गुजर रही थी कारें और तड़प रहा था बुजुर्ग

वह दर्द से कराह रहा था, उसके दोनों पैरों से खून रिस रहा था सड़क पर पड़े इस बुजुर्ग की असहनीय पीड़ा..

गुजर रही थी कारें और तड़प रहा था बुजुर्ग

वह दर्द से कराह रहा था, उसके दोनों पैरों से खून रिस रहा था। सड़क पर पड़े इस बुजुर्ग की असहनीय पीड़ा को देख कर भी लोग मुंह फेर रहे थे।

तभी वहां एक कार रुकी और उस से निकले व्यक्ति ने बुजुर्ग के पास पहुंचकर कर उसका हाल चाल जानने की कोशिश की, लेकिन दर्द से कराह रहा वह अपने बारे में कुछ बयां नहीं कर पाया।

फिर भी कार सवार व्यक्ति ने आनन-फानन में एंबुलेंस बुलाया और एक कांस्टेबल की मदद से उसे जिला अस्पताल तक पहुंचाया और अपने सहयोगियों के माध्यम से इलाज शुरू कराया। इलाज के बाद भी बुजुर्ग अपने बारे में कुछ नहीं बता पाए जिससे अभी भी पहचान अधूरी है। 

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लखनऊ जाते समय जनपद के अतरहटगांव में उक्त बुजुर्ग को कराहते हुए देखकर उसे अस्पताल पहुंचाने वाले व्यक्ति थे बांदा शहर के जामा मस्जिद के मुतवल्ली शेख सादी जमा, जो रोटी बैंक के माध्यम से गरीबों की मदद करने में हमेशा आगे रहते हैं।

जब वह लखनऊ जा रहे थे तभी अतरट गांव में उनकी नजर उस व्यक्ति पर पड़ी जिसके हाथों और पैरों के गहरे जख्म और उनसे रिश्ता खून दिखाई पड़ा।

बुजुर्ग सड़क के बीचो बीच था। वहां से गुजर रही गाड़ियां उसे बचाते हुए दोनों साइड से गुजर रही थी लेकिन किसी ने उसकी मदद करने कोशिश नहीं की, लेकिन उसे देखकर शेख सादी जमा अपने आप को रोक नहीं पाए।उन्होंने गाड़ी रुकवाई कार से नीचे उतर कर बुजुर्ग के हालचाल लेने की कोशिश की।

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लेकिन बुजुर्ग कुछ भी बोल नहीं पा रहा था उसके पैरों और हाथों में गहरे जख्म से रिश्ता खून और मैंले फटे कपड़े तकलीफों की दास्तां बयां कर रहे थें।

उन्होंने उसके बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ की तो लोगों ने बताया कि यह व्यक्ति इस गांव का रहने वाला नहीं है।इससे पहले उसे कभी यहां नहीं देखा गया।

नजाकत को समझते हुए शादी जमा ने एंबुलेंस बुलाने के लिए फोन कॉल की और फिर अधिकारियों से संपर्क करते हुए लावारिस को एंबुलेंस और साथ में कांस्टेबल की व्यवस्था कराई।

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ताकि मरीज को अस्पताल तक पहुंचाया जा सके।इसके बाद उन्होंने अपने सहयोगियों को अपनी देखरेख में बुजुर्ग का इलाज कराने की जिम्मेदारी सौंप दी और उसके बाद वह लखनऊ रवाना हो गए।

लखनऊ पहुंचने के बाद भी वह अपने सहयोगियों के माध्यम से बुजुर्ग के हाल चाल लेते रहे। इधर सहयोगियों ने अस्पताल के कर्मचारियों के साथ मिलकर न सिर्फ इलाज शुरू किया बल्कि उसे नहलाने से लेकर कपड़े पहनाने में भी किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी।

जिला अस्पताल के डॉक्टर विनीत सचान और डॉक्टर सरसैया की देखरेख में बुजुर्ग का इलाज चल रहा है।इलाज में बुजुर्ग की देखभाल कर रहे पत्रकार नजरे आलम ने बताया कि बुजुर्ग अभी भी ठीक ढंग से बोल नहीं पा रहा है। इशारों से पूछने पर पत्नी और बच्चों के न होने की बात कही, वही पता पूछने पर वह महू या माहो बोलता है जिससे लगता है

कि वह महोबा जनपद या फिर बांदा के महुआ गांव का निवासी हो सकता है। बरहाल जिस तरह से इस लावारिस मदद की जा रही है अगर इसी से प्रेरणा लेकर लोगों की मदद की जाए तो सड़क पर तड़प तड़प कर दम तोड़ने वाले व्यक्तियों की जान बच सकती है।

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