अस्तित्व खो रहा बुन्देलखण्ड का कोणार्क मंदिर,देखे यहाँ
इतिहास के पन्नों में कई अहम घटनाएं समेटे महोबा का सूर्य मंदिर कई सदियों का.....
इतिहास के पन्नों में कई अहम घटनाएं समेटे महोबा का सूर्य मंदिर कई सदियों का साक्षी है। कोणार्क के सूर्य मंदिर की तरह बने इस मंदिर को देखने की चाहत अब भी बड़ी संख्या लोगों को महोबा खींच लाती है। लेकिन, चंदेल शासन काल की गवाही देता यह सूर्य मंदिर धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
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मंदिर का काफी हिस्सा गिर चुका है। पुरातत्व विभाग ने कुछ माह पूर्व निर्माण जरूर कराया, लेकिन यह नाकाफी है। यहां आने के लिए रास्ता भी बेहाल है। कहा जाता है कि, 12वीं सदी में ही इस मंदिर के स्वरूप पर सबसे पहला वार कुतुबुद्दीन एबक ने किया और धन की लालसा से इसका कुछ हिस्सा गिरा दिया था।
मंदिर के अवशेष रहेलिया सागर तट तालाब के किनारे दूर तक फैले हैं। मंदिर के निकले पत्थर तक नहीं सहेजे जा सके। इसके संरक्षण के लिए अब तक योजना तक नहीं बनी। पुरातत्व विभाग के अवर संरक्षण सहायक सचिन कौशिक के मुताबिक फिलहाल सूर्य मंदिर के कायाकल्प करने के शासन से कोई दिशा निर्देश नहीं है।
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महोबा से दक्षिण में करीब डेढ़ किमी दूर इस सूर्य मंदिर का निर्माण 850वीं सदी में राजा राहुल देव बर्मन ने कराया था। रहेलिया गांव के बीच में रहेलिया सागर तट पर बने इस मंदिर की हालत अब लगातार जीर्णशीर्ण होती जा रही है। मंदिर में शिलाओं पर कई आकृतियां भी बनी हैं और लिखावट है।
अंदर बनी सूर्य की आकृति
सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार का भी हिस्सा काफी हद तक गिर चुका है। अंदर जाने के लिए तीन द्वार हैं। मंदिर के अंदर जाने पर सूर्य की आकृति नजर आती है। दीवारों पर भी कई आकृतियां बनी हुई हैं।
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मंदिर के पास बना सूर्य कुंड
सूर्य मंदिर से करीब सौ मीटर पहले सूर्य कुंड बना हुआ है। इसमें तीस फीट गहरा पानी भरा है। कुंड का पानी कभी नहीं सूखता। लोग यहां स्नान भी करते हैं। कुंड में नीचे तक सीढि़यां बनी हैं। परिसर में काली जी का प्राचीन मंदिर भी है।
बदहाल हो रही चंदेल नगरी की विरासत
पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते पुरातात्विक धरोहरें खंडहर होती जा रही हैं। इनका कोई पुरसाहाल नहीं है। इससे प्राचीन मंदिर दिन प्रतिदिन अपना वजूद खोते जा रहे हैं। पुरातात्विक धरोहरों का धनी महोबा पुरासंपदा के मामले में कंगाली की ओर बढ़ रहा है।
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पुरातात्विक धरोहराें के संरक्षण को जिले में पुरातत्व विभाग का कार्यालय खोला गया है, लेकिन यहां तैनात अधिकारियाें और कर्मचारियाें को नष्ट हो रहीं प्राचीन धरोहराें की परवाह नहीं है। महकमे के कर्मचारी सिर्फ पुरातात्विक स्थल से 300 मीटर दूरी पर हो रहे निर्माणाें पर रोक लगाने के काम में लगे रहते हैं। बावजूद इसके कुछ दिनाें बाद उन स्थलाें पर निर्माण भी हो जाता है और पुरातत्व विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है।
उपेक्षा के बाद भी आकर्षण का केंद्र सूर्य मंदिर- देश विदेश में प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी महोबा में रहेलिया के पास सूर्य उपासना के लिए सूरज कुंड और सूर्य मंदिर का निर्माण पांचवें चंदेल शासक राहिलदेव वर्मन ने अपने शासनकाल में 890 ईवी में कराया था। इसके चाराें ओर पत्थराें के घाटाें से अलंकृत एक कुंड तथा किनारे पर भगवान सूर्य का मंदिर है।
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इतिहासकाराें का कहना है कि यहां पर छह सूर्य मंदिराें का समूह था। परंतु गयासुद्दीन तुगलक, कुतुबुद्दीन एबक एवं उसके पूर्व के आक्रमणकारियाें के आक्रमणाें के कारण कई मंदिर नष्ट हो गये थे, लेकिन राहिल सागर के तट पर स्थित यह सूर्य मंदिर आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
