दनादन महाराज अपनी क्रांतिकारी शैली के लिए बुंदेलखंड में चर्चित थे

बुंदेलखंड में अतीत काल से ही आजादी की रक्षा करने वाले वीर योद्धाओं की शानदार परंपरा रही है। इस गौरवशाली परंपरा को वीरांगना लक्ष्मी बाई के फिरंगियों से आजादी की,,,

दनादन महाराज अपनी क्रांतिकारी शैली के लिए बुंदेलखंड में चर्चित थे

बुंदेलखंड में अतीत काल से ही आजादी की रक्षा करने वाले वीर योद्धाओं की शानदार परंपरा रही है। इस गौरवशाली परंपरा को वीरांगना लक्ष्मी बाई के फिरंगियों से आजादी की रक्षा के लिए अपने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर उसे और अधिक प्रज्वलित और प्रखर बनाए रखा। एक ओर महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह, असहयोग और बहिष्कार के माध्यम से आजादी का संघर्ष लड़ा गया। तो दूसरी और क्रांतिकारियों ने क्रांतिकारी क्रियाकलापों द्वारा बलिदानी परंपरा को बरकरार रखा। बुंदेलखंड के क्रांतिकारी मार्ग पर चलकर स्वराज स्थापना के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाले प्रमुख क्रांतिकारी थे। पंडित परमानंद मास्टर, रूद्रनारायण सिंह, भगवानदास माहौर और सदाशिव राव। इसी प्रकार गांधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह असहयोग और बहिष्कार के माध्यम से आजादी के लिए संघर्ष करने वालों में हमीरपुर के दीवान शत्रुघन सिंह, स्वामी ब्रह्मानंद ,रामगोपाल गुप्त, बांदा के लक्ष्मी नारायण अग्निहोत्री, कैप्टन बद्री प्रसाद, पंडित रुद्रदेव शर्मा, कुंवर हरप्रसाद सिंह, विष्णु करण मेहता, जगन्नाथ करवरिया, कालूराम वैध ,जालौन के चतुर्भुज शर्मा, बेनी माधव तिवारी, कालीचरण निगम, मुन्नालाल खादरधारी थे। इसी श्रेणी के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे पंडित गोपीनाथ दनादन महाराज जी

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पंडित गोपीनाथ दनादन का जन्म 1901 में बांदा में हुआ इनके पिता का नाम पंडित गुलजारीलाल जो एक जमींदार थे इनकी माता राजाबेटी थी जो भक्त प्रवृत्ति की थी सात्विक महिला थी। बालक गोपीनाथ पर माता के धार्मिक विचारों की गहरी छाप थी। वह अपने बाल्यकाल से ही अत्यंत सोम और सरलता प्रारंभ से ही संवेदनशील होने के कारण बाल काल से ही अत्यंत दयालु दूसरों की पीड़ा देखकर उनका हृदय सहज ही करुणा से भर उठता था। सरल और विनम्र होते हुए भी इनमें स्वाभिमान की मात्रा अत्याधिक थी। पराधीनता इन्हें बचपन से ही सालती रही है। गांधीजी से प्रभावित थे। यही कारण है कि जब वे आठवीं कक्षा के विद्यार्थी थे तभी वह कांग्रेस के सदस्य बनकर उसके कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर सक्रिय होकर बिना किसी भय के भाग लेते रहे।

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गांधीजी के चरखा और खादी से भी यह अत्यंत प्रभावित रहे और जब तक जीवित रहे खादी के वस्त्रों का ही प्रयोग करते रहे। गांधीजी के रचनात्मक कार्यों में भाग लेकर हरिजनों के उद्धार उद्धार कार्यों के कार्यों में भाग लेते रहे। जिस समय अंग्रेजों द्वारा दमन चक्र चलाया जा रहा था और देशभक्तों को गिरफ्तार कर उनको यातनाएं दी जा रही थी। उसे समय संकटों की परवाह न कर दनादन महाराज बुंदेलखंड के सुदूर क्षेत्रों में मानस की चौपाइयां तथा देशभक्ति के गीतों के माध्यम से ग्राम व नगर वासियो में राष्ट्रीय भावना व देश प्रेम की ज्योति जगाते रहे। दनादन अपनी क्रांतिकारी शैली के लिए संपूर्ण क्षेत्र में चर्चित थे गांधी जी ने सन 1929 में सारे देश में स्वदेशी प्रचारक तथा विदेशी कपड़ों की होली जलवाई थी। जिसमें उन्हें तीन माह की सजा भुगतान पड़ी 1930 के नमक सत्याग्रह में गिरवा बांदा की जंगलों में नमक कानून में भाग लेने के अपराध में उन्हें 6 माह तक कारागार में रहकर यातनाएं सहनी पड़ी। 

