राम लला हम आयेंगें
आज भी वह आवाजें कानों में स्पष्ट गूॅजती सुनाई पड़ती हैं “राम लला हम आयेंगें, मंदिर वहीं बनायेंगें” एवं “जन्मभूमि का ताला खोलो”। बात है वर्ष 1984 की, हमें भी इस अभियान से जुड़ने का अवसर मिला....
अयोध्या की हर गली में भीड़ का सागर हिलोरे ले रहा था, सम्पूर्ण देश से लाखों लोग अपने प्रिय राष्ट्र की अस्मिता के नायक और आराध्य भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर पड़े हुये ताले को खुलवाने हेतु आंदोलन करते हुये अयोध्या पहुॅचे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व इसके आनुसांगिक संगठनों के संयोजन में सरयू किनारे एक विशाल मैदान में सभा आयोजित की गई थी, जिसकी अगुवाई गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर स्मृतिशेष महंत अवैद्यनाथ जी कर रहे थे। मंच पर विराजमान संत समाज में उडुप्पी पेजावर मठ के पीठाधीश स्वामी विश्वेषतीर्थ जी, महंत रामचंद्र दास परमहंस, महंत नृत्यगोपालदास, रामानंदाचार्य स्वामी राम भद्राचार्य जी, मोरोपंत पिंगले, दाउदयाल खन्ना, राजमाता सिंधिया, जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल, महेश नारायण सिंह, अशोक सिंघल जी, ठाकुर गुरजन सिंह जी, साध्वी उमा भारती, युगऋषि स्वामी परमानंद जी जैसे धर्म ध्वजाधारी विराजमान थे। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को प्रेषित किया गया कि श्री राम जन्मभूमि का ताला खोलकर सम्पूर्ण स्थान व वह भूमि हिन्दू समाज को सौंप दी जाये। बस यहीं से आंदोलनों की मुख्य भूमिका गति पकड़ती है, और घटनाक्रम आगे अनेक सुखद एवं दुखद मोड़ लेते हुये आज इस शुभ दिन तक आया कि 5 अगस्त, 2020 को शुभ दिवस पर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कर-कमलों द्वारा भारतवर्ष ही नहीं किंतु सम्पूर्ण विश्व के आराध्य भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है।
जन्मभूमि पर अतिक्रमण का लगभग 500 वर्षों का इतिहास रहा है, सन् 1528 में मुगल आक्रांता बाबर के समय में मंदिर की मूर्तियों को हटाकर उसी ढाॅचे के मलबे से बाबर के नाम पर मस्जिद बना दी गई, कहते हैं कि यह कार्य उसके सेनापति मीर बाॅकी ने किया था। चूॅकि मुगलों का साम्राज्य था अतः जनमानस के मध्य यही बताया गया कि यह बाबरी मस्जिद है, किन्तु अयोध्या के संत समाज ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया और अवसर मिलते ही आस-पास क्षेत्र के हिन्दू वीरों एवं राजे रजवाड़े के साथ जन्मभूमि परिसर पर अनाधिकृत कब्जा करने वाले मुगलों को खदेड़ कर अनेक बार जन्मभूमि परिसर को अपने कब्जे में लेकर वहाॅ पूजा आरम्भ की जाती रही है, जिसमें हजारों संत, वीर हिन्दू सैनिक व जनता के लोग अपना बलिदान देते रहे हैं।
यह क्रम इसी प्रकार चलता रहा फिर अंग्रजों के समय सन् 1853 में प्रथम बार हिन्दू-मुंिस्लम के बीच विवाद हुआ तो अंग्रेजो ने विवाद को सुलझाने हेतु 1859 में परिसर के दो भाग कर एक भाग मुसलमानो को नमाज के लिये और दूसरा भाग हिन्दुओं को पूजा-पाठ करने के लिये दे दिया। भारत के स्वतंत्र होने पर वर्ष 1949 में 22-23 दिसम्बर की मध्यरात्रि मध्य गुम्बद में रामलला का प्रकट होना और सुबह आरती के घंटे घड़ियाल की आवाज से जब लोगों की नींद खुली तो विवाद के बाद सूचना तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास पहुॅची, मुख्यमंत्री के आदेश को न मानते हुये अयोध्या के तत्कालीन कलेक्टर के0के0 नय्यर ने यथा स्थिति कायम रखने का ही आदेश निर्गत किया। शासन का दबाव पड़ने पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया किन्तु आदेश नहीं बदला, फलस्वरूप पूजा-अर्चना विधिवत होती रही लेकिन बाद में मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया और केवल एक पुजारी को सुबह-शाम पूजा करने का अधिकार मिला।
वर्ष 1989 में संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर शिलान्यास की घोषणा की और श्री राम शिला पूजन अभियान प्रारम्भ हुआ। इसी क्रम में 30 अक्टूबर,1990 एवं 02 नवंबर,1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के आदेश पर कारसेवकों पर गोलियाॅ चलाई गयीं जिसमें कोठारी बंधुओं समेत 53 के लगभग राम भक्त बलिदान हुये और सैंकड़ों घायल। इसी घटना के आक्रोश में वर्ष 1992 में 6 दिसम्बर के एतिहासिक दिन तथाकथित विवादित ढाॅचे को राम भक्तों द्वारा विघ्वंस कर एक अस्थाई मंदिर (टैंट) का निर्माण कर भगवान श्री रामलला को उसमें विराजमान करा दिया और तब से आज तक उनकी पूजा लगातार कड़ी सुरक्षा में की जा रही है।
