कुछ साल पहले एक मित्र आया था..उसने बताया कि उसके UP के जिले में नवोदय है, केंद्रीय विद्यालय है..पर एक भी डॉन बोस्को नही है...एक भी सेंट सेवियर जैसा स्कूल नही.. कंवर्जन को लेकर ताना मारते हुए उसने कहा था - पूर्वोत्तर में खाने को भले नही है, लोगो के पास रहने घर भले न हो लेकिन स्कूल बड़े नामी नामी दिख जाते हैं.
कंवर्जन का लालच गरीबो पर ज्यादा असर करता है..घर मे खाने को न हो, मकान बोरदोईशिला के आक्रमण में उड़ गया हो..बारिश बदस्तूर जारी हो तो इंसान अपने बच्चों के मुंह ताकता है..और जंगलो में रहने वाला अनपढ लाचार आदिवासी कुछ मदद के बदले धर्म परिवर्तन स्वीकार लेता है. ये हकीकत है..उनकी डिफेंस में किया गया वक्तव्य नही.
लेकिन अनपढों के साथ एक दिक्कत है..जो कि मिशनरीज को मुसीबत में डाल देती है.अनपढ़ लोग अपने मान सम्मान और मूल्यों को लेकर अडिग होते हैं.वे बपतिस्मा के दौरान मील सारे इंस्ट्रक्शन को चंद दिनों में भूल जाते हैं और फिर से नामघरो और मंदिरों में जाने लगते हैं...मिशनरीज अपने NGO की मदद से उन्हें कागज़ात तक मे ईसाई बनवा लेते हैं..लेकिन इन पर मजाल है असर पड़ता हो..वही पढ़े लिखे कॉन्वेर्ट अगले दिन से अपने नाम के आगे थॉमस, अब्राहम जैसे सफिक्स जोड़ लेते हैं. क्रॉस लटका लेते हैं.ये नए नए बने क्रिस्टियन हिंदुत्व के बड़े आलोचक होते हैं.
चर्च को मंदिर के समांतर रखना गलत है..चर्च धार्मिक के साथ सामाजिक संस्था की तरह काम करती है.चर्च के पास विस्तारवाद की पूरी एक स्ट्रेटेजी होती है..जबकि मंदिर सिर्फ धर्म और पूजा पाठ से ही जुड़ा होता है..प्रेम संबंध यहां स्वीकृत और आम हैं..नार्थ की तरह टैबू नही..जाहिर है ब्रेक अप भी होता है.ऐसे में चर्च एक्टिव रहता है.रिश्ता टूटना तलाक की तरह ही पीड़ादायी होता है.क्योंकि पूरे समाज को प्रेम सबन्धो के बारे में जानकारी रहती है.ब्रेक अप से गुजरने वाली लगभग सारी अडोलसेन्ट, टीनएज , या फिर एडल्ट फीमेल को पास के चर्च से नन बनने के प्रस्ताव देर सबेर जरूर आते हैं.चाहे वो किसी भी धर्म से हो.
हिंदुत्व में विस्तारवाद का न होना मुझे इसकी एक कमजोरी लगता है.चर्च राज्य द्वारा पोषित होता है..विदेशो तक से फंड आते हैं.मंदिरों का पूरा मैनेजमेंट चढ़ावो और दानों पर निर्भर करता है.उसमे भी सरकार अपना हिस्सा ले लेती है.
सवाल ये आता है धर्म सुरक्षित हो तो कैसे हो ? पहले राजतंत्र था ...तो राजा धर्म को पोषित करता था..अब राजतन्त्र रहा नही..बाकी धर्मो को तो माइनॉरिटी के नाम पर विशेष अधिकार मिल जाते हैं .लेकिन हिंदुत्व का क्या हो ? इस वजह से मुझे धार्मिक संस्थाओं , गुरूओ का व्यापारऔर नीति निर्माण में शामिल होना जायज और नितांत आवश्यक लगता है.योगी और पतंजलि जैसी सैकड़ो लोगो को धर्म और राजनीति में आने की जरूरत है..लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि आप इन बातों को कितनी मान्यता देते हैं ? आप इनका कितना सपोर्ट करते हैं.
पूर्वोत्तर में धर्मांतरण का मुद्दा घुसपैठ के बाद दूसरे नंबर पर आता है.उदार होकर अगर कहें तो धर्मांतरण किसी का भी संवैधानिक रूप से मौलिक अधिकार है.लेकिन पूर्वोत्तर में धर्मांतरण को हम तीन भाग में बांट सकते हैं.
