शरीर के अंगों में घुसी लोहे की बजनी सांग लेकर जब देवी भक्त करता है नृत्य
नवरात्रि में भाव विभोर होकर देवी भक्त जब लोहे की बजनी सांग अपने शरीर के अंगों में चुभाकर ढोलक की थाप पर नृत्य करता है तो उन्हें देखने वालों की सांसे...
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नवरात्रि में भाव विभोर होकर देवी भक्त जब लोहे की बजनी सांग अपने शरीर के अंगों में चुभाकर ढोलक की थाप पर नृत्य करता है तो उन्हें देखने वालों की सांसे थम जाती हैं। यह आस्था का नृत्य अष्टमी और नवमी को बुंदेलखंड के जनपद बांदा स्थित प्रसिद्ध महेश्वरी देवी मंदिर में देखने को मिल जाता है।
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बुंदेलखंड में चैत्र तथा शारदीय नवरात्र में नवदुर्गा महोत्सव मनाया जाता है, इस दौरान जवारा भी निकाले जाते हैं।
जवारा नृत्य
जवारा नृत्य देवी पूजा से संबंधित है इसका प्रचार बुंदेलखंड के सभी जनपदों में है क्योंकि बुंदेलखंड के लोग आदि शक्ति दुर्गा काली के उपासक हैं अतः इस नृत्य के प्रति उनकी रुचि होना स्वाभाविक है। बुंदेलखंड की सभी जातियों के लोग जवारा उत्सव को धार्मिक भावनाओं से ही मनाते हैं, देवी भक्त भजन गाकर 9 दिन देवी की आराधना करते हैं और उपवास भी रखते हैं देवी भक्तों द्वारा व्रत रहकर घरों में घटस्थापना की जाती है।
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जहां जवारा भी बोए जाते हैं उसे दिवाला कहते हैं या फिर मंदिरों में भी जवारा रखे जाते हैं। प्रतिपदा के दिन मिट्टी के घड़ों (खप्पर) पर मूंज या रस्सी की मोटी कुंडली बनाकरकर उस पर गेहूं या जौ बोते हैं इन्हें ही जवारा कहते हैं। यह नाम जौ या जवा से पड़ा है।
सांगों का प्रदर्शन
जिस जगह जवारा रखे जाते हैं उस जगह प्रतिदिन सुबह शाम देवी गीत गाए जाते हैं और अष्टमी नवमी को यही जवारे लेकर महिलाएं देवी गीत गाते हुए महेश्वरी देवी मंदिर जाती है उनके आगे देवी भक्त लोहे की बजनी सांग जिसका वजन 50 किलो से लेकर एक कुंतल तक होता है अपने शरीर के अंगों में धारणकर ढोलक की थाप पर नृत्य करते हुए मां के दरबार जाता है।
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महेश्वरी देवी के प्रांगण में देवी भक्त जब लोहे की सांग (बाना) लेकर नाचते हैं तो देखने वाले दर्शनार्थियों की कुछ पलों के लिए सांसे थम जाती हैं। यह सिलसिला इस मंदिर में अष्टमी और नवमी को सुबह से लेकर देर रात तक चलता है। बाद में जवारो का विसर्जन कर दिया जाता है।
गुनिया या पंडा
जवारा के साथ-साथ गुनिया या पंडा खप्पर लेकर चलते हैं यही पंडा मां का जयकारा लगाते हुए देवी भक्तों के शरीर के गले ,गाल हाथ में सांग देते हैं ,सांग घुसने के बाद भी देवी भक्तों के शरीर से खून की एक बूंद भी नहीं निकलती है और जब सांग शरीर से बाहर निकाली जाती है तब भी खून नहीं होता है। बाद मे पंडा द्वारा जख्म में भभूत लगा दी जाती है इसी से उसका जख्म ठीक हो जाता है।
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बचपन से लेकर लगभग दो दशक तक सांग लेकर प्रदर्शन करने वाले सुरेश साहू बताते हैं कि मनौती पूर्ण होने पर मैंने सांग लेना शुरू किया था जो दो दशक तक चलता रहा मां की कृपा से जख्म अपने आप ठीक हो जाता था।बताया जाता है कि इस समय महेश्वरी देवी मंदिर में शिल्लू महाराज द्वारा भक्तों की इच्छा पर सांग दिलाई जाती है। आस्थावान भक्त नवरात्रि के दिन सांग लेकर अपनी मनौती पूर्ण करते है।
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