राहुल गांधी की इस तस्वीर पर सोशल मीडिया पर मचा है बवाल
बड़ा घातक दर्द हुआ मुझे स्वयं को पापी पढ़कर। यह बात कहना नहीं चाहता था पर मन मे लगातार चल रही थी। जैसे ही सोचता आंखो मे आंसू आ जाते। मन करूणा से भर जाता है , अंदर से कहीं द्रवित हो जाता मैं ...
एक बात याद आने लगती। जिनसे कभी मिला नहीं उनको आभासी दुनिया में आत्मा से सम्मान दिया। शुरूआत से पता था कि हमारी वैचारिकता में अंतर है , नदी के दो किनारों की तरह अलग-अलग विचार परंतु दो किनारों के बीच खाली जगह में जो जल भरा रहता है , वही जीवन है। इसलिए राजनीतिक मुद्दों और विचारधारा को अलग करते हुए जिंदगी के विचार से बडप्पन का सम्मान दिया।
शेष कुछ और मतलब नहीं रखा। जीवन की स्वतंत्रता को महसूस करते हुए एक सम्मान तिरोहित किया। तिरोहित इसलिए कि बदल में कोई उम्मीद नहीं रखी। हृदय से आभासी संसार में संस्कार प्रकट किये। दो - चार वर्ष में सौ - दो सौ या हजार दफा शीष नवाया होगा। हमेशा मन - मस्तिष्क से प्रणाम किया।
जब एक मित्र भाव की जरूरत पड़ी तब मित्र भाव से भी संवाद किया। उन्होंने भी समय-समय पर खूब प्रशंसा की और बदले मे सम्मान दिया। लेकिन मेरी दृष्टि निज दृष्टि रही। मैंने लौकिक दृष्टि और अलौकिक दृष्टि निजी दृष्टि से ही व्यक्ति और समाज व राजनीति को महसूस किया।
यह आभासी दुनिया है। यहाँ मैंने कभी कोई लक्ष्य नहीं तय किया बस लिखता गया। कभी-कभी प्रयोग भी किया लिखने में और जानने के लिए कुछ भी लिख दिया। उससे मुझे बहुत कुछ मिला। जो कुछ लिखा वो फेसबुक पर साझा कर दिया , फिर यह भी तय है कि मैंने लिखे हुए पर शोध किया। संशोधन कर उत्कृष्ट बनाया तो मेरे लिए फेसबुक ' रफ काॅपी ' अधिक से अधिक रही , बहुत कम यहाँ फेयर किया मैंने।
अब कहता हूँ मुद्दे की बात। बेशक राहुल गांधी आपकी पसंद हो सकते हैं , मेरी भी कभी पसंद हो सकते हैं या कभी रहे हों मेरी पसंद जो अब ना पसंद हों। होने को कुछ भी हो सकता है , संभव हो कि कभी हम ही कहने लगें कि अब राहुल गांधी ही विकल्प हैं पर राहुल गांधी पहले संकल्प छवि का अवतरण करें। जिस दिन राहुल गांधी अपनी संकल्प छवि जनता के समक्ष प्रस्तुत कर देंगे फिर मेरे क्या ? सबके विकल्प राहुल गांधी हो जाएंगे।
अभी उनकी समस्त राजनीति की बड़ी उपलब्धि यही है कि विजयी सीट अमेठी से वायनाड तक की यात्रा की है। जहाँ की जनता के हृदय में राहुल गांधी युवराज की तरह वास करते थे , वहाँ से उनका स्वयं का विश्वास हिल गया और वायनाड में विजयी शरण लेनी पड़ी।
अमेठी और वायनाड का अंतर भी सब जानते हैं। यहाँ वोट बैंक का अंतर है। उत्तर प्रदेश और केरल के माहौल का अंतर है। किन्तु गांधी परिवार सहित आठ प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से बने हैं। उसी उत्तर प्रदेश से राहुल गांधी ने स्वयं जाने का निर्णय लिया और एक सांसद की सीट स्वयं के लिए व्यक्तिगत कर्म - सत्कर्म से सुरक्षित नहीं रख सके। यह राहुल गांधी की अब तक की संक्षिप्त राजनीतिक यात्रा है। एक ऐसे परिवार का युवराज जिसके पास साधन - संसाधन की कमी नहीं है पर जनता के मन में अपना जादू नहीं चला पा रहा है ? क्यों ? यह मंथन राहुल गांधी को करना चाहिए !
