बुंदेलखंड में लुप्त हो रही है नाग पंचमी में गुड़िया पीटने की परंपरा
सावन का महीना हिंदू धर्म में भक्ति और प्रेम का महीना माना जाता है।इस माह भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है...
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सावन का महीना हिंदू धर्म में भक्ति और प्रेम का महीना माना जाता है।इस माह भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसी माह शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी का पर्व भी मनाया जाता है।बुंदेलखंड में इस पर्व को अनोखे ढंग से मनाने की परंपरा है,इस दिन बच्चे कपड़े से बनी गुड़िया को पीटते हैं लेकिन यह परंपरा अब लुप्त होती जा रही है।
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इस बारे में समाजसेवी कुलदीप शुक्ला बताते हैं कि बुंदेलखंड में इस पर्व को मनाने का ढंग कुछ अनूठा है, यहां नागपंचमी के दिन गुड़िया पीटने की अनोखी परंपरा निभाई जाती है। नागपंचमी के दिन लडकियां घर के पुराने कपड़ों से रंग बिरंगी गुड़िया बनाती हैं और उसे चौराहे पर डाल देती हैं। बच्चे इन गुड़िया को कोड़ों और डंडों से पीटकर खुश होते हैं।
उन्होने बताया कि एक बार गरुण से बचते हुये एक नाग ने महिला से याचना की, कि वह उसे कहीं छिपा ले। जिससे वह गुरु के प्रकोप से बच जाये। महिला ने गरुण को छिपा लिया लेकिन यह बात उसके पेट में नहीं रुकी। उसने अन्य लोगों को भी बता दी। इस बात को सुन क्रोधित हुये नागदेव ने महिला को श्राप दिया कि साल में एक दिन तुम सब पीटी जाओगी। सदियों पुरानी यह प्रथा आज भी एक पर्व के रूप में निभाई जा रही है। औरत के प्रतीक कपड़े से बनी गुड़िया को तालाब के पास या चौराहे पर फेंकती है और लड़के उनकी पिटाई करते है।
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इस संबंध में पत्रकार संगीता सिंह का कहना है कि नागपंचमी हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार भी होता है। इसके बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं।एक राजा की बेटी थी जिसका नाम गुडिया था। वह दूसरे राज्य के राजा के बेटे से प्रेम करने लगती है। दुश्मन राज्य के युवराज से प्रेम की बात गुडिय़ा के भाइयों को स्वीकार नहीं होती जिसके चलते वह गुडिय़ा की बीच चौराहे पर पिटाई कर देते हैं।
उसे चौराहे पर इतना पीटा जाता है कि उसकी मौत हो जाती है। गुडिय़ा की मौत के बाद उसके सातों भाई समाज में यह घोषणा करते हैं कि ऐसा अनैतिक कार्य कोई करेगा तो उसका हश्र भी ऐसा ही होगा। उस दिन के बाद से प्रतिवर्ष यह परम्परा चलती रही और चौराहों पर कपड़े की गुडिय़ा बनाकर पीटी जाने लगी।
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नागपंचमी के दिन चौरसिया समाज के लोग नागदेव की विशेष पूजा करते है।कहा जाता है कि ऋषि कश्यप के पुत्रों को चौऋषि कहा जाता था, जिसे चौरसिया कहा जाने लगा। पान की खेती करने वाले किसान बारिश में सांप से जानमाल की रक्षा के लिये पूजा करते है। इस समाज के लोग पान के भीट और घरों मे सांप का पूजन करते है।
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