बुन्देली किसान हिमांचल वासियों को सिखायेंगे जैविक खेती के गुर

हिमांचल प्रदेश की वादियों में अब बुन्देली किसान जैविक खेती के गुर सिखायेंगे। हिमांचल के कांगडा ज़िले में यह कार्य..

बुन्देली किसान हिमांचल वासियों को सिखायेंगे जैविक खेती के गुर

बांदा,

हिमांचल प्रदेश की वादियों में अब बुन्देली किसान जैविक खेती के गुर सिखायेंगे। हिमांचल के कांगडा ज़िले में यह कार्य 7 अगस्त से लगभग 2 माह तक चलेगा। बतौर पायलट स्टडी प्रारम्भ भी एक दर्जन किसानो को मौका दिया जा रहा है। जिनको लगभग 20000 रूपये की दर से मासिक वेतन भी दिया जायेगा।  किसानों की कोई निर्धारित न्यूनतम योग्यता नहीं है। अलबत्ता जैविक खेती का अनुभव वान्छनीय है। जिन किसानों को बागवानी, मशरूम की खेती, औषधीय पौधों की खेती का अनुभव है उनकी भी खासी मांग  है।

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खाद्य प्रसंस्करण से जुडी बुन्देली महिला किसान  जो अचार , मुरब्बा , पापड़, बडियां , जैम - जैली आदि बनाने में निपुण हैं उन्हें भी कांगड़ा में प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया गया है। इतना ही नहीं बुन्देली किसान हिमांचल प्रदेश के लोगों को ब्यूटीशियन, सिलाई और हेल्थ केयर सेक्टर के जनरल ड्यूटी असिस्टैंट आदि द्वि मासिक प्रशिक्षण भी प्रदान कर सकेंगे।

गौरतलब है कि उपरोक्त किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए कोई शैक्षिक योग्यता निर्धारित नहीं की गयी। अगर कोई बुन्देली किसान उपरियुक्त किसी भी कौशल में दक्ष है तो उसे सीधा मौका दिया जायेगा। कुल मिलाकर 100 कृषकों की आवश्यकता है। अगर इनका  परफोर्मेंस सही रहा तो हिमांचल प्रदेश के सभी 12 ज़िलों में 1500 बुन्देली किसानों को प्रशिक्षण देने को मौका दिया जा सकेगा। 

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बांदा के मूल निवासी और गैर राजनैतिक संगठन अखिल भारतीय बुन्देलखण्ड विकास मंच के राष्ट्रीय महासचिव नसीर अहमद सिद्दीकी के प्रयास से यह कार्यक्रम संभव होने जा रहा है। श्री सिद्दीकी ने हिमांचल के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के दरमियान जब बुन्देली किसानो द्वारा लम्बे अरसे से किये जा रहे सफल प्रयासों का जीवंत उदाहरण दिया तो बरबस ही हिमांचल वासियों ने अनुभवी बुन्देली किसानों को प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया।

शिक्षा और  पत्रकारिता जगत से जुड़े नसीर जी को इस कार्य के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन वे अपनी कोशिश से खुश हैं कि बुन्देली धरा के अशिक्षित किसान अपनी मेहनत का दम्भ समृद्ध कृषि वाले राज्यों के बीच दिखायेंगे। इस कार्य को मूर्त रुप देने के लिए एसेप फाऊंडेशन का विशेष योगदान रहेगा। फाऊंडेशन प्रमुख सत्येन्द्र सिंह के अनुसार यह एक अद्भूत कार्य होगा। जहां बुन्देलखण्ड जैसे पिछड़े क्षेत्र के किसान हिमांचल प्रदेश की वादियों के किसानों को ट्रेनिंग देंगे। किसानों को 2 माह के लिए रहने की व्यवस्था दी जायेगी।

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