वीर भूमि में एक दिन बाद राखी बांधने की है अनूठी परंपरा
सन 1182 ईस्वी में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ भुजरियों का विसर्जन करने के लिए कीरत सागर पहुंची...
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महोबा।"बुंदेलों की सुनो कहानी बुंदेलाें की वाणी में, पानीदार यहां का पानी, आग यहां पर पानी में" इन पंक्तियों से वीर भूमि की वीरता की झलक देखने को मिलती है। शोभायात्रा के साथ ऐतिहासिक कजली महोत्सव का आज मंगलवार को शुभारंभ होगा। महोत्सव में चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा, छतरपुर, टीकमगढ़ आदि समेत अन्य जगहों के लोग हिस्सा लेने पहुंचते हैं।
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जनपद मुख्यालय निवासी इतिहासकार डॉ एलसी अनुरागी ने जानकारी देते हुए बताया कि सन 1182 ईस्वी में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ भुजरियों का विसर्जन करने के लिए कीरत सागर पहुंची, तभी महोबा को घेरे बैठे पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडाराय ने हमला बोल दिया। पृथ्वीराज चौहान ने अपने बेटे का विवाह चंद्रावल से करने की शर्त रखी, जिसको राजा परमाल के द्वारा न मानने पर दिल्ली नरेश ने युद्ध का ऐलान कर दिया। तब राजकुमारी चंद्रावल ने युद्ध किया और राजा परमाल के वीर सेनापति आल्हा और ऊदल को पत्र भेजकर मातृभूमि की रक्षा की गुहार लगाई। जिस पर आल्हा-ऊदल ने साधु के भेष में महोबा पहुंचकर दिल्ली नरेश को करारी शिकस्त दी और युद्ध में विजयी होने के बाद बुंदेलों ने कीरत सागर में भुजरियां विसर्जित की। इसके बाद हर वर्ष वीरता की याद में ऐतिहासिक कजली महोत्सव का आयोजन यहां होता है। बुंदेलों की वीरता को देखते हुए कहावत है कि बड़े लड़ाइयां महोबे वाले जिनसे हार गई तलवार।
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महोबा में सावन की पूर्णमासी के दिन दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ था, इसके बाद अगले दिन युद्ध विजयी के बाद यहां की माता-बहनों ने भुजरियां विसर्जन कर अपने भाइयों को राखी बांधी थी। जिसके बाद बुंदेलखंड के महोबा में रक्षाबंधन के अगले दिन राखी बांधने की अनोखी परंपरा चली आ रही है। इसी क्रम में आज ही के दिन से ऐतिहासिक कजली महोत्सव का आगाज होगा, जिसमें भव्य जुलूस में सुंदर-सुंदर झांकियां आकर्षण का केंद्र रहेंगी।
हिन्दुस्थान समाचार
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