बुन्देलखण्ड के सूखे को जाहिद ने दी मात
बुंदेलखंड में जहां किसानों द्वारा सूखा, ओलावृष्टि व अन्य दैवी आपदाओं का हवाला देकर सरकार से मदद मांगी जाती है। वही बुंदेलखंड के जनपद बांदा के अतर्रा कस्बे में एक ऐसा किसान है जिसने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से सूखी धरती में सोना उगाने का काम किया है। जिसके पास एक भी जमीन नहीं थी, आज फसल उगाने के कारण ही वह 26 बीघे का काश्तकार बन गया और सालाना 15 से 20 लाख रूपये फसल उगा कर कमाता है। अतर्रा निवासी इस किसान का नाम जाहिद अली है। जाहिद ने अपनी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही खेती करके अपने आप को समृद्ध बनाया है और अपने साथ कुछ लोगों को रोजगार भी दिया है। वो अपने खेतों में तरह-तरह की सब्जियां उगाते हैं। इसके अलावा गेहूं, धान, मक्का जैसी फसलों को उगा कर अच्छा खासा मुनाफा भी कमाते हैं। जाहिद मेहनतकश किसान हैं, उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं होता कि बुन्देलखण्ड के किसान आखिर क्यों वो नहीं कर पा रहे जिसे उन्होंने कर दिखाया है।
जाहिद के पास एक इंच भी जमीन नहीं थी, पर उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर फैसला किया कि वो किसानी करेंगे और इस बात को गलत साबित करके रहेंगे कि बुन्देलखण्ड की धरती सूखी है, और यहां का किसान केवल आत्महत्या करना जानता है। जाहिद इस बात को भी नहीं मानते कि सूखा पड़ जाने से फसल नहीं होती या ओलावृष्टि हो जाने से किसान बर्बाद हो जाता है। क्योंकि जाहिद को अपनी मेहनत और तकनीक पर भरोसा है, इसीलिए जाहिद ऐसे मिथकों को बरसों से तोड़ते आ रहे हैं। जाहिद अली की उम्र 40 वर्ष है, वो ग्रेजुएट हैं। शिक्षा पूरी करने के बाद जब उन्हें नौकरी नहीं मिली और व्यापार करने के लिए उनके पास पैसा नहीं था। तब उन्हें खेती-किसानी ही व्यापार के रूप में नजर आया। कम पूंजी में ज्यादा लाभ खेती में ही कमाया जा सकता है, ये जाहिद ने कहीं सुना था, पर प्रयोग करने का समय अब आया था। लिहाजा जाहिद अली ने लीज पर जमीन लेकर खेती शुरू की।
कड़ी मेहनत के कारण फसल से अच्छी खासी आमदनी होने लगी इसलिए उन्होंने जमीन खरीदनी भी शुरू कर दी। एक तरफ लीज की जमीन और दूसरी तरफ अपनी जमीन दोनों में खेती करने से उनकी आमदनी बढ़ती ही चली गई। जाहिद कहते हैं कि शिक्षा पूरी करने के बाद जहां उन्हें स्वयं काम की तलाश थी। आज वो स्वयं युवाओं को रोजगार से जोड़ रहे हैं। आज उनके साथ एक सैकड़ा से अधिक लोग काम कर रहे हैं, जिन्हें पूरे साल काम मिलता है। काम इतना है कि वो खाली बैठ नहीं पाते। इसके बदले में उनको मेहनताना भी दिया जाता है जिससे उनके परिवार का भी गुजर बसर हो सके।
बुंदेलखंड की सूखी धरती में सोना उगाने वाले इस युवा किसान को जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिले हैं। जाहिद ने 2003 में प्रति हेक्टेयर 87.86 कुंतल धान की फसल उगाई थी। इसके लिए उन्हें जिला कृषि विभाग ने सबसे पहले पुरस्कृत किया था। 2003 में ही प्रति हेक्टेयर 66 कुंतल गेहूं पैदा करने का भी रिकाॅर्ड उनके पास है। वही 2010 में जाहिद ने प्रति एकड़ 500 कुंतल बैगन भी पैदा किया और 2016 में सागसब्जी और बीज उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। 2017 में भी कृषि में विशेष कार्य हेतु जाहिद अली को नई दिल्ली में कृषि विभाग द्वारा सम्मानित किया गया।
समय समय पर उनके इस कार्य के लिए विभिन्न संगठनों ने न सिर्फ उन्हें सम्मानित किया बल्कि उनका हौसला भी बढ़ाया जिससे उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। अगर आपको अभी तक ये लगता था कि बुन्देलखण्ड में सिर्फ सूखा है, गरीबी है, लाचारी है तो इस मिथक को जितना जल्दी हो सके आप भी तोड़ डालिये। क्योंकि जाहिद अली जैसे किसान इसे बहुत पहले ही तोड़ चुके हैं। साथ ही बुन्देलखण्ड की बेचारगी को बेचकर अपनी जेबें भरने वाले भी इसे जरूर देखें। यहां जाहिद की मेहनत देखिये, उनके हौसले को देखिये तो आप पायेंगे कि मुश्किल कुछ भी नहीं। समस्या पर रोने से अच्छा है कि उठिये।
हिम्मत करके अपने लिए रास्ता तैयार कीजिये। जाहिद कहते हैं कि उन्होंनें जो मेहनत की है उसका ही फल उन्हें मिला है। अब तो जनपद के भीती और अरबई गांव में भी कुछ युवा किसान नई तकनीक से खेती कर रहे हैं और अच्छी खासी आमदनी उठा रहे हैं। जाहिद ने कहा कि इस समय खेती से अच्छा कोई काम नहीं है। वर्तमान समय में जब शेयर धड़ाम पड़े हैं और व्यापार ठप्प है। तो ऐसे में केवल खेती ऐसा माध्यम है जिससे किसान समृद्धशाली बन सकते हैं।