कामदगिरि पर्वत के दर्शन मात्र से दूर होते हैं जीवन के सारे दोष : रामस्वरूपाचार्य महाराज
राष्ट्रीय रामायण मेले का समापन बतौर मुख्य अतिथि कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगद्गुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य...
कहा कि प्रेम, समर्पण, विनम्रता की भूमि है चित्रकूट
51वें राष्ट्रीय रामायण मेले का किया समापन
समारोह में दिखा कला, संस्कृति, सभ्यता, विद्वता का अनूठा संगम
चित्रकूट। राष्ट्रीय रामायण मेले का समापन बतौर मुख्य अतिथि कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगद्गुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य महाराज ने करते हुए आयोजन की सफलता पर बधाई दी। कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने माल्यार्पण व शाल भेंटकर स्वागत किया। पांच दिवसीय समारोह में कला, संस्कृति, सभ्यता, विद्वता का अनूठा संगम देखने को मिला। कलाकारों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने लोगों का दिल जीता तो विद्वानों के व्याख्यानों ने समाज को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शो को जीवन में अपनाने का संदेश दिया। देश के विभिन्न प्रांतों से आए मानस मर्मज्ञों की श्रीराम चरितमानस पर की गई समीक्षा ने लोगों को जीवन जीने की कला सिखाई।
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मंगलवार को सीतापुर स्थित रामायण मेला मंडपम में चल रहे पांच दिवसीय 51वें राष्ट्रीय रामायण मेला महोत्सव का भव्य समापन हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत जगदगुरु स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने पूजा अर्चना कर आर्शीवचन दिए। मेले के कार्यकारी अध्यक्ष प्रशांत करवरिया ने माल्र्यापण व शाल भेंट कर स्वागत किया। जगदगुरु ने अपने उद्बोधन में संपन्न हो रहे राष्ट्रीय रामायण मेले के बारे में कहा कि ऐसा मेला देश में कहीं नहीं होता। यह मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है। जिसकी सराहना कई देशों में होती है।
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उन्होंने चित्रकूट की भूमि को प्रेम की भूमि बताया। कहा कि अहंकार यदि जीवन में आया तो उसे कोपभाजन का शिकार होना पडेगा। चित्रकूटधाम की भूमि से प्रभु श्रीराम का मन एवं उनके सभी अंग यहां की रज से जुडे हुए हैं। इस भूमि को विनम्रता की भूमि बताया। कहा कि यहां के निवासियों को विनम्र बनना पडेगा। अति प्रिय मोहि यहां के वासी श्रीराम ने कोल किरातों को पुत्र के रूप में स्वीकार किया था। भक्त में जिज्ञासा की भूमि होना चाहिए। यह समर्पण की भूमि हे। जगदगुरु ने कहा कि मृत्यु के पूर्व जीवन की सारी गलतियां याद आती है। अयोध्या के लोग कैकेई को कालरात्रि बताते थे, परन्तु श्रीराम ने कैकेई को चित्रकूट आने पर राम वनवास के लिए दोषमुक्त किया।
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कामदगिरि पर्वत की महत्ता बताते हुए कहा कि जीवन के सारे दोष दर्शन मात्र से दूर होते हैं। श्रीराम ने चित्रकूट के कामदगिरि में तप किया था। जिसके चलते मात्र दर्शन से मानव के सब विषाद समाप्त होते हैं। राम और भरत मिलन के समय जहां चारो भाई पूर्व में बिछडे थे उनका सबका मिलन हुआ। मंच में विशिष्ट अतिथि के रूप में जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो. शिशिर कुमार पांडेय मौजूद रहे।
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इस मौके पर शिवमंगल शास्त्री, प्रद्युम्न दुबे लालू, मनोज मोहन गर्ग, विनोद मिश्र, राजेन्द्र मोहन त्रिपाठी, घनश्याम अवस्थी, मो यूसुफ, राम प्रकाश श्रीवास्तव, हेमंत मिश्रा, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सूरज तिवारी, कलीमुद्दीन बेग, नत्थू प्रसाद सोनकर, सत्येन्द्र पांडेय, इम्त्यिाज अली लाला, राजेन्द्र बाबू, घनश्याम अवस्थी, डा रामलाल द्विवेदी, रवि कौशल, विनोद पांडेय, मंसूर अली, विकास आदि मौजूद रहे।