प्रभु श्रीराम की दूसरी अयोध्या 'ओरछाधाम' में 'योगेश्वर श्रीकृष्ण' करने आते थे 'रासलीला'

हम अकल्पनीय रोमांच से भरी बुन्देलखण्ड की दूसरी अयोध्या के सफर पर हैं जो किसी ख्वाब से कम नहीं है। भगवान श्रीराम की ऐसी नगरी जो मायानगरी से कम नहीं है...

प्रभु श्रीराम की दूसरी अयोध्या 'ओरछाधाम' में 'योगेश्वर श्रीकृष्ण' करने आते थे 'रासलीला'

@ महेश पटैरिया, झांसी

  • लीलाधारी श्रीकृष्ण के अनन्य उपाशक थे महाराज मधुकर शाह, महारानी थी श्रीरामभक्त
  • राजा श्रीराम को चारों प्रहर दिया जाता है गाॅर्ड ऑफ ऑनर, रात को प्रभु पहुंच जाते हैं अयोध्या धाम
  • असली प्रतिमाएं ओरछा में हैं या रामजन्म भूमि में?

मप्र के निवाड़ी जिले के कस्बे ओरछाधाम जहां आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम राजा के रुप में विराजमान हैं। यहां उन्हें मप्र सरकार सुबह से शाम तक चारों प्रहर गार्ड ऑफ ऑनर देती है।

मान्यता है कि दिन के वक्त त्रिभुवनपति प्रभु श्रीराम ओरछा में निवास करते हैं तो रात्रि विश्राम हेतु अयोध्या धाम चले जाते हैं। इसीलिए ओरछाधाम को दूसरी अयोध्या या बुन्देलखण्ड की अयोध्या भी कहा जाता है। लेकिन यह तथ्य कम लोग ही जानते हैं कि भगवान राम की दूसरी अयोध्या ओरछाधाम में योगेश्वर कृष्ण अपने परम भक्त राजा मधुकर शाह पर कृपा बरसाते हुए अक्सर रासलीला करने चले आते थे। पत्थरों को चीरकर कलकल करती बेतवा नदी यहां के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है। यहां के महल स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। भक्ति और कला का संगम समेटे ओरछाधाम में विश्व के विभिन्न देशों के पर्यटक यहां की प्रकृति के आगे समर्पण कर देते हैं। लाॅकडाउन के कारण राजा राम का मंदिर अभी बंद है। मार्च तक यहां भारी संख्या में पर्यटक आते थे।

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उप्र बुन्देलखण्ड की हृदयस्थली वीरांगना भूमि झांसी से 18 किमी दूरी पर स्थित मप्र के जिला निवाड़ी की भगवान राम की नगरी ओरछा विश्वविख्यात है। इतिहासविदों की मानें तो सोलहवीं सदी में यहां के शासक मधुकरशाह हुआ करते थे। वह अपनी पत्नि कुंवरिगनेश जो साक्षात मां लक्ष्मी थीं, से बेपनाह मोहब्बत करते थे। उस सदी में यहां भगवान जुगलकिशोर का प्राचीन मंदिर था। जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जा रही थी शाह को लगा रासलीला में वृंदावन बिहारीलाल साक्षात उन्हें दर्शन देकर गए हैं। मधुकरशाह श्रीविग्रह में व्याकुल हो गए। उन्होंने वृंदावन जाने का फैसला कर लिया। अपनी पत्नी से सारी बात बताकर उन्हें भी चलने के लिए कहा। मगर वह प्रभु श्रीराम की उपासक थीं। उन्होंने अयोध्याधाम जाने की इच्छा जाहिर की। इस पर राजा तैश में आ गए। राजा मधुकर शाह बोले कि मेरे बिहारी जी मेरे साथ आकर रास करते हैं। अपने राम को ओरछा लाकर बताओ तब आपकी दृढ़ भक्ति साधना मानी जाएगी।

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रानी भी भक्त थीं, इस बात ने उन्हें झकझोर दिया। वह अधोध्या जा पहुंची। वहां सरयू किनारे कठोर तप करने लगीं। लेकिन कई दिन बीतने पर भी भगवान नहीं आए। इस पर महारानी क्षुब्ध हो गईं। उन्हें ओरछा लौटने से बेहतर आत्महत्या लगी। उन्होंने सरयू में छलांग लगाकर आत्महत्या करनी चाही। जैसे ही वह नदी में कूंदी। नदी की गहराई में श्रीराम जी ने पहुंचकर उन्हें बचाया और वर मांगने को कहा। रानी ने उन्हें ओरछा चलने का आमंत्रण दे दिया। भगवान कुछ शर्तों के साथ मान गए। पहली शर्त उनकी यही थी कि वह यहां राजा होंगें, दूसरी वह जहां विराजमान हो जाएंगे, वहां से नहीं हटेंगे और तीसरी यह कि वह पुष्य नक्षत्र में ही चलेंगे। इन शर्तों के साथ महारानी भगवान को साथ लेकर अयोध्या चल दीं।

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...और रसोईघर बन गया राजाराम का दरबार

