राज विस चुनाव : राजनीति के शूरमाओं ने तलाशी नई जमीन
कहते हैं कि राजनीति में कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। बदलते वक्त के साथ अपनी दोस्ती...
धौलपुर। कहते हैं कि राजनीति में कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। बदलते वक्त के साथ अपनी दोस्ती और दुश्मनी को भुलाकर लोग अपने हिसाब से संबंधों का निर्वाह करते हैं। धौलपुर में इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए अपनी राजनीतिक दुश्मनी को दरकिनार कर आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीति के शूरमाओं ने भी दल बदल कर अपने लिए नई जमीन तलाश ली है। नई पार्टी के लिहाज से नई जमीन की तलाश पूरी होने के बाद में विधानसभा चुनाव में टिकिट मिलने की आस के साथ ही यह नेता जनता की अदालत में अपनी हाजिरी लगा रहे हैं।
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बदलते वक्त के साथ नई राजनीतिक जमीन तलाशने वाले शूरमाओं की बात करें तो, इनमें सबसे बड़ा नाम धौलपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा का आता है। जिन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग कर कांग्रेस के प्रत्याशी को जिताया। जिसके बाद में भाजपा ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। भाजपा से निष्कासन के बाद शोभारानी कुशवाहा अब कांग्रेसी खेमे में हैं और उन्होंने धौलपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस से टिकट के लिए अपनी दावेदारी पेश की है। धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाहा भाजपा की टिकट पर दो बार विधायक रहीं हैं तथा उनके पति बीएल कुशवाह भी बसपा के टिकट पर धौलपुर से विधायक रह चुके हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी बदलने वाले नेताओं में धौलपुर विधानसभा क्षेत्र से एक दूसरा नाम प्रसिद्ध सर्जन डा. शिवचरण कुशवाहा का है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी शोभारानी कुशवाहा को बतौर कांग्रेस प्रत्याशी टक्कर देने वाले डा. शिवचरण कुशवाहा अब कांग्रेस को बाय-बाय करके भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जयपुर में भाजपाई दिग्गजों के सामने भगवा झंडा थामने वाले डा. कुशवाहा कहते हैं कि कांग्रेस में उनका दम घुट रहा था और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा में आए हैं। इस प्रकार डा. कुशवाहा भाजपा के झंडे और बैनर के तले अपनी नई राजनीतिक पारी के लिए चुनावी पिच पर उतर चुके हैं। धौलपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री अब्दुल सगीर खान वर्तमान में राष्ट्रीय लाेकदल के राष्ट्रीय महामंत्री हैं। खान, भाजपा से नाता तोड़कर पहले कांग्रेस में शामिल हुए। लेकिन धौलपुर के बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते अब उन्होंने कांग्रेस को छोडकर राष्ट्रीय लोकदल का परचम थाम लिया है। खान फिलहाल किंग मेकर की भूमिका में हैं, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वह धौलपुर से राष्ट्रीय लोकदल की टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।
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राजनीतिक दल बदल के तौर पर धौलपुर में पूर्व सभापति रितेश शर्मा भी एक ऐसा ही नाम हैं। वर्तमान में बसपा नेता रितेश शर्मा इससे पूर्व भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडकर धौलपुर नगर परिषद के सभापति रह चुके हैं। बाद में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने बसपा का दामन थामा है और बसपा के साथ विधानसभा की दहलीज चढ़ने की तैयारी में हैं।
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इसके साथ ही राजाखेड़ा से भाजपा कि विधायक रह चुके रविन्द्र सिंह बौहरा भी पहले कांग्रेस में गए, लेकिन अब सिंह और उनके पुत्र विवेक सिंह बोहरा कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इन बड़े नाम के अलावा धौलपुर विधानसभा क्षेत्र में कई ऐसे नाम भी है जो बदलते वक्त के साथ अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलकर दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं और अपने लिए नई जमीन की तलाश कर रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक दल-बदल कोई नई बात नहीं है। लेकिन चुनाव से ठीक पहले अपनी पुरानी पार्टी के प्रति दम घुटने तथा इच्छा शक्ति की कमी के आरोप लगाकर नई पार्टी में शामिल होकर अपनी दावेदारी पेश करने वाले ऐसे नेताओं को जनता जनार्दन कितनी तवज्जो देगी, यह आगे आने वाला वक्त ही बताएगा।
हिन्दुस्थान समाचार
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