पर्सनल लॉ की आड़ में नहीं बचेगा बाल विवाह : भुवन ऋभु
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) सभी धर्मों और संप्रदायों पर समान रूप से लागू होना चाहिए और किसी भी पर्सनल लॉ की आड़ में बाल विवाह...

भोपाल। “बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) सभी धर्मों और संप्रदायों पर समान रूप से लागू होना चाहिए और किसी भी पर्सनल लॉ की आड़ में बाल विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।” यह कहना है जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता भुवन ऋभु का।
उन्होंने भोपाल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मध्य प्रदेश बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर अग्रिम मोर्चे पर है और इस राज्य के पास बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने की लड़ाई का नेतृत्व करने की क्षमता है।
बाल विवाह रोकने में उल्लेखनीय उपलब्धि
अप्रैल 2023 से अगस्त 2025 के बीच मध्य प्रदेश के 41 जिलों में 36,838 बाल विवाह रोके गए, 4,777 ट्रैफिकिंग पीड़ित बच्चे मुक्त कराए गए और 1200 से अधिक यौन शोषण पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाया गया। यह कार्य नागरिक समाज संगठनों और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के सहयोग से संभव हो सका।
“कानून को धर्म से ऊपर रखना होगा”
भुवन ऋभु ने कहा कि पीसीएमए एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, और बच्चों की सुरक्षा के लिए इसे हर हाल में पर्सनल लॉ से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने हाल ही में आए कुछ उच्च न्यायालयों के फैसलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश सरकार को इसका नेतृत्व करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बाल विवाह पर किसी भी तरह का समझौता न हो।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन नेटवर्क ने अप्रैल 2023 से जुलाई 2025 के बीच देशभर में 3,74,000 बाल विवाह रोके, 1,00,000 से ज्यादा बच्चों को ट्रैफिकिंग से बचाया, 34,000 से अधिक बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य सहयोग उपलब्ध कराया और 63,000 से ज्यादा मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू करवाई। यहां तक कि साइबर अपराधों के जरिए बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के 1,000 से ज्यादा मामले दर्ज कराए गए।
मध्य प्रदेश की चुनौती
हालांकि राज्य में बाल विवाह की दर (23.1%) राष्ट्रीय औसत (23.3%) से थोड़ी कम है, लेकिन राजगढ़, श्योपुर, छतरपुर, झाबुआ और आगर मालवा जैसे जिलों में स्थिति बेहद गंभीर है। ऋभु ने कहा कि यदि कानून पर सख्ती से अमल नहीं हुआ तो बच्चियों की पढ़ाई छूटेगी और वे शोषण व गरीबी के अंतहीन चक्र में फंसेंगी।
कानून का सख्त प्रावधान
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु का लड़का “बच्चा” माना जाता है। इस कानून के तहत न केवल बाल विवाह करने वाले बल्कि उसमें सहयोग देने वाले जैसे—बारात में शामिल मेहमान, हलवाई, बैंड-बाजा वाले या घोड़ी वाले तक को दंड और जुर्माने का प्रावधान है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान
भुवन ऋभु, जो वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन से ‘मेडल ऑफ ऑनर’ से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता हैं, ने कहा —
“बच्चों की वास्तविक सुरक्षा तभी संभव है जब कानून मजबूत निवारक उपाय का काम करे। अब समय आ गया है कि मध्य प्रदेश बाल विवाह की रोकथाम में पूरे देश के लिए मिसाल कायम करे।”
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