वरिष्ठ पत्रकार जगदीश तिवारी बताते हैं कि ओरछा में रानी ने आकर राजा मधुकरशाह को भगवद साक्षात्कार की बात कही। रात को पहुंची रानी ने मूर्ति में तब्दील हुए श्रीराम दरबार को अपने महल के रसोईघर में रख दिया। उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया गया था। लेकिन शर्त के अनुसार लाख जतन के बाद भी प्रभु श्रीराम भगवान महल से जाने के लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद राजा ने अपने लिए दूसरे महल का निर्माण कराया था। जबकि चतुर्भुज मंदिर में अब भगवान कृष्ण विराजमान हैं।

प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री किसी का प्रोटोकाॅल भी नहीं होता लागू

मंदिर के पूर्व पुजारी पं.राकेश अयाची जी बताते हैं कि प्रभु श्रीराम को राजा के रूप में दिन में पांच बार गार्ड आफ ऑनर दिया जाता है। सूर्योदय से सूर्यास्त के बाद तक पांच बार मप्र पुलिस के द्वारा सशस्त्र सलामी दी जाती है। मंदिर में राजाराम के साथ मैया सीता लक्ष्मण जी सुग्रीव महाराज, नरसिंह जी, हनुमान जी, जामवान जी और मां दुर्गा जी राम दरबार में उपस्थित हैं। दोपहर 12 बजे से 12:30 तक राजभोग लगाया जाता है। रात्रि 10 से 10:30 तक ब्यारू होती है। ब्यारू का अर्थ रात्रि भोजन है। राजा के इस दरबार में शाही परंपरा के अनुसार भक्तों को प्रसाद के रूप में पान और इत्र की काड़ी दी जाती है। देश का पीएम हो या किसी राज्य का सीएम उनका प्रोटोकाॅल यहां लागू नहीं होता। यहां किसी को भी गार्ड आफ ऑनर नहीं दिया जाता है।  

अयोध्या की तरह राजा श्रीराम के मनाए जाते हैं सारे उत्सव

आचार्य वीरेन्द्र बिदुआ बताते हैं कि यहां अयोध्या की तरह ही भगवान राजा श्रीराम का हर उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। अयोध्या की तरह ही यहां पर कनक भवन है। सरयू की तरह यहां बेतवा है, जिसकी सुंदरता शब्दों में बखान नहीं की जा सकती है। श्री राम विवाह में यहां हजारों लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है और पूरे शाही अन्दाज में राजा श्रीराम का विवाह कार्यक्रम सम्पन्न होता है।

कुछ ही महीने हुए यहां नमस्ते ओरछा का सरकारी आयोजन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय मेहमान भी आए। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना था। दुर्भाग्य कि उनके प्रोटोकाॅल में राजाराम के दरबार का कार्यक्रम तक नहीं था। इसके बाद सरकार अस्थिर होने के कारण वह यहां नहीं आ सके थे।

कथाओं में सुना है ओरछाधाम में श्रीकृष्ण की रासलीला करने का प्रसंग

भगवान श्रीरामराजा सरकार के अनन्य भक्त पुष्पेन्द्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने महाराज मधुकर शाह के महारानी को बताई बात का प्रसंग कई बार कथा में सुना है। उन्होंने बताया कि स्वामी राजेन्द्रदास जी महाराज ने कृष्ण द्वारा ओरछाधाम में रासलीला करने का कई बार जिक्र किया है। साथ ही महाराजा मधुकर शाह को पन्ना में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होना बताया जाता है। उसके बाद ही उन्होंने वहां पन्ना के जुगलकिशोल जी का मंदिर बनवाया था।

पाताली हनुमान जी लेकर जाते हैं अयोध्या

ऐसी मान्यता है कि ओरछाधाम में बिराजे रामराजा सरकार के दो निवास हैं। दिन में वह ओरछा में निवास करते हैं और रात होते ही ब्यारु करने के बाद हनुमान जी उन्हें लेकर अयोध्या चले जाते हैं। रामराजा सरकार के मंदिर के सामने दरवाजे के बाहर स्थित पाताली हनुमान जी को उनकी ब्यारु और आरती के बाद मंदिर से पुजारी आरती व ब्यारु कराने भी जाते हैं। उसके बाद प्रभु श्रीराम का अयोध्या के लिए प्रस्थान हो जाता है। और सुबह से फिर वही लीला शुरु होती है।

यह भी है किवदन्ति

बताया यह भी जाता है कि अयोध्या में मुस्लिम शासक प्रभु श्रीराम की प्रतिमाएं खंडित करना चाहते थे। इसको लेकर महाराज मधुकर शाह व महारानी के बीच यह तय हुआ था कि वे उन प्रतिमाओं को लेकर यहां आ जाएं। इसके लिए महारानी को चुना गया था। महारानी को संतों की टोली के साथ वहां भेजा गया। उन्हें वह प्रतिमाएं सरयू नदी की रेत में मिलीं जिन्हें लेकर वह यहां आ गईं। यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि असली प्रतिमाएं ओरछा में हैं या रामजन्म भूमि में।

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(हिन्दुस्थान समाचार)

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