शेरचिरा - महाराजा खेत सिंह
दिल्लीश्वर महाराजा पृथ्वीराज चौहान अपनी युवावास्था में गिरनार के जंगल में शिकार खेलने जाया करते थे। एक बार जब वह आखेट में चक्कर में घूम रहे थे। तभी उनकी नजर एक युवक पर पड़ी जो जंगल के राजा शेर से कुश्ती लड़ रहा था। कभी वनराज उस पर हावी होता, तो कभी युवक शेर को पटखनी लगा देता था। यह जंग काफी देर तक चलती रही और पृथ्वीराज चौहान इस दृश्य को देखकर अवाक रह गए। कुछ ही देर में युवक ने बलशाली शेर को पछाड़ दिया और उसी के ऊपर बैठकर लात घूसेे से प्रहार करके मौत के घाट उतार दिया। जंग समाप्त होने के बाद महाराज पृथ्वीराज उस युवक के करीब पहुंचे और शाबाशी देते हुए कहा - तुम बहादूर हो ! क्या मैं आपका परिचय जान सकता हूँ। वह युवक कहने लगा पहले आप अपना परिचय दीजिये। इस पर पृथ्वीराज ने परिचय देते हुए कहा कि मैं महाराज सोमेश्वर का पुत्र हूँ, पृथ्वीराज चौहान। इस समय दिल्ली का प्रशासक हूँ, इतना सुनते ही युवक नतमस्तक हो गया।
बाद में युवक ने अपना परिचय देते हुए बताया कि मेरे पिता राजा ऊदल जी खंगार जूनागढ़धीश्वर थे, उन्हे यादव वंशी राजाओं ने धोखे से मार डाला और सत्ता छीन ली। हमारा परिवार छिन्न-भिन्न हो गया। अधिकांश लोग जेजाहूति प्रदेश चले गए है। मेरे पिताश्री रूढ़देव खंगार परिवार सहित पास में ही रहते है और मेरा नाम खेता खंगार है। यहाँ शिकार को आया तो वनराज ने हमला कर दिया फिर क्या हुआ यह तो आपने स्वंय देख लिया है। पृथ्वीराज ने महाराज रूढ़देव के दर्शन करने की इच्छा जाहिर की।
दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान और रूढ़देव खंगार के बीच बड़ी आत्मीयता से मुलाकात हुई। तब पृथ्वीराज ने महाराज रूढ़देव से कहा कि आपका बेटा अजय योधा है। मैने इनकी शूरवीरता देखी है। बड़ा प्रभावित हूँ। महाराज देश की हालत वर्तमान में ठीक नही है। भारत भूमि की रक्षा के लिए आपसे ज्येष्ठ पुत्र खेता राजकुमार को मांगता हूँ। महाराज रूढ़देव की आज्ञा मिलते ही पृथ्वीराज राजकुमार खेता को दिल्ली ले आये। पृथ्वीराज चौहान राजकुमार खेता खंगार को उसके दलबल सहित दिल्ली ले गए और हार्षित होकर कहने लगे कि मैं वनराज की खोज में निकला था और मिल गया ‘‘नरराज’’
उधर उस समय अजमेर में उपद्रव हो रहा था। राजस्व वसूली नही हो रही थी। पृथ्वीराज ने खेता सिंह को वहां भेज दिया। खेता सिंह ने अपनी बुद्धि कौशल से वहां शान्ति व्यवस्था कायम कर राजस्व वसूली भी शुरू करा दी। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपनी सैन्य व्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हुए सोलह सामन्तों की रचना की। उसमें राजकुमार खेता खंगार को प्रधान सामन्त बनाया। संयोगिता की हरण में भी राजकुमार खेता खंगार का विशेष सहयोग रहा।
इसी तरह पृथ्वीराज चौहान ने सत्रह बार मोहम्मद गोरी को इसी सामन्त के पराक्रम से खदेड़ कर भगाया था। सन् 1182 ई. में उरई के मैदान में आल्हा ऊदल जैसे जगत प्रसिद्ध बनाफर वीरों का मान मर्दनकर परमार चंदेल पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध में ऊदल मारा गया और आल्हा भाग गया था। पृथ्वीराज चौहान ने विजित प्रदेश का प्रबन्ध सामन्त खेता खंगार ओर पंजुनराय कछवाह को सौंप कर सूबेदारी नियुक्त की। इस बीच चौहान व चंदेलों की लडाई में गौडो ने कुंडार में कब्जा कर लिया जो विजित क्षेत्र का अंग था। इस पर राजकुमार खेता ने उन्हे भी खदेड़ा और झण्डा बुलन्द किया। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमार खेता को कुडार का अधिपति घोषित कर दिया।
राजकुमार खेता ने पहले यहां प्राचीन परकोटे का निर्माण कराया और बारहवी शताब्दी में अति दुर्गम दुर्ग का निर्माण कराया। कुंडार अब गढ़ कुड़ार के नाम से विख्यात हो गया। इसी बीच पंजुनराय कछवाह महोबा राजकुमार खेता की ख्याति से ईष्र्या करने लगे। उन्होने पृथ्वीराज चौहान के भाई कान्हा पाल चौहान से मिलकर खेता खंगार की हत्या करने की योजना बनाई। लेकिन उसमें सफलता नही मिली, तब एक युक्ति ढूढ़ी गयी कि क्यो न शेर से लड़वाकर खेता खंगार को मरवा दिया जाये।
इन्होंने पृथ्वीराज चौहान के सामने प्रस्तव रखा कि आप कहते है कि खेता खंगार ने सोरठ (सौराष्ट) में कुश्ती लड़कर शेर को मारा है ? यदि यह सच है तो एकबार फिर खेता को शेर से लड़वाकर देखा जाये, पृथ्वीराज ने अनुमति दे दी।
योजना के तहत भिण्ड राज्यन्तर्गत भयानक जंगल में एक दर्शक मंच बनाया गया। आसपास के सभी राजे, महाराजे, सामंत सादर आमंत्रित किये गये। नियत समय पर जंगल का हांका किया गया। शेर के निकलते ही खेता खंगार भिड़ गया। जंगली मैदान में बीच एक निहत्था विशालकाय शरीर हष्ट-पुष्ट गढीला पुरूष खेता ने शेर का मुकाबला किया। उसने हमला कर शेर के दोनो पैरो का हाथों से पकड लिया और अपने हाथ से चीर डाला। शेर के मरते ही लोग झूम उठे और चिल्लाने लगे। ‘शेर चिरा-शेर चिरा’ मंच पर तालियां बनजे लगी। पृथ्वीराज चौहान भी झूम उठे, खेता खंगार का जयघोष गूँज उठा। महाराज पृथ्वीराज चौहान ने इस घटना को अविस्मरणीय बनाने के लिए उस जगह एक ग्राम बसाने का ऐलान किया और उसका नाम रखा ‘शेर चिरा’ इस तरह के बहादुर गढ़ कुंडार में खंगार राजवंश के संस्थापक महाराज खेत सिंह खंगार जिनकी जयंती पर 27 दिसम्बर को मध्य प्रदेश सरकार तीन दिवसीय मेले का आयोजन करती है। गढ कुंडार का दुर्ग और उसके भग्नावशेष मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित है।