जिंदगी कक्षा मे जीवन का ज्ञान प्राप्त हो सकता है...

मुझे अपना बचपन याद आ रहा है। बचपन का स्कूल याद आ रहा है। वो कक्षा याद आ रही है जिसमे एक ओर लड़कियां बैठतीं व एक ओर लड़के बैठते और हमारे सामने अध्यापक बैठते थे। एक दिन ऐसे ही कक्षा लगी थी , ज्ञान की कक्षा। विषय की वेला में जिंदगी का प्रश्न पूंछ लिया गया था ...

जिंदगी कक्षा मे जीवन का ज्ञान प्राप्त हो सकता है...

वैसे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा सच है कि वह विषय के अनुसार पढ़ाना जानता हैं और विषय से परिचय कराने को ज्ञान कहने की भूल करते हैं। विषय पढ़ना और परीक्षा में प्रश्न का उत्तर देना मात्र विषय प्रश्न व उत्तर से विषयानुसार परिचय होना है , यह भी सच है कि ज्यादातर परीक्षाएं रटंत विद्या से उत्तीर्ण की गई हैं।

ज्ञान होना विषय को रट लेना नहीं होता। ज्ञान की शुरूआत अनुभव से होती है और जब कोई अनुभव अपने शब्दों में अपनी धारा मे बहते हुए लिखता है तब वह ज्ञान का अंश होता है परंतु ज्ञान अर्थात जीवन का ज्ञान ! अपने आप का ज्ञान ? इस दुनिया में हम सिर्फ एक-दूसरे से परिचित हैं नाकि एक - दूसरे का ज्ञान है। हमें सर्वप्रथम स्वयं की जिंदगी का ज्ञान होना चाहिए।

जिंदगी से संबंधित एक सवाल हमारे शिक्षक ने किया था। उन्होंने पूरी कक्षा मे पूंछा था कि सभी छात्र - छात्राएं खड़े होकर बताएं कि उन्हें जिंदगी में सबसे अधिक क्या पसंद है ?

मुझे किसी का भी जवाब याद नहीं आ रहा परंतु वो कक्षा मेरे मन - मस्तिष्क में अभी भी टेलीविजन में दृश्य की तरह चल रही है। संभवतः मैंने उस समय सबके जवाब मन - मस्तिष्क और श्रृवण शक्ति के संगम से सुना होता तो याद रहता !

मुझे वह दृश्य याद आ रहा है। जब मैं खड़ा हुआ और मेरा जवाब " संघर्ष " करना था , मैंने कहा था कि ' हाँ ' मुझे संघर्ष करना पसंद है। अब संघर्ष किसके जीवन मे नहीं है ? और संघर्ष को कौन अपने आसपास फटकने देना चाहता है पर मुझे शायद बचपन में संघर्ष के दर्द का अहसास ही नहीं था कि संघर्ष जिंदगी को क्या से क्या बना देता है ?

यह भी सच है कि बिना संघर्ष के कभी कोई इतिहास नहीं बना , बिना संघर्ष के कभी कोई महान नहीं बना। यह भी सच है कि जिन्होंने जिंदगी में कुछ विशेष किया है उन सभी ने संघर्ष किया है। किसी ना किसी प्रकार का संघर्ष हर किसी के सामने रहा है और प्रत्येक संघर्ष की अग्नि परीक्षा में सफल होकर प्रत्येक सफलता का सुख भी हमें खूब महसूस होता है।

जब कभी ज्यादा संघर्ष या बेवजह का संघर्ष महसूस किया तो बस मन मे यही आया कि ऐसा संघर्ष क्यों ? फिर जवाब मिला कि इसके पहले के प्रत्येक जवाब से संतुष्ट हो तो यही जवाब अंतर्मन ने दिया कि हाँ।

बचपन से लेकर अब तक के संघर्ष को महसूस कर लगा कि महामारी के दौर का संघर्ष भी हमने महसूस कर लिया और पूरी दुनिया एक साथ संघर्ष कर रही है। किसी की रोजी-रोटी का संघर्ष है तो किसी के शौक का संघर्ष है पर यह सच है कि इस वक्त एक साथ लगभग सभी संघर्ष मे हैं और यह भी सच है कि समय का चक्र घूमने से महामारी के समय मे भी कुछ जिंदगियों में कुछ ना कुछ अच्छा हुआ है और यही समय की प्रबलता का सबूत है।

मुझे ये महसूस हुआ कि बड़ी अजीब बात है कि मैंने बचपन मे ही संघर्ष शब्द चुन लिया था ? जबकि ये सच है कि बचपन के बाद इस संघर्ष को लेकर संभवतः कई बार टूटा , फिर भी समय और परमात्मा पर विश्वास कर के चलते जाने का परिणाम इतना प्राप्त हुआ कि संघर्ष के साथ कुछ ना कुछ सफलता का स्वाद चखा है , यही जीवन में समय की यात्रा है कि संघर्ष हमेशा वृत्ताकार गोले के केन्द्र मे होता है , जैसे बचपन में छ: कली का गोला खींचते थे और प्रकार की नोक केन्द्र मे रहती थी। भले छः कली का गोला बनाकर मनचाहे रंग भर दें परंतु प्रकार की नोक केन्द्र में अपनी चुभन छोड़ जाती थी और जिंदगी कितने भी खूबसूरत रंगों से भर जाए , सफलतम हो जाए परंतु संघर्ष की चुभन जिंदगी में बनी रहती है।

जिंदगी की कक्षा मे जिंदगी का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इसलिए जीवन में ज्ञान और जिंदगी की कक्षा लगनी चाहिए या फिर हम स्वयं जिंदगी की कक्षा मे जीवन को जिएं , जिससे कम से कम स्वयं की जिंदगी का ज्ञान प्राप्त हो !

लेखक: सौरभ द्विवेदी, समाचार विश्लेषक

What's Your Reaction?

like
0
dislike
0
love
0
funny
0
angry
0
sad
0
wow
0