विजयदशमी पर पान खिलाने की परम्परा खत्म
पान आधा रह गया, जलपान भी आधा रह गया। जाती रही इंसानियत इंसान भी आधा रह गया...
 
                                हमीरपुर,
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के गांवों में दशहरे पर्व पर पान खिलाने की परम्परा अब खत्म हो गयी है। इसकी जगह पान मसाला और गुटखा की पैठ बनने से विजयदशमी त्यौहार पर मान का पान अधूरा रह गया।
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किसी कवि ने लिखा है कि पान आधा रह गया, जलपान भी आधा रह गया, जाती रही इंसानियत इंसान भी आधा रह गया। ये पंक्ति आज यहां सटीक हो गयी है। हमीरपुर में ज्यादातर लोग पान मसाला और गुटखा खिलाकर दशहरा मना रहे है। हालांकि कोरोना महामारी के कारण अब की बार दशहरे की खास रौनक नहीं दिख रही है।
फिर भी लोग एक दूसरे से गले मिलकर पान मसाला और गुटखा खिलाकर असत्य पर जीत का त्यौहार मना रहे हैं। किसी जमाने में शहर, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में दशहरे के दिन पान खिलाकर मान सम्मान देते थे लेकिन अब इस परम्परा से हर कोई किनारा किये है। ग्रामीण इलाकों में भी दशहरे पर पान मसाला और सुपारी का गुटखा खिलाकर लोग इस पर्व को मना रहे हैं।
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खासकर गांवों में महिलाएं घर के बाहर एक जगह एकत्र होकर आपस में दशहरे पर ढोलक बजाकर इस पर्व को चांद लगा रही हैं। पहले लोग बिना किसी भेदभाव के आपस में मिलते-जुलते बैर भूल जाते थे। परन्तु इंसानियत में कमी आने से राजनीति के कारण सामाजिक व्यवस्था कमजोर होने से अब दशहरा पर्व पहले जैसा नहीं रहा।
लोग सिर्फ अपनों तक ही सिमट कर रह गये हैं। मान, पान, सम्मान, सब कुछ आधा अधूरा होकर रह गया है। यहां के सहदेव, कैलासवती, रेनू और ममता सहित तमाम लोगों ने बताया कि कुछ दशक पहले दशहरे पर लोग घरों में जलपान कराकर पान खिलाते थे लेकिन अब ये मान का पान गुटखा और पान मसाला में बदल गया है।
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समाजसेवी जलीस खान, पूर्व प्रधान बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि पहले दशहरा पर्व पर पान खिलाने की परम्परा थी लोग पान लगाकर खिलाते थे। किंतु महगाई के चलते अब लोग सम्मान में सुपारी का गुटखा खिलाते हैं। पंडित दिनेश दुबे व डॉ.भवानीदीन ने बताया कि ऐसे त्यौहारों में लोग दुश्मनी भी पान खिलाकर मान देने के बहाने निकालते हैं। इसीलिये ये परम्परा विलुप्त हो गयी है।
हिन्दुस्थान समाचार
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