शिक्षक ने बागवानी कर पेश की नजीर, फलों के जरिए मजबूत हुई आर्थिक स्थिति
सच ही कहा गया है की खेती किसानी बागवानी घाटे का सौदा नहीं है। जरूरत है तो परिश्रम व लगन से कार्य करने की। ऐसा...
सच ही कहा गया है की खेती किसानी बागवानी घाटे का सौदा नहीं है। जरूरत है तो परिश्रम व लगन से कार्य करने की। ऐसा ही कर दिखाया है बांदा जनपद के ग्राम मनीपुर निवासी शिक्षक आलोक सिंह ने। इन्होंने अपने 2 एकड़ खेत में फलों की खेती कर न सिर्फ आर्थिक स्थिति को मजबूत किया बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी अहम भूमिका निभाई। पेशे से अध्यापक आलोक सिंह को खेती किसानी विरासत में मिली। खासकर खेती करने के गुण अपनी मां से सीखा। पहले खेती में माता-पिता का हांथ बंटाते रहे और अब 2 हेक्टेयर भूमि पर बागवानी शुरू कर दी।
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उनके बगीचे में 300 आम के पेड़, 150 अमरूद और नींबू आंवला, कटहल, मुसम्मी और संतरा जैसे फलों के पौधे फल देने लगे हैं। इनमें आम और अमरुद की कई प्रजातियों के पेड़ लगे हैं। डीएवी कॉलेज में शिक्षक आलोक बताते हैं कि कृषि विभाग के बागवानी के मानक के तहत मैंने बागवानी शुरू की। जिसमें फलों के पौधों के अलावा इस बगीचे में तालाब भी बनाया गया है। जिसमें मछली पालन भी किया जा रहा है।उन्होंने बताया कि बागवानी से साल भर में लगभग ढाई लाख की आमदनी होती है। जिससे उनके और परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।
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वह बताते हैं कि बागवानी का मुझे शुरू से शौक रहा है और अब तो यह जुनून में बदल रहा है। कॉलेज से मैं सीधे बगीचे पहुंचता हूं और वहां लगे कर्मचारियों की मदद से पौधों की देखभाल भी करता हूं। उन्होंने बताया कि इस समय मैंने हिमाचल प्रदेश से चीकू, अंजीर, लीची आदि के पौधे भी मंगा कर लगाए हैं। जिससे आने वाले दिनों में इन पौधों में फल लगेंगे जिससे हमारी मेहनत सार्थक होगी। बताते चलें कि 5 वर्षों से बागवानी क्षेत्र में अटूट मेहनत का सुखद परिणाम गत दिवस तब देखने को मिला। जब कृषि विभाग द्वारा अमरूद व प्याज के उत्पादन में उन्हें और उनकी माताजी श्रीमती संतोष को प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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