पत्नी का घूंघट न करना पति को तलाक लेने का आधार नहीं देता : हाईकोर्ट

कोर्ट ने क्रूरता के मुद्दे के सम्बंध में इस दावे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि पत्नी स्वतंत्र इच्छाशक्ति वाली रही है, जो बाजार व अन्य स्थानों पर जाती थी और घूंघट (पर्दा) का पालन नहीं करती थी I

Jan 2, 2025 - 21:23
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पत्नी का घूंघट न करना पति को तलाक लेने का आधार नहीं देता : हाईकोर्ट

प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के घूंघट नहीं करने को तलाक का आधार मानने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने पति की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया है कि पत्नी के पर्दा न रखने से उसे मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक लेने का अधिकार मिल सकता है। हालांकि विवाह को खत्म करने की मांग वाली अपील को कोर्ट ने स्वीकार करते हुए किसी प्रकार की एलुमनी राशि का प्रावधान न होने का निर्णय दिया।

कोर्ट ने क्रूरता के मुद्दे के सम्बंध में इस दावे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि पत्नी स्वतंत्र इच्छाशक्ति वाली रही है, जो बाजार व अन्य स्थानों पर जाती थी और घूंघट (पर्दा) का पालन नहीं करती थी।

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने मानसिक क्रूरता और परित्याग के आधार पर दाखिल गाजीपुर निवासी एक पति की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि पत्नी का स्वतंत्र इच्छाशक्ति वाला या ऐसा होना, जो अपने दम पर यात्रा करता है या नागरिक समाज के अन्य सदस्यों से मिलता है, बिना किसी अवैध या अनैतिक संबंध बनाए, इसे क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है। पति का कहना था कि पत्नी द्वारा पर्दा (घूंघट) का पालन न करने से उसे मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक प्राप्त करने का अधिकार है।

खंडपीठ ने कहा कि जहां पत्नी को ऐसे कृत्यों और अन्य कृत्यों का श्रेय दिया गया है, वहां इन्हें क्रूरता के कृत्यों के रूप में स्वीकार करना मुश्किल है और फिर जहां दोनों पक्ष शिक्षित हैं।

खंडपीठ ने पत्नी द्वारा किए गए अपमान के आरोप पर कार्रवाई नहीं करने के पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि पति ने ऐसे कृत्यों का वर्णन समय या घटना के स्थान के विवरण के साथ नहीं किया है, न ही उन्हें साबित किया गया है। जहां तक पत्नी के अनैतिक संबंध के आरोप का संबंध है, पति की ओर से कोई निर्णायक सबूत नहीं दिया जा सका। पत्नी के पंजाबी बाबा के साथ अनैतिक संबंध बनाने के आरोप में कोई अन्य तथ्य साबित करने का प्रयास नहीं किया गया और कोई प्रत्यक्ष या विश्वसनीय साक्ष्य भी नहीं दिया जा सका।

पारिवारिक न्यायालय के समक्ष सिद्ध हुआ था कि पंजाबी बाबा अपीलार्थी की आवासीय कॉलोनी में रहता था और क्षेत्र के निवासियों के विरोध के कारण उसे वहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन यह स्थापित नहीं किया जा सका कि पंजाबी बाबा ने अपीलार्थी की पत्नी के साथ कोई अनैतिक या अन्य संम्बंध बनाए हैं।

(हि.स.)

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