हमीरपुर में इकलौते कल्पवृक्ष के अतीत में छिपा है सैकड़ों साल का इतिहास
हमीरपुर शहर में यमुना नदी किनारे इकलौते कल्पवृक्ष को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संवारने की मंशा पर...
सर्दी के मौसम में झरने लगती है पत्तियां
हमीरपुर। हमीरपुर शहर में यमुना नदी किनारे इकलौते कल्पवृक्ष को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संवारने की मंशा पर पानी फिर गया है। कल्पवृक्ष के पास जमीन पर भी दरारें देखी जा रही है। यह बुन्देलखंड का इकलौता कल्पवृक्ष है, जिसके अतीत में सैकड़ों सालों का पुराना इतिहास भी छिपा है। हैरत की बात तो यह है कि कई करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होने के बाद भी यह वृक्ष पर्यटन स्थल के रूप में आज तक नहीं चमकाया जा सका।
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हमीरपुर शहर करीब सात किमी के दायरे में बसा है। यह शहर यमुना और बेतवा नदियों के बीच एक टापू की शक्ल में है जहां हर साल बाढ़ से बड़ा झटका लगता है। यमुना किनारे उत्तर दिशा में एक विशालकाय कल्पवृक्ष है। इस वृक्ष के प्रति पूरे शहर के लोगों के लिए बड़ी आस्था है। समाजसेवी जलीस खान ने बताया कि कई दशक पहले इस वृक्ष की पहचान परिजात वृक्ष के रूप में वन विभाग ने की थी लेकिन बाद में तत्कालीन डीएम जी श्रीनिवास ने जांच कराई तो इसकी पहचान कल्पवृक्ष के रूप में हुई थी। बताया कि ये वृक्ष सदियों पुराना है जो देखने में बड़ा ही रमणीक है।
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जनपद के डीएफओ डाॅ नरेन्द्र सिंह ने बताया कि यहां का कल्पवृक्ष बुन्देलखंड का इकलौता वृक्ष है जो बहुत पुराना है। बताया कि इस वृक्ष की ऊंचाई करीब 40 फीट है, जबकि मोटाई (तना) करीब बीस फीट है। बताया कि शासन के निर्देश पर पुराने और विरासत के वृक्षों की पहचान कर एक सूची बनाई गई थी जिसमें कल्पवृक्ष भी शामिल है। यह सूची शासन को भेजी गई थी। लेकिन शासन से कोई धनराशि न मिलने के कारण कल्पवृक्ष के संरक्षण सम्बन्धी कार्य नही हो सके।
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सर्दी के मौसम में कल्पवृक्ष में झरने लगती है पत्तियां
पौराणिक कल्पवृक्ष सर्दी के मौसम में सूखने लगता है। इसरी पत्तियां भी अब धीरे-धीरे झरने लगी है। 105 वर्षीय विजय कुमारी व कैलाशवती ने बताया कि भयंकर सर्दी में कल्पवृक्ष पूरी तरह से सूख जाता है। लेकिन जैसे ही गर्मी शुरू होती है तो इसमें पत्तियां आने लगती है। बुजुर्ग बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि भीषण गर्मी में यह वृक्ष हरा-भरा रहता है। इसमें बड़े-बड़े फूल भी खिलते हैं जो देखने में बड़े सुन्दर लगते हैं। इसमें फल भी आते हैं। लेकिन फल में बीज नहीं होता है। स्थानीय लोग फूल और फल औषधि के रूप में प्रयोग करने के लिए घर ले जाते हैं। लोग घरों में कल्पवृक्ष की पत्तियों का प्रयोग चाय में करते हैं।
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कल्पवृक्ष के अतीत में छिपा सदियों पुराना इतिहास
पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि पुराणों में कल्पवृक्ष का सुन्दर उल्लेख मिलता है। इन्द्रदेव के उद्यान में कल्पवृक्ष लगा था जिसे सत्यभामा के कहने पर श्रीकृष्ण इस लोक पर लाए थे। यह बड़ा ही दुर्लभ वृक्ष है जिसकी पूजा और परिक्रमा करने मात्र से ही मन को बड़ी शांति मिलती है। आयुर्वेद चिकित्सक डाॅ दिलीप त्रिपाठी ने बताया कि हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को इस वृक्ष के नीचे बैठने मात्र से आराम मिल जाता है। यहां के सतीश तिवारी, लक्ष्मीकांत त्रिपाठी व पंडित सुरेश मिश्रा ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे खोह में एक संत ने कई सालों तक तपस्या की थी। इस वृक्ष की विधि विधान से पूजा करने से मनोकामना भी पूरी होती है।
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करोड़ों रुपये खर्च कर वृक्ष के पास कराई गई पिचिंग
यमुना नदी किनारे स्थित सदियों पुराने कल्पवृक्ष को यमुना नदी की बाढ़ की कटान से बचाने के लिए मौदहा निर्माण खंड हमीरपुर ने कई साल पहले दस करोड़ रुपये की लागत से कार्य कराए थे। तटबंध में मिट्टी डलवाकर उसमें बोल्डर पत्थर लगाए गए है। और तो और कच्चे तटबंध को पक्का कराकर इंटरलाकिंग भी कराई गई है। फिर भी कल्पवृक्ष के पास जमीन में गहरी दरारें आ गई है। मौदहा बांध निर्माण खंड ने ए. ए., सी.सी.बंध जोड़ने की 6.40 करोड़ परियोजना तैयार की थी जिसके सभी कार्य कराए गए है। साथ ही शमशान घाट के पास पुल भी बनाया गया है। करोड़ों खर्च के बाद भी पौराणिक कल्पवृक्ष स्थल का अभी विकास भी नहीं हो सका।
हिन्दुस्थान समाचार