हर ताकतवर आदमी लड़के का अगूंठा काट लेना चाहता है
नंदन श्रेष्ठ ब्राह्मण पुत्र थे। ब्राह्मणों के हित के लिए एक ब्राह्मण संगठन के कर्ताधर्ता थे। उनको ब्राह्मण संगठन के सबसे बड़े मुखिया की जिम्मेदारी दी गई थी। नंदन जनपद में ब्राह्मण एकता और ब्राह्मण हित के बड़े पैरोकार थे। वह चौराहे में , सड़क पर और किसी भी कोने पर ब्राह्मण के समृद्ध होने की बात करते रहते।
इस बीच परशुराम जयंती वर्ष मे एक बार आती। संगठन के सबसे बड़े मुखिया की ओर से जनपद में जयंती मनाने का निर्देश प्राप्त हुआ। नंदन ने घोषणा कर दी कि प्रत्येक वर्ष खाना - पीना के साथ परशुराम जयंती मनाई जाएगी , जिसमें विप्र जन ब्राह्मण हित पर मंथन करेंगे। विद्वत जनों को वक्तव्य का अवसर दिया जाएगा।
आखिर एक दिन जयंती का दिन आ गया , इससे पूर्व समस्त तैयारियां कर ली गईं। अब जयंती के दिन वक्तव्य हेतु वक्ता का नाम तय होना था। नंदन के सिवाय ब्राह्मण जाति के एकाध और कर्ताधर्ता की जिम्मेदारी थी कि वक्ताओं के नाम लिख लिए जाएं।
वक्ताओं का नाम लिखने वाले एक चतुर्वेदी जी थे। चतुर्वेदी जी भी खासे प्रसिद्ध आदमी और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। वह युवा उम्र के थे और कहीं ना कहीं छात्र राजनीति का खून उबाल मारता। शायद इसलिये उन्होंने एक युवा का नाम वक्ता के रूप मे लिख दिया , वह नाम सत्यार्थ द्विवेदी था।
नंदन खासी जिम्मेदारी मे व्यस्त इधर-उधर घूम रहे थे। घूमते-घूमते नंदन चतुर्वेदी जी की लिखी हुई डायरी की ओर आ गए। उसमे नंदन ने कार्यक्रम की रूपरेखा देखी।
नंदन ने वक्ताओं मे नाम देखे। तमाम नाम से एक युवा सत्यार्थ का नाम वक्ता से मिटा कर माल्यार्पण में रख दिया। अब नंदन इससे ज्यादा करते भी क्या ?
किन्तु नंदन यह नहीं देख सके कि सत्यार्थ उनके पीछे ही खड़ा है। उसने अपना नाम कटते - पिटते और मिटते हुए देखा। वह देख ले गया कि वक्ता से नाम हटाकर माल्यार्पण पर कर दिया गया है।
सत्यार्थ चुपचाप रहा आया। उसने सोचा कि नंदन नहीं चाहते कि मुझे मंच मिले। वह यह भी नहीं कर सकते थे कि नाम पूरी तरह से मिटा दें इसलिए मजबूरी में मेरा नाम माल्यार्पण मे कर दिया गया। ठीक उसी वक्त सत्यार्थ सोचता रह गया कि नंदन का कोने - कोतरे वाला ब्राह्मण हित यही है कि एक युवा की आवाज का गला रेत दो , कहीं वह अन्य मंच की तरह या पूर्व के मंच की तरह अच्छा वक्तव्य दे गया तो क्या होगा ? नंदन को यह बात पता थी कि सत्यार्थ को आत्मीय वक्तव्य देने में ब्रह्मांड की कृपा है और इसलिए नंदन जैसे ब्राह्मण हितैषी सत्यार्थ कि आवाज की गला दबाकर हत्या कर देना चाहते हैं।
पीछे से सब देखने के पश्चात सत्यार्थ ने मन ही मन निर्णय लिया कि साधु-संत का माल्यार्पण करना है। अतः माल्यार्पण तक कार्यक्रम स्थल मे रूक जाता हूँ। उसने ऐसा ही किया।
जब माल्यार्पण हेतु सत्यार्थ का नाम पुकारा गया। वह सीने पर दर्द समेटे होठो से मुस्कुराते हुए माल्यार्पण करने पहुंचा। उसने माल्यार्पण किया फिर वहाँ से वापस घर की ओर सोचते हुए चला आया।
सत्यार्थ सोचता रहा कि नंदन जैसे लोग ही ब्राह्मण एकता , ब्राह्मण हित की बात करते हैं। लाखों के चंदा की हजारों की पूड़ी - सब्जी खिलाते हैं। परशुराम जी की जय -जय कार करते हैं और जब - तब फरसा उठाते हैं। किन्तु परशुरामजी का फरसा अपने श्रेष्ठता बोध और हनक के लिए अपनों पर ही चलाते हैं। सत्यार्थ सोचता है कि ब्राह्मण हित की बात ढपोरशंख की तरह है जो बड़ी से बड़ी घोषणा तो करता है पर देता कुछ नहीं , करता कुछ नहीं। हाँ ढपोरशंख का हित जरूर सध जाता है।
"हर ताकतवर आदमी लड़के का अगूंठा काट लेना चाहता है"
लेखक: सौरभ द्विवेदी, समाचार विश्लेषक