बुन्देलखण्ड का नाम कैसे पड़ा ?

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में है। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भू-भाग व मध्य प्रदेश के उत्तरी भू-भाग को मिलाकर बुन्देलखण्ड की रचना हुई है..

बुन्देलखण्ड का नाम कैसे पड़ा ?
बुंदेलखंड का नक्शा / Bundelkhand Map

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में है। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भू-भाग व मध्य प्रदेश के उत्तरी भू-भाग को मिलाकर बुन्देलखण्ड की रचना हुई है। बुन्देलखण्ड, विधेलखण्ड का अपभ्रंश है। विध्येलखण्ड, विंध्यभूमि विंध्याचल पर्वत अंचलीय क्षेत्र को कहा जाता था, 'विंध्य' और 'इला' से बना 'विंध्येला' अर्थात विंध्याचल पर्वत और उसकी श्रेणियों वाली भूमि अर्थात विंध्याचल पर्वत के आसपास वाली समग्र भूमि का नाम 'विंध्येला' था जो कालान्तर में क्रमशः 'विंध्येलखण्ड' व 'बुन्देलखण्ड' कहलाया।

भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद बुन्देलखण्ड में जो एकता और समरसता है, उसके कारण यह क्षेत्र अपने आप में सबसे अनूठा जान पड़ता है। अनेक शासकों और वंशों के शासन का इतिहास होने के बावजूद भी बुन्देलखण्ड की अपनी समृद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान को नकारा नहीं जा सकता। बुन्देली माटी की खुशबू ही कुछ ऐसी है कि यहां जन्मी अनेक वीर विभूतियों ने न केवल अपना बल्कि इस धन्य धरा का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित कर दिया। आल्हा-ऊदल, रानी लक्ष्मी बाई, महाराजा छत्रसाल, झलकारी बाई, रानी दुर्गावती आदि विभूतियां इसी क्षेत्र से सम्बद्ध रही हैं।

बुन्देली साहित्य व सस्ंकृति को नष्ट करने के लिये आक्रमणकारियों ने अनेकों बार बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किये, किन्तु वीर बुन्देलों ने अपने प्राणों की बलि देकर अपने धर्म, संस्कृति और रीति-रिवाजों की रक्षा की। भारत माता का हृदय स्थल विन्ध्यान्चल की शैल मालाओं से सुशोभित चंबल सिंध, धसान व बेतवा की पावन धाराओं से सिंचित महुआ, आम, जामुन, तेंदू, बसूर, कटीक आही के वनों से आच्छादित यह भू-भाग इतिहास के पन्नों में चंदेल, बुन्देला और खंगार राजाओं से शासित अपनी गरिमा का बखान करता हुआ पुलिन्द, दष, कुन्ति, खतपद, दर्शाण, जंजाउ युदि, जुझोति, विन्ध्येल खण्ड आदि नामों से जाना जाता था।

तब के उस भू वृत्त की आज कोई राजनीतिक सीमा तो नही है परन्तु प्राचीन काल से लेकर आज तक यह भूमि अपने को एक इकाई के रूप में दृष्टव्य किये हुए है। समय-समय पर अनेकों शासकों ने इस भू-भाग पर राज्य स्थापित कर अपनी छाप छोड़ी है, कभी गुप्त साम्राज्य तो कभी वाकाटक, नागवंशी, प्रतिहार, चन्देल, खंगार, बुन्देला आदि। इस प्रकार ऐतिहासिक घटनाओं के उत्थान पतन से ओतप्रोत बुन्देलखण्ड अपनी आलोकित छटा लिये आज भी कायम है। यहां पर चन्देलों व बुन्देलों की पीढ़ियों ने शासन करके इसको समृद्धि, सम्पत्ति और गरिमा प्रदान की है।

एक बुन्देली कवि ने बुन्देलखण्ड का कुछ इस प्रकार बखान किया है –

खजुराहो, देवगढ़ का दुनिया भर में बखान।
पत्थर की मूर्तियों को मानों मिल गये प्रान।।
चन्देरी, ग्वालियर की ऐतिहासिक कीर्ति-छटा।
तीर्थ अमरकंटक, चित्रकूट, बालाजी महान।।
सोनागिरि, पावा गिरि, पपौरा के धर्म स्थल।
अपने धर्म-संस्कृति पर हमको भारी घमंड।।
।। जय-जय भारत अखण्ड, जय बुन्देलखण्ड।।

बुन्देला शब्द की उत्पत्ति

पुरातन काल से बुन्देलखण्ड अब तक अनेक शासकों के अधीन रहा। इसी कारण इसके नामों में परिवर्तन होता रहा। पौराणिक काल में इसेे 'चेदि' जनपद के नाम से उल्लेखित किया गया तो कभी इसे दस नदियों वाला प्रदेश होने के कारण 'दशार्ण' प्रदेश भी कहा गया। विंध्य पर्वत श्रेणियों के होने के कारण इसे 'विंध्य भूमि' भी कहा जाने लगा। चंदेली शासन के दौरान यह क्षेत्र 'जुझौति' के नाम से जाना जाता रहा।

किन्तु गहरवार शासक हेमकरन ने जब विंध्यवासिनी देवी की आराधना की तथा हेमकरन ने देवी को पांच नरबलियां दीं तभी उसका नाम 'पंचम सिंह' पड़ा। बाद में विंध्यवासिनी देवी की भक्ति में लीन होकर उसने अपने नाम के बाद 'विन्ध्येला' शब्द जोड़ लिया। कालांतर में यही विंध्येला शब्द 'बुन्देला' के रूप में परिवर्तित हो गया और जिस क्षेत्र में पंचम सिंह बुन्देला या उनके वंशजों ने राज्य विस्तार किया वह 'बुन्देलखण्ड' कहलाया।

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