1. ऐच्छिक धर्मांतरण
2. प्रेरित धर्मांतरण
3. Coercive धर्मांतरण ( coercive की सही हिंदी नही पता.)
पूर्वोत्तर में धर्मांतरण ऐच्छिक रूप से बहुत कम होता है..धर्मांतरण का दूसरा स्वरूप यानी प्रेरित धर्मांतरण ज्यादा व्यापक है.इसमे पहले एक definite पापुलेशन को टारगेट किया जाता है.फिर उनके लिए ऐसी परिस्थितयां उत्पन्न की जाती हैं कि वे धर्मांतरण को चुन जाते हैं.इसमे षणयंत्र होता है..मैनीपुलेशन होता है.कुछ लुक्रेटिव आफर होते हैं.आफर चैनल वाइज होते हैं..कॉन्वेर्ट्स को जैसे अच्छे स्कूलों में एडमिशन की बात, मेडिकल इन्सुरेंस आदि का लालच..इनके एजेंट्स को फॉरेन ट्रिप तक के ओफर होते हैं. तीसरा है फोर्सफुल तरीका..उदाहरण के लिए बीस घरों की आबादी वाले रिमोट एरिया और जंगलो के बीच पंद्रह घर जॉइन करने के बाद 5 घर coercive तरीके से जोड़े जाते हैं.
पर इन सब तामझाम के बावजूद अनोफिशयली बमुश्किल तीस परसेंट लोग भी कन्वर्ट होकर नही रहते.मिशनरीज अपने नेक्स्ट टारगेट एरिया में जाते हैं और ट्राइब्स अपने पुराने फॉर्म में वापस आजाते हैं. हां इस दौरान गोपनीयता का ध्यान रखा जाता है.क्यो की कंवर्जन होने के बाद ही बाकी लोगो पता चलता है.
ऐसे में असम की महत्ता बढ़ जाती है. अगल बगल स्टेट में कंवर्जन जारी होने के बावजूद अगर जंगलो के भीतर रहने वाली आबादी को छोड़ दें तो असम में ये खेल उतना नही हिट नही हो पाया.
अच्छा मित्र सवाल पूछते हैं कि कैसे पता नही चल पाता आप लोगो को ? कुछ मित्र ताने मारते हैं कि कैसे लोग हैं जो एक बोरी चावल पर बिक जाते हैं.ये सवाल बड़े बचकाने और सतही हैं असल मे. मुफलिसी कुछ भी कर जाती है. खैर इस पर अलग से लिखूंगी किसी दिन.
एक बड़ा कारण है - पूर्वोत्तर की विविधता.असल मे कंवर्जन और घुसपैठ दोनो में पूर्वोत्तर की विविधता का दुरुपयोग हुआ है. पूर्वोत्तर के भीतर ही ऑटोनोमस रीजन हैं ...स्पेशल ट्राइबल टेरोट्रीज हैं..ILP का प्रावधान हैं...क्यों ? ये भले नॉर्थईस्टर्न संस्कृति को बचाने के लिए किए गए हैं लेकिन इन्ही की आड़ में सब कुछ हो जाता है.
देश के अंदर क्या जरूरत है ऑटोनोमस रीजन और ILP की...क्या लॉ एंड आर्डर और समवैधानिक टूल पर्याप्त नही हैं. असम नार्थईस्ट के सेंटर में है लेकिन पूर्वोत्तर के ही कई राज्यो में ही जाने के लिए हमे ILP लेनी होती है...ये बहुत बड़ा हिन्ड्रेन्स है..संस्कृति और सभ्यता की सुरक्षा सामाजिक दायित्व का विषय है...कानूनी अवरोध और पब्लिक मूवमेंट रेगुलेशन से मिला क्या है...असम के चारो तरफ के राज्य इसाई बहुल हो चुके..असम में ही मुस्लिम घुसपैठ चरम पर पहुच गया....सेंटर में हिन्दू बहुल असम है...पता नही क्यों मुझे ये सब ILP वगैरह एक साजिश लगती है.इनका ट्राइबल संस्कृति को बचाने का उद्देश्य फर्जी लगता है.ये सिर्फ हिन्दू बहुल असमियों का मूवमेंट अन्य राज्यो में रोकने का षणयंत्र प्रतीत होता है.ताकि वहां मिशनरीज निर्बाध रूप से अपना काम कर सकें..
( गिताली सईकिया की फेसबुक वाल से )