चंदेल कालीन बारादरी का नहीं ध्यान- चंदेल राजाओ ने सुरक्षा की दृष्टि से शहर के चाराें तरफ सुरक्षा चौकी (बारादरी) का पहाड़ियों और ऊंचे स्थानाें पर निर्माण कराया था। जहां पर सुरक्षा बल तैनात रहता था, जो बाहर से आने जाने वाले लोगाें पर कड़ी नजर रखता था। इतना ही नहीं संदिग्ध लोगाें के बारे में राजा को तत्काल खबर दी जाती थी।
बारादरी में राजा समय-समय पर सिपहसालार, सेनापति और मंत्रियाें के साथ बैठक भी करते थे, लेकिन पुरातत्व विभाग के अधिकारियाें की खंडहर हो रही बारादरी पर नजर नहीं जा रही है। यही वजह है कि पुरातात्विक धरोहर बारादरी भी धीरे-धीरे जमींदोज होती जा रही है।
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फीकी हो गई ड्योढ़ी दरवाजे की सुंदरता- बुंदेलखंड का कश्मीर कहे जाने वाले चरखारी में 18वीं शताब्दी में बनवाई गई पुरातात्विक धरोहर ड्योढ़ी दरवाजा आज भी आकर्षण का केंद्र है। ड्योढ़ी दरवाजे की खूबसूरती को देखने को दूरदराज से लोग गोवर्धन नाथ जू मेले में पहुंचते हैं।
दरवाजे की दीवाराें पर बेजोड़ नक्काशी देशी विदेशी पर्यटकाें को आज भी अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इसकी सुंदरता को क्षति पहुंचाने में पुलिस भी कम जिम्मेदार नहीं है। दरवाजे के कलश पर लगे बांदा से लड़ाई में जीतकर लाए गये कलश चोराें ने एक-एक कर चोरी कर लिए। इससे इसकी सुंदरता अब फीकी हो गई है।
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पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते पुरातात्विक धरोहरें खंडहर होती जा रही हैं। इनका कोई पुरसाहाल नहीं है। इससे प्राचीन मंदिर दिन प्रतिदिन अपना वजूद खोते जा रहे हैं। पुरातात्विक धरोहरों का धनी महोबा पुरासंपदा के मामले में कंगाली की ओर बढ़ रहा है। पुरातात्विक धरोहराें के संरक्षण को जिले में पुरातत्व विभाग का कार्यालय खोला गया है, लेकिन यहां तैनात अधिकारियाें और कर्मचारियाें को नष्ट हो रहीं प्राचीन धरोहराें की परवाह नहीं है।
महकमे के कर्मचारी सिर्फ पुरातात्विक स्थल से 300 मीटर दूरी पर हो रहे निर्माणाें पर रोक लगाने के काम में लगे रहते हैं। बावजूद इसके कुछ दिनाें बाद उन स्थलाें पर निर्माण भी हो जाता है और पुरातत्व विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है।
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उपेक्षा के बाद भी आकर्षण का केंद्र सूर्य मंदिर- देश विदेश में प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी महोबा में रहेलिया के पास सूर्य उपासना के लिए सूरज कुंड और सूर्य मंदिर का निर्माण पांचवें चंदेल शासक राहिलदेव वर्मन ने अपने शासनकाल में 890 ईस्वी में कराया था। इसके चाराें ओर पत्थराें के घाटाें से अलंकृत एक कुंड तथा किनारे पर भगवान सूर्य का मंदिर है।
इतिहासकाराें का कहना है कि यहां पर छह सूर्य मंदिराें का समूह था। परंतु गयासुद्दीन तुगलक, कुतुबुद्दीन एबक एवं उसके पूर्व के आक्रमणकारियाें के आक्रमणाें के कारण कई मंदिर नष्ट हो गये थे, लेकिन राहिल सागर के तट पर स्थित यह सूर्य मंदिर आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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अस्तित्व खोता जा रहा खकरामठ मंदिर- सन् 1182 में चंदेल शासक मदन वर्मन ने मदन सागर सरोवर के बीचाेंबीच खजुराहो के मंदिराें की तर्ज पर त्रिभुजाकार शैली में खकरामठ मंदिर का निर्माण कराया था। ग्रेनाइट पत्थर पर महीन कारगरी के साथ निर्मित किए गये इस मंदिर की कलात्मकता देखते बनती है।
मध्य युगीन वास्तुशिल्प की बेमिसाल धरोहर खकरामठ पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते अपना अस्तित्व खो रहा है। सरोवर के मध्य बने इस मंदिर को आज भी विदेशी पर्यटक देखने जाते हैं।
चंदेल कालीन बारादरी का नहीं ध्यान- चंदेल राजाओ ने सुरक्षा की दृष्टि से शहर के चाराें तरफ सुरक्षा चौकी (बारादरी) का पहाड़ियों और ऊंचे स्थानाें पर निर्माण कराया था। जहां पर सुरक्षा बल तैनात रहता था, जो बाहर से आने जाने वाले लोगाें पर कड़ी नजर रखता था। इतना ही नहीं संदिग्ध लोगाें के बारे में राजा को तत्काल खबर दी जाती थी। बारादरी में राजा समय-समय पर सिपहसालार, सेनापति और मंत्रियाें के साथ बैठक भी करते थे, लेकिन पुरातत्व विभाग के अधिकारियाें की खंडहर हो रही बारादरी पर नजर नहीं जा रही ।