अब रही मेरी बात तो अगर मैंने बदलती छवि के साथ फेसबुक पर लिख दिया कि चेहरे का यह हाल कैसे ? दो युवा साथियों के खो जाने का गम है क्या ? जिसके दो युवा साथी खो जाएं अर्थात छोड़कर चले जाएं। वह अपने भविष्य को साध नहीं सकते। जो साथी उनकी जान हुआ करते थे। जिनके बल पर जनता जानती थी कि राहुल गांधी के दो हाथ हैं , एक सचिन पायलट और दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया। जहाँ भारत का युवा नई राजनीति की मन ही मन परिकल्पना कर रहा हो वहाँ कमलनाथ , अशोक गहलोत और दिग्विजयसिंह जैसों में कांग्रेस या गांधी परिवार को अपना भविष्य नजर आता है तो अपनी गति के स्वयं जिम्मेदार हैं।
मैंने फेसबुक पर बड़े साधारण से भाव से लिखा था। आखिर मैं क्यों मजाक उड़ाऊंगा ? मुझे मजाक उड़ा कर क्या मिलेगा ? स्वयं अहसास है मुझे यदि मैं किसी का मजाक बनाऊंगा तो मेरा मजाक स्वयं बन जाएगा।
फिर आप मित्र कैसे हो ? आप बड़े कैसे हो ? आपका जीवन भर का अनुभव कैसा है ? जो रिश्ता आपने बनाया उसके भरोसे की नींव इतनी कमजोर कैसे है ? यह भरोसा होना ही चाहिए कि नहीं ये मजाक नहीं है भले समय - मुद्दे और राजनीति के वश मे कुछ लिख गया होगा। यह अंतिम सच है कि मैं राहुल गांधी क्या , किसी का भी मजाक नहीं उड़ाता हूँ। मेरी आत्मा - मेरा मन इजाजत ही नहीं दे सकता।
अब सार तत्व यह है कि यदि राहुल गांधी का मजाक बना भी तो क्या राहुल गांधी ने शिकायत की ? क्या उनको अहसास हुआ कि सौरभ ने मेरा मजाक बना दिया ? यह नैतिक अधिकार भी उनका ही है कि वह आएं आपत्ति जताएं और बदले मे मुझे कुछ भी कह लें। लेकिन बात आपके निज मन की है कि आपको मुझे बुरे शब्द कहने हैं वरना राहुल गांधी का क्या संबंध है ?
जब मैंने पढ़ा कि मैं पापी हूँ। बस रह नहीं गया और अंतिम प्रणाम कर उन्हें विदा कर दिया। अफसोस सिर्फ इतना सा हुआ कि आभासी संसार में व्यक्तिगत रूप से किसी को इतना सम्मान दो तो उस सम्मान की भी क्या हैसियत रह गई ? मुझे और बहुत कुछ कह लिया जाता तो सब ठीक था पर सोचिए कि एक राहुल गांधी को चंद शब्द लिख देने से मैं पापी हूँ ! और तो और मैंने पाप बहुत किए हैं , कितना दुखद है कि एक साधारण से टिप्पणी से किसी को पापी कह दिया तो सोचिए पाप कहाँ है ? मैंने राजनीतिक विचारधारा , समय और मुद्दों के आधार पर किसी को कभी पापी नहीं कहा जबकि अपने से ज्यादा अपशब्द किसी की वाल पर पढ़े।
अपने निज संबंध मे इतना तो होना चाहिए कि सम्मान का विश्वास हो। यदि निजी रिश्ते मे सम्मान और विश्वास नहीं है तो वही पाप है और इससे बड़ा पाप कुछ और नहीं हो सकता। इसलिए सम्मान सहित अलविदा कहना भी जीवन का मर्म है।
लेखक: सौरभ द्विवेदी, समाचार विश्लेषक