अनुज हनुमत और जुगेंद्र ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में पेश किया चित्रकूट की प्राचीन धरोहर से जुड़ा शोध पत्र
जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ,रानपुर कोटा राजस्थान में गुरुवार को शुरू हुए रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया के तीन दिवसीय 26वें वार्षिक ...
चित्रकूट के युवा पुरातत्वविदों ने इतिहासकारों को प्रभावित किया
जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ,रानपुर कोटा राजस्थान में गुरुवार को शुरू हुए रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया के तीन दिवसीय 26वें वार्षिक संगोष्ठी का सफ़लतम आयोजन संपन्न हुआ। इस संगोष्ठी में देश विदेश के जाने माने इतिहासकार, पुरातत्वविद और शोध छात्र पहुँचे। रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से कोटा में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों से इतिहासकार , पुरातत्वविद् और शोध छात्र पहुँचे । इस संगोष्ठी में चित्रकूट ज़िले से दो युवा पुरातत्वविदों ने भी सहभागिता की । रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया के विशेष आमंत्रण पर चित्रकूट के यूथ आइकॉन युवा पुरातत्वविद अनुज हनुमत और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के परास्नातक छात्र जुगेंद्र मिश्रा में भी तीन दिवसीय संगोष्ठी में हिस्सा लिया। संगोष्ठी के तीसरे दिन चित्रकूट के दोनों युवा पुरातत्वविदों ने संयुक्त रूप से अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। “चित्रकूट क्षेत्र के पौराणिक स्थलों के समीप मौजूद शैलचित्र /शैलकला” विषय पर दोनों युवाओं से शोध पत्र प्रस्तुत किया । इस शोध पत्र को देखकर वहाँ मौजूद देश विदेश के जाने माने इतिहासकार और शोध छात्र बहुत प्रभावित हुए ।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व निदेशक देश के जाने माने इतिहासकार डॉ राकेश तिवारी ने शोध पत्र की तारीफ़ करते हुए कहा की चित्रकूट में प्राचीन इतिहास से जुड़े कई साक्ष्य हैं जिन पर शोध की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि अनुज हनुमत और उनकी टीम शैलचित्रों के अध्ययन और संरक्षण हेतु जो कार्य कर रही है वह प्रशंसनीय है । रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ गिरिराज सिंह ने कहा चित्रकूट के शैलचित्र प्राचीन मानव इतिहास से जुड़े अहम दस्तावेज हैं जिन पर शोध का कार्य होना चाहिए । अनुज और उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत किया शोध पत्र काफ़ी प्रभावपूर्ण है । वहीं इस संबंध में जब मीडिया द्वारा युवा पुरातत्वविद अनुज हनुमत से जानकारी ली गई है तो उन्होंने बताया उनकी टीम चित्रकूट कल्चरल हेरीटेज द्वारा चित्रकूट में मौजूद प्राचीन मानव सभ्यता से जुड़े शैलचित्रो की खोज , उनके संरक्षण और संवर्धन हेतु लगातार कार्य कर रही है । राष्ट्रीय संगोष्ठी में हमारे द्वारा जो शोध पत्र प्रस्तुत किया गया उसके माध्यम से हमने इतिहासकारों को यह बताने का प्रयास किया की यह महज संयोग नहीं है की चित्रकूट के जिन जिन स्थानों में शैलचित्र हैं वहाँ आस पास आज भी पुराने आश्रम , गुरुकुल और मंदिर हैं ।
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यह स्थान ऊर्जा के केंद्र हैं शायद यही कारण है की बाद की परंपराओं का और मनुष्य का सीधा जुड़ाव इन शैलाश्रयों वाले स्थान से आज भी है ।खाम्भा , करपटिया के नज़दीक खंभेश्वर महादेव, बाणा बाबा शैलाश्रय के नज़दीक ककरेडी प्राचीन नगर , कोटरा शैलाश्रय के नज़दीक ऋषियन आश्रम , बड़पथरिन के नज़दीक मार्कण्डेय आश्रम और सिरमौर में योगिनी माता मंदिर के नज़दीक प्राचीन शैलाश्रय इस बात के सबूत हैं कि प्राचीन शैलाश्रय हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं । हज़ारों वर्ष से लगातार मनुष्य ने अपने पूर्वजों की कर्मभूमि का उपयोग तप, साधना , योग और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया । यह क्रम आज भी बदस्तूर जारी है । इसलिए चित्रकूट में मौजूद प्राचीन शैलाश्रयों का संरक्षण और शोध आवश्यक है ।
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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ राकेश तिवारी ( पूर्व महानिदेशक , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) , विशिष्ट अतिथि डॉ गिरिराज सिंह ( अध्यक्ष ,रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया ) , आर.डी. मीना ( चेयरपर्सन , जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ) , प्रो. डी.पी. तिवारी ( कुलपति , जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ) ,डॉ दिबिशादा ग़रनायक ( महासचिव ,आरएएसआई) ,प्रो यूसी चटोपाध्याय , डॉ एन के शर्मा (कुलसचिव) और डॉ विजय कुमार ( लोकल सेकेटरी) की विशेष उपस्थिति रही।
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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ राकेश तिवारी ने प्राचीन शैलकला और उसके क्रमिक विकास को लेकर अपना उद्बोधन दिया । कुलपति प्रो डी.पी तिवारी ने पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर का जीवन परिचय प्रस्तुत किया । इसके बाद प्रो गिरिराज सिंह द्वारा वाकणकर मेमोरियल लेक्चर प्रस्तुत किया गया । डॉ अंजलि रमारिया और डॉ नमिता गोश्वामी द्वारा कार्यक्रम उद्घाटन सत्र का संचालन किया गया । उद्घाटन सत्र में रॉक आर्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया के सक्रिय सदस्य बेनी कुरियन , डॉ रामकृष्ण , डॉ नीलम सिंह , अनुज हनुमत , जुगेंद्र प्रसाद मिश्र , भाग्यश्री सहित देश विदेश से आये प्रबुद्ध जन , शोध छात्र एवं विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित रहे ।