वर्ष 1996 में राम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ जो उच्च न्यायलय में हिन्दू पक्ष की ओर से पैरवी कर रहा था। वर्ष 2002 में हाई कोर्ट के उस आदेश के क्रम में गतिविधियों पर रोक के साथ 2003 में यथास्थिति का आदेश पारित किया गया। ध्यातव्य है कि अस्थाई मंदिर में राम लला की पूजा-अर्चना में कोई व्यवधान नहीं रहा। 30 जून, 2009 को जाॅच आयोग (लिब्राहन) ने 700 पृष्ठ की रिपोर्ट जिसमें भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा दिये गये साक्ष्यों के साथ आख्या भारत सरकार को प्रस्तुत की और 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित जगह को राम जन्मभूमि घोषित करने का निर्णय सुना दिया और परिसर को तीन भागों में बाॅटकर विवाद सुलझाने की कोशिश की किन्तु बात नहीं बनी और मामला सुप्रीम कोर्ट में जाकर अगस्त 2010 से लगातार सुनवाई के बाद 9 नवम्बर, 2019 को न्यायमूर्ती रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राम जन्मभूमि परिसर सहित समस्त विवादित भूमि हिंदू पक्ष को सौंपने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। बाद में केन्द्र सरकार नें भी सन् 1996 में अधिग्रहित की गई 67 एकड़ भूमि भी राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने की घोषणा कर दी और यह आदेश होते ही पूरे भारत में दिवाली मनायी गयी। लोगों का उत्साह चरम पर था, लोग आपस में चर्चा करते थे कि अपने राम को सैंकड़ों वर्षाें के बाद अपनी जन्मभूमि वापस मिली और इसको वापस पाने के लिये कितने संघर्ष और असंख्य बलिदान हुये। साथ ही संघ और वि0हि0प0 की प्रशंसा कि इन्ही संगठनो के सद्प्रयासों से आज इतना पवित्र दिन आया है। ज्ञात हो कि इसी आदेश में सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या क्षेत्र से बाहर 5 एकड़ भूमि मस्ज्दि निर्माण हेतु देने का भी आदेश दिया गया है।
हिन्दू अस्मिता के गौरव का दिन अब 5 अगस्त, 2020 आने वाला है, जब देश का 100 करोड़ हिन्दू अपने आराध्य की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्रथम ईंट देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी के कर-कमलों से नींव में रखे जाने का दृश्य देखकर अभिभूत होगा और राष्ट्र गौरव की यशस्वी पताका विश्व में भगवा लहर में लहराती हुई आसमान में फहराकर कृण्वन्तो विश्वमार्यम का सन्देश देगी।
महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ और अब उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ जी पूरी श्रद्धा और संवेदना के साथ रामलला का भव्य मंदिर बने और रामलला की अयोघ्या दिव्य स्वरूप धारण करे, इसकी तैयारी में जुट गये हैं। इसी क्रम में वे 25 जुलाई, 2020 को शिलान्यास की समीक्षा करने के लिये आयोध्या पहुॅचे।
गौरव के साथ ही इस मंदिर निर्माण हेतु उन हुतात्माओं को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि भी देना अपना कर्तव्य है, जिसमें हजारों संत/सामान्यजन जो मुगल काल में अपना प्राणोत्सर्ग किये वर्ष 1990 में कोठारी बंधु जैसे कार सेवक व अन्य रामभक्त जिन्होने अपने बलिदान से हिन्दू समाज को जागृत किया। आज वे हमारे बीच नहीं हैं किन्तु मेरा विश्वास है कि उनकी आत्मायें आज स्वर्ग से यह दृश्य देखकर जरूर आनन्दविभोर हो रही होंगी कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। पुनश्च उनके श्री चरणों में नमन कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूॅ।
जासु बिरह सोचहु दिन राती।
रटहु निरंतर गुन गन पाती।।
रघुकुल तिलक सुजन सुख दाता।
आयउ कुशल देव मुनि त्राता।।
(जिनके विरह में आप दिन-रात सोच करते रहते हैं और जिनके गुण समूहों की पंक्तियों को आप निरंतर रटते रहते हैं, वे ही रघुकुल के तिलक सज्जनों को सुख देने वाले देवताओं और मुनियों के रक्षक राम सकुशल वापस आ गये हैं।)
आइये हम सब इस गौरवमयी क्षण की आत्मिक अनुभूति से अपने को धन्य करें और राष्ट्र यज्ञ में अपने तन-मन-धन की आहूती देने के लिये हमेशा तत्पर रहें।
जयतु भारतम्, जयतु भारतराष्ट्र।
(डाॅ. पवनपुत्र बादल)
प्रबंध संपादक, राष्ट्रधर्म
महामंत्री (उ0प्र0), अखिल भारतीय साहित्य परिषद
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