डॉगी जुली का बरहौ संस्कार - बार बालाओं ने लगाये ठुमके, घोड़े नाचे और हजारों ने उडाई दावत
सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर एक कुतिया के बच्चों के बारहौ संस्कार का शानदार आयोजन किया गया..

जुली नाम की कुतिया(डॉगी) ने 5 स्वस्थ बच्चो को दिया जन्म
सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर एक कुतिया के बच्चों के बारहौ संस्कार का शानदार आयोजन किया गया।
किसी शख्स के यहां यदि बच्चा जन्म ले तो खुशियों का इजहार करना स्वाभाविक है।
लेकिन जब कोई बेजुबान (जानवर) बच्चे को जन्म दे और बधाई गीत गाए जाएं, डीजे की धुन पर लोग थिरकें, घोड़ा नाच का आयोजन किया तो यह घटना किसी खबर से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही मामला चित्रकूट में देखने को मिला। यहां परिक्रमा मार्ग स्थित खोही गांव में पालतू डॉगी जूली ने 5 बच्चों को जन्म दिया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
उसने भोज का आयोजन कराया। जिसमें दो हजार लोग शामिल हुए। और इस कार्यक्रम में इंसानी कार्यक्रम के जैसे घोड़े मंगवाये गए और बच्चों के समय जो चगेंलिया निकाली जाती है उसको भी पूरे गांव में घुमाया गया।
क्यों है कुत्तों से ज्यादा लगाव?
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11वीं में पढ़ने वाले छात्र बलराम यादव ने बताया है कि हमारे गांव में कुत्तों के प्रति काफी स्नेह और सम्मान है। किंदवंती है कि एक बार हमारे गांव में अन्न का अकाल पड़ गया, तो कुत्तों ने ही श्रीकामद नाथ से प्रार्थना की, जिससे अन्न का संकट समाप्त हुआ।
इसी को दृष्टिगत रख कर धर्म नगरी चित्रकूट के ग्राम खोही में एक ऐसा आयोजन हुआ है। और आमंत्रण में आये लोगो ने जुली के बच्चों के साथ सेल्फी भी जमकर ली है। कार्यक्रम का पूरा इंतजाम मुस्तफा खां, उमेश पटेल, आर के कुरील (नेता) थे।
आयोजन के लिए बाकायदा निमंत्रण कार्ड भी छपवाए गए थे। डॉगी जूली के मालिक मुस्तफा खां की भावना के अनुरूप बरहौ पर पड़ोसी गांव संग्रामपुर से दौरी-पीड़ा लेकर लोग गांव खोही आए और साथ में बीन-बाजा, बैंड, घोड़ा भी लाए और नचाते गाते खोही गांव पहुँचे लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम और स्वल्पाहार भोजन की व्यवस्था की। सभी ने मिलकर कार्यक्रम का लुत्फ उठाया। तो वही अब इस कार्यक्रम को लेकर भोज के लिए आमंत्रण कार्ड भी छपवाये गए है।
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लॉकडाउन में भी सामने आई थी बेजुबानों के प्रति प्रेम की तस्वीरें
कोरोना काल के दौरान जब सरकार लॉकडाउन लगाया तो यहां श्रीकामद नाथ परिक्रमा छेत्र में बेजुबानों के लिए आसपास के लोगों ने खाने का इंतजामा किया था। इस काम में स्वयं सेवी संस्थाओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था।
बंदरों, गायों, कुत्तों आदि की भूख मिटाने के लिए निरंतर खाने की व्यवस्था की जा रही थी। एक बार फिर यहां बेजुबानों के प्रति इंसानी प्रेम सामने आया है।
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