पुण्यतिथिःआधुनिक भारत के चाणक्य भारत रत्न नानाजी देशमुख
आधुनिक भारत के चाणक्य कहे जाने वाले नानाजी देशमुख ने आदिवासियों के विकास की भी चिंता की। प्रयोग के रूप में पूर्वी सिंहभूम में काम प्रारंभ करने वाले नानाजी चाहते थे कि ...
आधुनिक भारत के चाणक्य कहे जाने वाले नानाजी देशमुख ने आदिवासियों के विकास की भी चिंता की। प्रयोग के रूप में पूर्वी सिंहभूम में काम प्रारंभ करने वाले नानाजी चाहते थे कि आदिवासियों की परंपरा को बनाए रखते हुए विकास की योजना बनाई जाए। नानाजी देशमुख भारतीय जनसंघ के कद्दावर नेता थे। वह राज्यसभा के सदस्य भी थे। नानाजी देशमुख का पूरा नाम चंडिकादास अमृतराव देशमुख था। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण स्वावलंबन के क्षेत्र में काम किया। उन्हें मरणोपरांत सरकार ने 2019 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया था।
ग्राम कडोली (जिला परभणी, महाराष्ट्र) में 11 अक्तूबर, 1916 (शरद पूर्णिमा) को राजाबाई की गोद में जन्मे चंडिकादास अमृतराव (नानाजी) देशमुख ने भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। छात्र जीवन में निर्धनता के कारण पुस्तक के लिए वे सब्जी बेचकर पैसे जुटाते थे। 1934 में डा. हेडगेवार द्वारा निर्मित और प्रतिज्ञित स्वयंसेवक नानाजी ने 1940 में उनकी चिता के सम्मुख प्रचारक बनने का निर्णय लेकर घर छोड़ दिया।
उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। नानाजी जिस धर्मशाला में रहते थे, वहां हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः एक कांग्रेसी नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के प्रयासों से तीन साल में गोरखपुर जिले में संघ की 250 शाखाएं खुल गई। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में विद्यालय खोलने का प्रस्ताव दिया। फिर 1950 में पहला ’सरस्वती शिशु मन्दिर’ स्थापित किया गया।
1947 में रक्षाबन्धन के शुभ अवसर पर लखनऊ में ‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ की स्थापना हुई, तो नानाजी इसके प्रबन्ध निदेशक बनाये गए। वहां से मासिक राष्ट्रधर्म, साप्ताहिक पांचजन्य तथा दैनिक स्वदेश अखबार निकाले गए। 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगने से प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नानाजी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाले। 2019 नानाजी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1952 में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी को सौंपा गया। 1957 तक प्रदेश के सभी जिलों में जनसंघ का काम पहुँच गया। 1967 में वे जनसंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनकर दिल्ली आ गए। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद 1968 में उन्होंने दिल्ली में ’दीनदयाल शोध संस्थान’ की स्थापना की। विनोबा भावे के ’भूदान यज्ञ’ तथा 1974 में इन्दिरा गांधी के कुशासन के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। पटना में जब पुलिस ने जयप्रकाश नारायण पर लाठी बरसाईं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बांह पर झेल लिया। इससे उनकी बांह टूट गई, पर जयप्रकाश जी बच गए।
नानाजी 1975 में आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के पहले महासचिव थे। 1977 के चुनाव में इन्दिरा गांधी हार गईं और जनता पार्टी की सरकार बनी। नानाजी भी बलरामपुर से सांसद बने। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उन्हें मंत्री बनाना चाहते थे, पर नानाजी ने सत्ता के बदले संगठन को महत्व दिया। अतः उन्हें जनता पार्टी का महामंत्री बनाया गया।
1978 में सक्रिय राजनीति छोड़ दी
1978 में नानाजी ने सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से गोंडा, नागपुर, बीड़ और अहमदाबाद में ग्राम विकास के कार्य किए। 1991 में उन्होंने चित्रकूट में देश का पहला ’ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ स्थापित कर आसपास के 500 गांवों का जन भागीदारी द्वारा सर्वांगीण विकास किया। इसी प्रकार मराठवाड़ा, बिहार आदि में भी कई गांवों का पुननिर्माण किया। 1999 में वे राज्यसभा में मनोनीत किए गए। इस दौरान मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन सेवा प्रकल्पों के लिए ही किया।
देह दान किया
‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित नानाजी ने 27 फरवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने 81वें जन्मदिन पर देहदान का संकल्प पत्र भर दिया था। अतः देहांत के बाद उनका शरीर चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के शोध के लिए दिल्ली के आयुर्विज्ञान संस्थान को दे दिया गया। रवींद्र राय ने कहा कि एक बार उन्होंने बैठक में हंसते हुए कहा कि जो प्रचारक रहना चाहते हो, रहो, नहीं तो घर बसा लो और मेरे पास आ जाओ। मैं नाना हूं और सबका अच्छे से ख्याल रखूंगा।