विश्व दुग्ध दिवस : बुन्देलखण्ड में दुग्ध उत्पादन व व्यवसाय की अपार सम्भावनायें-कुलपति
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन व व्यवसाय की अपार सम्भावनायें हैं साथ ही कुछ समस्याये भी हैं जो कृषि विश्वविद्यालय..
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन व व्यवसाय की अपार सम्भावनायें हैं साथ ही कुछ समस्याये भी हैं जो कृषि विश्वविद्यालय के.वी.के., पशुपालन विभाग व दुग्ध विकास विभाग के आपसी सामंजस्य से समाधान निकाला जा सकता है। यह बात बुधवार को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा एवं पशुधन उत्पादन एवं प्रबन्धन विभाग, कृषि महाविद्यालय, बीयूएटी, बांदा के संयुक्तत्वाधान में विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर वैज्ञानिक चर्चा के दौरान कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डा.) एन.पी. ंिसंह ने कही। उन्होने पशुपालकों में डेयरी व्यवसाय के प्रति जागरूकता के साथ देशी नस्लों का संरक्षण व संर्वधन करने पर जोर दिया।
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केन्द्र की वैज्ञानिक डा. दीक्षा पटेल ने कार्यक्रम का उद््देश्य एवं रूपरेखा से सभी को अवगत कराया। उन्होनें बताया कि मानव स्वास्थ्य के लिये दूध कितना जरूरी यह बताने और दुनिया भर मेें दूध को वैश्विक भोजन के रूप में मान्यता दिलाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 2001 से 01 जून को विश्व दुग्ध
दिवस मनाया जाता है।
वैज्ञानिक चर्चा के अन्तर्गत डा. मयंक दुबे ने स्वच्छ दुग्ध उत्पादन में महत्व पर चर्चा की, उन्होने बताया कि भारत देश दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है लेकिन निर्यात की क्षेत्र में अन्य विकसित देशों से पीछे है। डा. मानवेन्द्र सिंह सभी को ए 1 व ए 2 दुग्ध विषय पर चर्चा करते हुये बताया कि भारतीय नस्लों के दुग्ध में ए2 प्रोटीन पायी जाती है जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है, वहीं विदेशी नस्लों के ए1 प्रोटीन पायी जाती है।
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जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर हानिकारण प्रभाव होने की सम्भावना होती है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मुख्य पशुचिकित्साधिकारी, बांदा डा. एस.पी.. सिंह ने पशुओं के लिये वर्ष भर चारा उत्पादन पर चर्चा की। दुग्ध विकास अधिकारी चित्रकूट धाम मण्डल डा. रामशरण प्रजापति ने दुग्ध विकास विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं पर प्रकाश डाला।
विश्व विद्यालय के सह निदेशक प्रसार डा. आनन्द सिंह ने कृषि विज्ञान केन्द्रों कीे किसान हित में चलायी जा रही योजना व भूमिका के बारे में अवगत कराया। कार्यक्रम के अन्त में डा. मानवेन्द्र सिंह ने धन्यवाद् ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के 30 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन वैज्ञानिक डा. दीक्षा पटेल ने किया।
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