बुन्देलखण्ड़ की लोक कला दीवारी नृत्य ने विदेशों में भी खुशबू बिखेरी
बुन्देलखण्ड़ की लोक कला दीवारी नृत्य न केवल देश अपितु विदेशों में भी अपनी खुशबू बिखेरी है। इस लोक कला..
प्रतियोगिता में अहिल्या कुशवाहा की टीम ने बाजी मारी
बुन्देलखण्ड़ की लोक कला दीवारी नृत्य न केवल देश अपितु विदेशों में भी अपनी खुशबू बिखेरी है। इस लोक कला से जुडे हुए कलाकार पूरी तन्मयता और लगन से जुड़कर इस कला को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं।
अपर आयुक्त प्रशासन, चित्रकूटधाम मण्डल बांदा चन्द्रशेखर ने उपरोक्त विचार उ.प्र. दिवस 2021 के अवसर पर नटराज संगीत महाविद्यालय में सम्पन्न मण्ड़लीय सांस्कृतिक प्रतियोगिता-दीवारी-पाई डण्डा में कलाकारों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
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उन्होंने कहा कि दीवारी नृत्य की उत्पत्ति द्वापर युग में भगवान कृष्ण के समय से हुई है तथा दीवारी नृत्य में युद्ध कला तथा अद्भुत साहस का प्रदर्शन किया जाता है। चन्द्रशेखर ने कहा कि यह नृत्य योद्धाओं के युद्ध कौशल पर आधारित है। उन्होंने कहा कि कला हमें बुराइयों से दूर करती है तथा आपसी प्रेम और सौहार्द को बढाती है। उन्होंने सांस्कृतिक प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सभी टीमों को बधाई देते हुए कहा कि उनकी कला का प्रदर्शन बहुत ही सराहनीय है।
नगर मजिस्टेªट बांदा केशव नाथ ने कहा कि यहां के कलाकार दीवारी नृत्य की परम्परा को न केवल बचाये हुए हैं अपितु आगे बढाने का कार्य कर रहे हैं, यह बहुत ही सराहनीय है। उप निदेशक सूूचना भूपेन्द्र सिंह यादव ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड़ की इस लोक कला को यहां के लोक कलाकार न केवल जिन्दा रखे हुए हैं
अपितु इस कला को आगे बढा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता है कि दीवारी नृत्य का उद्गम एवं विकास बुन्देलखण्ड़ के बांदा जनपद से हुआ है। श्री यादव ने कहा कि पाई डण्डा एवं दीवारी नृत्य में युद्ध के समय प्रयोग होने वाले वाद्य यंत्र नगाडा एवं उसका लघु रूप नगड़िया का प्रयोग होता है तथा पैर एवं कमर में घुंघरू की पाजेब एवं पेटी का प्रयोग होता है।
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श्री यादव ने कहा कि पाई डण्डा एवं दीवारी नृत्य मार्शल आर्ट का जन्मदाता है। उन्होंने कहा कि इस नृत्य की पूरी प्रक्रिया में एकाग्रता एवं सन्तुलन की आवश्यकता होती है तथा इसकी तुलना शिव के ताण्डव नृत्य से की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि सांस्कृतिक प्रतियोगिता में कु0अहिल्या कुशवाहा की टीम ने प्रथम, चन्द्रपाल सिंह की टीम ने द्वितीय तथा रमेश पाल की टीम ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा के जनसम्पर्क अधिकारी प्रो. वी.के.गुप्ता ने कहा कि यहां के कलाकार बधाई के पात्र हैं क्योंकि वे अपनी लोक कला को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कार्य कर रहे हैं।
सहायक अभियंता दूरदर्शन धनश्याम गुप्ता ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि इस कला में ऊर्जावान कलाकारों की प्रतिभा को देखने का अवसर मिलता है तथा यह कलाकार अगली पीढ़ी को भी अपनी कला से जोड़ रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन नटराज संगीत महाविद्यालय के प्रबन्धक धनंजय सिंह ने किया।दीवारी सांस्कृतिक प्रतियोगिता में सन्तोष कुमार धुरिया, सन्तू पाल राजपूत, अनिल कुमार तथा लाला भाई यादव की टीमों ने भी प्रतिभाग किया।
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