ब्लैक फंगस का कहर: बिजनौर में एडीजे और कानपुर के हैलट एक युवक ने दम तोड़ा 

कोरोना वायरस संक्रमण के सेकेंड स्ट्रेन से उबरने वाले लोगों पर अब ब्लैक फंगल इंफेक्शन कहर बनकर टूट रहा है...

May 24, 2021 - 07:27
May 24, 2021 - 07:46
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ब्लैक फंगस का कहर: बिजनौर में एडीजे और कानपुर के हैलट एक युवक ने दम तोड़ा 
ब्लैक फंगस-फाइल फोटो

कोरोना वायरस संक्रमण के सेकेंड स्ट्रेन से उबरने वाले लोगों पर अब ब्लैक फंगल इंफेक्शन कहर बनकर टूट रहा है। ब्लैक फंगस से सोमवार को बिजनौर में एडीजे और कानपुर के हैलट अस्पताल में औरैया निवासी एक युवक ने दम तोड़ दिया। प्रदेश में ब्लैक के बाद व्हाइट और यलो फंगल इंफेक्शन के मामले सामने आने से लोग दहशत में हैं। इसके साथ ही चिकित्सकों के सामने भी बड़ी चुनौती पैदा हो रही है।

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बिजनौर में कोरोना वायरस संक्रमण से उबरे अपर जिला जज सप्तम राजू प्रसाद की तबियत बिगड़ गई। उन्होंने अस्पताल ले जाने के दौरान ही रास्ते में दम तोड़ दिया। बार संघ के अध्यक्ष अजीत पवार ने अपर जिला जज की मृत्यु की पुष्टि की है। बिजनौर में तैनात 45 वर्षीय अपर जिला जज सप्तम राजू प्रसाद पुत्र राम प्रसाद को करीब 15 दिन पहले कोरोना संक्रमण हुआ था। जांच में उन्हें ब्लैक फंगस होने की भी पुष्टि हुई।

शहर के प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज चला और कुछ दिन बाद वह ठीक होकर घर आ गए। सोमवार को उनकी अचानक तबियत बिगड़ी, उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रास्ते मे ही उन्होंने दम तोड़ दिया। राजू प्रसाद मूल रूप से देवरिया जनपद के रहने वाले थे। वह वर्ष 2019 से बिजनोर में तैनात थे। इससे पहले राजू प्रसाद जिले में बतौर सीजेएम भी तैनात रह चुके हैं।

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इधर कानपुर के लाला लाजपत राय (हैलट) अस्पताल में ब्लैक फंगस से सोमवार को पहली मौत हो गई। यहां पर तीन दिन पहले औरैया निवासी एक युवक को ब्लैक फंगस संक्रमित होने के बाद भर्ती कराया गया था। औरैया के बिधूना निवासी युवक ने सोमवार को इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। गाजियाबाद में एक ही युवक में तीनों फंगस मिले हैं। यह मामला स्वास्थ्य विभाग को अभी जानकारी नहीं है। यहां के सरकारी अस्पताल में फंगस का इलाज नहीं है। ब्लैक फंगस व व्हाइट फंगस की दवा तक नहीं है।

मरीज को दो दिन पहले आरडीसी के हर्ष ईएनटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। संजयनगर निवासी कुंवर सिंह को भी पहले कोरोना हुआ था। अस्पताल के निदेशक डा. बीपी त्यागी ने बताया कि यलो फंगस छिपकली में पाया जाता है। इससे पहले इंसान में यह फंगस मिलने का कोई रिकार्ड नहीं है। ब्लैक व व्हाइट फंगस की तरह यह शरीर के हिस्से को गलाता नहीं है, बल्कि घाव करता है, जिसे भरने में काफी समय लगता है। इसके मरीज को भी एंफोटेरिसीन इंजेक्शन दिया जाता है और सर्जरी की जाती है।

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