परिवारिक एकता के लिए अखिलेश बना सकते हैं अपनी जगह शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष

सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में सपा के युवा नेता और अपने पुत्र अखिलेश...

परिवारिक एकता के लिए अखिलेश बना सकते हैं अपनी जगह शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष

लखनऊ

शिवपाल यादव अपनी पार्टी प्रसपा का सपा में कर सकते हैं विलय

सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में सपा के युवा नेता और अपने पुत्र अखिलेश यादव को उनकी प्रदेश व्यापी यात्रा के बाद सपा को मिली प्रदेश में जीत के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री पद का ताज सौंप दिया। उसको लेकर सपा के दो बड़े नेताओं को गहरा धक्का लगा। इनमें से एक शिवपाल यादव  जो मुलायम सिंह के छोटे भाई हैं तथा अखिलेश यादव के चाचा तथा दूसरा अल्पसंख्यकों के बड़े नेता और मंत्री आजम खान थे।लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने नाजुक स्थिति को अपने आभामंडल से  संभाला। उन्होंने शिवपाल पुचकार कर और आजम खान को समझा कर पार्टी में हो रही विस्फोटक स्थिति को कंट्रोल कर लिया।

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सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव 2024 में लड़ेंगे कन्नौज से लोकसभा का चुनाव

लेकिन शिवपाल को आपेक्षित महत्व न मिलने के कारण  लड़ाई बढ़ती ही चली गई और अंततः आपसी विवादों के चलते पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने अपनी एक अलग पार्टी बना ली। जिससे राजनीति के जानकारों को यह लगा कि शिवपाल यादव के अलग होने से समाजवादी पार्टी का घाटा होगा और इसका लाभ भाजपा ले जाएगी। लेकिन जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर प्रदेशभर की और देशभर की जनता का जनसैलाब उनके अंतिम दर्शनों के लिए सैफई में उमड़ा। उसने विरोधी दलों के साथ-साथ शिवपाल यादव प्रोफेसर रामगोपाल यादव इन सब को यह सोचने पर बाध्य कर दिया कि यदि अखिलेश के नेतृत्व में परिवार के लोग एकजुट नहीं हुए तो इसका सीधा सीधा लाभ भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उठा ले जाएंगे। 

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इसके चलते यह हुआ कि भले ही प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की धर्मपत्नी डिंपल यादव का मैनपुरी सीट से नामांकन कराने नहीं गए। जिससे गलतफहमियां पैदा हुई लेकिन इस बीच दोनों ने ही इस गलती का सुधार किया और अखिलेश और शिवपाल ऐसे मौके पर सारे गिले-शिकवे मिलाकर एकजुट हो गए और शिवपाल सिंह यादव ने यहां तक कहा कि अखिलेश ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व सारी गलतफहमियां दूर कर ली होती तो आज वह  मुख्यमंत्री पद को संभाल रहे होते। इन सबके बीच यह बात उभरकर सामने आई कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यदि प्रसपा से जल्दी कोई समझौता नहीं किया और सारे गिले-शिकवे भूलकर यदि एक नहीं हुए तो इससे से सपा को ही नुकसान उठाना पड़ेगा।

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सपा सुप्रीमो ने अखिलेश यादव ने प्रोफेसर रामगोपाल यादव, आजमखान, शिवपाल सिंह यादव के साथ धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष सपा नरेश उत्तम तथा ओबीसी के अन्य नेताओं के साथ गहन चर्चा की और इसके बाद यह निर्णय हुआ कि आगामी लोकसभा के उपचुनाव और हिमाचल और गुजरात में होने वाले विधानसभा का चुनाव का परिणाम 8 दिसंबर को आ जाने के बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव शीघ्र ही ऐसी रणनीति बनाएंगे। जिससे भाजपा हतप्रभ रह जाए। इसके चलते इस बात की प्रबल संभावना है कि समाज में सकारात्मक मैसेज देते हुए श्री यादव अपने चाचा शिवपाल यादव को विधानसभा में अपनी जगह सपा का नेता प्रतिपक्ष बना देने की पूरी संभावना और प्रसपा का सपा में मर्जर करा दें। इसकी भी प्रबल संभावना है कि अखिलेश यादव विपक्षी दलों की सहमति बनाकर स्वयं लोकसभा क्षेत्र कन्नौज से चुनाव लड़े और विपक्षी दलों की एकता को मजबूत करते हुए एक ऐसा सर्व सम्मत प्रत्याशी तलाश करें जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का एक संयुक्त प्रत्याशी बताया जा सके।

अनिल शर्मा

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