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तपश्चाता भरत छोड़ो आंदोलन में आपने सक्रिय भाग लिया। कलेक्टर केएल मेहता के साथ तकरार हो जाने के कारण आपको बुरी तरह लाठियां से पीटा गया। घायल अवस्था में ही उन्हें जेल भेजा गया। जहां जेल में पहले से बंद गज्जू खान और हल्का लोहार ने आपका उपचार किया। जेल के अंदर सत्याग्रहियों तथा क्रांतिकारियों से जुट बटवाया जाता था तथा आटा चक्की चलवाई जाती थी। इससे इन स्वतंत्रता के दीवानों को घोर अपमान के साथ  भारी शारीरिक कष्ट झेलना पड़ता था। इस कृत्य का विरोध किए जाने पर भी जब सरकार ने इन देशभक्तों से कम लेना बंद नहीं किया तो दनादन महाराज ने हल्का लोहार के सहयोग से जेल के बैरक नंबर 10 में रखा लाखों रुपए मूल्य का जुट जला दिया। परिणाम स्वरुप जेलर सहित अनेक सिपाहियों ने सत्याग्रहों पर लाठी चार्ज किया जिससे बहुत से लोग घायल हो गए, जवाब में क्रांतिकारियों ने पथराव किया जिसमें जेलर भोलानाथ के सिर पर गहरी चोट आई। 

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घायल हो जाने पर जेलर का संतुलन बिगड़ गया और उसने गोली चलाने का आदेश दिया। इतने में कलेक्टर के आ जाने से जेलर का आदेश रद्द कर दिया गया। परंतु दनादन सहित लगभग एक दर्जन सेनानियों के शरीर जंजीरियों से जकड़ दिए गए तथा हाथ पैरों में डंडे डालकर तन्हाई कोठरी में बंद कर दिया गया। तेरह माह तक इन्हें जेल में नजर बंद रहकर घोर यातनाएं सहनी पड़ी। गांधी जी के अनुयाई होते हुए भी दनादन महाराज बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों से भी संबंध बनाए हुए थे। 1927 में अमर शहीद चंद्रशेखर के संपर्क में उस समय आए जब आजाद भूमिगत दिनों में ओरछा के निकट सातार नदी के किनारे घने जंगलों में रह रहे थे। अपने 7 दिनों तक आजाद से शस्त्र प्रशिक्षण लिया। जब आजाद जी बंादा आए तो वह गुप्त रूप से आजाद के साथ सरभंगा आश्रम में रहे। इसके साथ ही 1929 में जब गांधी जी बंदा पधारे तो उनके साथ में कस्तूरबा गांधी, जेपी कृपलानी महादेव देसाई भी थे। तब उनके साथ में बांदा से हमीरपुर तक दनादन महाराज साथ रहे। आजादी के बाद 1952 में आचार्य विनोबा जी के भूदान आंदोलन में विभाग लिया और बांदा से राजापुर तक यात्रा की।


वह सेनानी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रहे। 1992 में देश भ्रमण कर राष्ट्रीय एकता के लिए प्रचार कर सांप्रदायिक सद्भाव का कार्य करते रहे। इनका पूरा जीवन साधनामय ही रहा, यद्यपि उनके रचनात्मक कार्यों और संघर्षमय जीवन को देखते हुए उन्हें श्रीमती इंद्रा गांधी ,चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया।


-डॉ संजय द्विवेदी दनादन

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