती हूँ कि आगामी वर्ष में विश्वकोश के 40 खंड पूरे हों। अब वृद्ध हो चुकी हूँ, वरना इस प्रगति पर मैं भी नाच लेती।"
अशोक त्रिपाठी 'जीतू' जी ने किसी भी संस्था को ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए चार "क" - कार्यालय, कार्यकर्ता, कार्यक्रम और कोष - की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने जनप्रतिनिधियों से ऐसे सार्थक कार्यों में अपनी निधि से उदारतापूर्वक सहयोग करने का आग्रह किया।
पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने सप्रे संग्रहालय के अनुभवों को साझा करते हुए पुस्तकालयों की सुरक्षा पर बल दिया और आज की पत्रकारिता पर व्यंग्य करते हुए पत्रकारिता को "चौथा स्तंभ" मानने की वैधानिक मान्यता को चुनौती दी।
आचार्य प्रभु दयाल मिश्रा ने अपनी पुस्तक 'सौंदर्य लहरी' पुस्तकालय को समर्पित की और भविष्य में हजारों पुस्तकों के दान की बात कही।
डॉ. राजेश शुक्ला ने महंत जी की घोषणा को ऐतिहासिक बताते हुए सांसद से निर्माण के लिए निधि देने की अपील की।
सुरेंद्र सिन्हा “अंजलि” ने पूर्व में दान की गई 5 अलमारियों के अतिरिक्त 4 और अलमारियों का दान करने की घोषणा की।
जीवंत सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और भविष्य की आशा
कार्यक्रम का कुशल संयोजन आशीष द्विवेदी ने किया, जिन्होंने वक्ताओं को कुशलता से जोड़ते हुए सभा को भावविभोर रखा। प्रोफेसर नागेश दुबे ने अपनी उप समिति पुरातत्व के बारे में अभी तक हुए कार्य प्रगति की जानकारी दी और शीघ्र ही कार्य पूरा होने की बात कही।
आयुर्वेदाचार्य डॉ. राजेश शुक्ला ने सांसद लता वानखेड़े से भवन निर्माण हेतु आर्थिक सहयोग की घोषणा करने की अपील की, ताकि बुंदेलखंड विश्वकोश का स्थायी कार्यालय शीघ्र साकार हो सके।
विभिन्न वक्ताओं ने बुंदेलखंड के सांस्कृतिक विमर्श की आवश्यकता, उसके पुनर्पाठ और दस्तावेजीकरण पर जोर देते हुए इस प्रयास को ऐतिहासिक बताया। इस अवसर पर कई लोगों ने पुस्तकालय हेतु पुस्तक दान करने की भी उदारतापूर्वक घोषणा की।
लोक कलाकारों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने वातावरण को जीवंत बना दिया। बुंदेली लोकधुनों से सजी प्रस्तुति ने आयोजन में मिट्टी की सुगंध घोल दी और कार्यक्रम को एक आत्मीय समापन मिला। लोककलाकार रजनी दुबे और उनके दल ने मनोहारी बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसे सभी ने सराहा।
इस ऐतिहासिक अवसर पर लोकगायक शिवरतन यादव सहित डॉ. हरिमोहन गुप्ता, प्रो. जी. एल. दुबे, डॉ. डी. पी. चौबे, मदन मोहन द्विवेदी, कविता शुक्ला, प्रो. अमर कुमार जैन, डॉ. अभय सिंघई, डॉ. अरविंद दीक्षित, सुरेंद्र सिन्हा “अंजलि”, दत्तोपंत गुर्जर, अभिषेक सिंह, निखिल सक्सेना सहित अनेक बुद्धिजीवी और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे, जिन्होंने बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के इस महत्वपूर्ण कदम की सराहना की।