प्रकृति के संतुलन मे सहयोग करें
अनुज पण्डित @ चित्रकूट
पर्यावरण के अन्तर्गत मात्र पेड़ ही नहीं आते बल्कि भूमि, जल और वायु से सम्बन्धित घटक नदी-तालाब, झरने,पहाड़, पशु-पक्षी आदि भी आते हैं। अतः इन सबको संरक्षित करना हम सबका परम धर्म है क्योंकि सन्तुलन हेतु इन सबकी जरूरत है।
अभी हाल ही में केरल की एक गर्भिणी हथिनी की हत्या पर्यावरण की हत्या है। इस घटना ने यह बयाँ कर दिया कि मनुष्य सबसे निर्दयी जानवर है जो मात्र सींग-पूँछ से रहित है।
इस वर्ष का थीम है "प्रकृति के लिये समय" - इसका अर्थ यह है कि अपने व्यस्ततम जीवन में से थोड़ा सा समय निकालकर हमें पर्यावरण को समृद्ध और सुंदर बनाने का प्रयत्न करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी हमारा अनुकरण करे।
पौध रोपिये किन्तु उसकी देखभाल भी अवश्य कीजिये,जंगल में मंगल करने अवश्य जाइये किन्तु याद रखिये कि आपके या किसी और के हाथों वनसम्पदा का दोहन न हो।
बाकी ज्ञान तो कई लोग दे ही रहे हैं सोशल मीडिया पर !
एयरकंडीशन कमरे में बैठकर,सिगरेट जलाते हुए,जंगल की तेरही करने-करवाने वाले आला अफ़सर जब पर्यावरण-दिवस की बधाई देते हैं तथा डग्गा में लकड़ी लदवाकर शहरों की ओर भेजते हैं ,तो लगता है कि वाकई पर्यावरण-संरक्षण जिम्मेदार हाथों में है ।