दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिगाड़ा आम आदमी पार्टी का खेल
कहा जाता है कि जिसको जल्दी सफलता मिलती है, वह उस सफलता को यथावत नहीं रख सकता। संघर्षों से मिली सफलता...
 
                                 
सुरेश हिंदुस्तानी
कहा जाता है कि जिसको जल्दी सफलता मिलती है, वह उस सफलता को यथावत नहीं रख सकता। संघर्षों से मिली सफलता अपने साथ स्थायित्व और अनुभव दोनों लेकर आती है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ऐसी ही सफलता मिली, जिसे संभालने का राजनीतिक अनुभव उनके पास नहीं था। लोक लुभावन वादे एक निश्चित अवधि के बाद अपना असर खो देते हैं, वह लम्बे समय तक सफलता का आधार नहीं बन सकते। दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगभग यही दिखाई दिया। केजरीवाल को बिना लम्बे परिश्रम के सत्ता मिल गई, जिसे वे स्थायित्व नहीं दे सके। वे खुद भी चुनाव हार गए और पार्टी में दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया को भी पराजय का सामना करना पड़ा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। इसमें अब तक अपने आपको अपराजेय मान रही आम आदमी पार्टी को बहुत बड़ी निराशा हाथ लगी है। भारतीय जनता पार्टी के लिए स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने का रास्ता तैयार हो गया है। चुनाव परिणाम के बारे में अध्ययन किया जाए तो इसका संकेत मिलता है कि आम आदमी पार्टी का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस ने किया। इससे विपक्ष का वोट विभाजित हो गया। इसका आशय यह भी है कि पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी को जो आशातीत समर्थन मिला, वह समर्थन केवल आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं के प्रति पूरा समर्थन नहीं था। कहा जाता है कि पिछले चुनाव में अगर कांग्रेस का अंदरूनी समर्थन नहीं होता तो आम आदमी पार्टी राजनीतिक आकाश में चमक नहीं बिखेर पाती। जहां तक पंजाब में आम आदमी पार्टी के सरकार बनाने की बात है तो यह देखा गया कि वहां चुनाव के समय दिल्ली की योजनाओं को प्रचारित किया गया, जिसका राजनीतिक लाभ पार्टी को मिला।
दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का अध्ययन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि इस बार अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस को आईना दिखाने के प्रयास में अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। अगर अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस की बात मानकर गठबंधन कर लेते तो चुनाव परिणाम की तस्वीर कुछ और होती, लेकिन अरविन्द केजरीवाल का अहंकार उन्हें ले डूबा। हम जानते हैं कि एक बार आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि “मोदीजी दिल्ली में आम आदमी पार्टी को इस जन्म में तो हरा नहीं सकते।” ऐसी भाषा को सुनकर यही लगता है कि केजरीवाल को अहंकार हो गया था। दूसरी बात यह कि उन पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे, इन सब आरोपों पर उन्होंने हमेशा भाजपा पर निशाना साधने का काम किया। केजरीवाल की तरफ से भाजपा पर लगाए गए तमाम आरोपों को दिल्ली की जनता ने झूठ माना। केजरीवाल इस तथ्य को भूल गए कि भाजपा का दिल्ली में व्यापक राजनीतिक प्रभाव है। लोकसभा चुनाव में बार-बार भाजपा को दिल्ली की सभी सीटें प्राप्त होना, इसे प्रमाणित करता है। विधानसभा में भाजपा को भले कम सफलता मिली रही हो लेकिन इससे भाजपा के राजनीतिक प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
दिल्ली चुनाव में इस बार जिस प्रकार से आधुनिक संचार तकनीक का प्रयोग किया गया, उसने भी केजरीवाल की कथनी और करनी की भिन्नता को उजागर किया। केजरीवाल एक बात पर टिके दिखाई नहीं दिए। वे कभी कुछ तो कभी उसके विपरीत दिखाई दिए। यमुना साफ करने के नाम पर बार-बार वादे करना केजरीवाल के लिए भारी पड़ गया। यह बात सही है कि वादे करना सरल है, उनको पूरा करना उतना ही कठिन है। केजरीवाल जो वादे कर रहे थे, वे वही वादे थे, जो उन्होंने दस वर्ष पूर्व किए थे। उनमें से कई बड़े वादे अब तक पूरे नहीं किए जा सके। सबसे बड़ा वादा यमुना साफ करने का ही था। इसके अलावा भ्रष्टाचार समाप्त करने के नाम पर गठित आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल खुद ही भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खा चुके थे। हद तो तब हो गई, ज़ब वे अपनी सरकार को जेल से ही चलाने लगे। उधर, उनको ज़मानत मिलने पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट निर्देश दिया कि केजरीवाल न तो मुख्यमंत्री कार्यालय में जा सकते हैं और न ही किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। केजरीवाल अभी भी आरोपी हैं, इसलिए उनका मुख्यमंत्री बनना असंभव ही था, क्योंकि अगर वे चुनाव जीतते तो बिना काम के मुख्यमंत्री ही रहते। ये सब भ्रष्टाचार के आरोप के कारण ही हुआ।
आम आदमी पार्टी के सत्ता से बाहर होने के बारे में यह भी कहा जा रहा आम आदमी पार्टी को दूसरों ने कम उनके अपनों ने ही पराजित किया है। पार्टी के कई बड़े नेता इससे नाराज थे कि आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री क्यों बनाया जबकि पार्टी में इस पद के कई दावेदार थे। रही-सही कसर कांग्रेस ने पूरी कर दी। कहा यह भी जा रहा है कि इंडी गठबंधन का बिखराव भी आम आदमी पार्टी की पराजय का कारण बना। अभी तक राजनीतिक शून्यता का टैग लगा चुकी कांग्रेस ने इस चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया। कांग्रेस ने हालांकि उन्हीं क्षेत्रों में बहुत परिश्रम किया, जहां उनका व्यापक प्रभाव था। लगभग बीस सीटों पर किए गए इस प्रयास के कारण भले कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिली लेकिन कांग्रेस के इसी प्रयास ने भी आम आदमी पार्टी की विदाई का रास्ता तैयार किया।
पिछले लोकसभा चुनाव में साथ जीने-मरने की कसम खाने वाले भाजपा विरोधी राजनीतिक दल एक मंच पर आकर मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे, लोकसभा चुनाव में कहीं-कहीं ऐसा दिखा भी, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल अकेले मैदान में कूद गए। कांग्रेस भी मैदान में आ गई और विपक्ष का वोट, जो अब तक केजरीवाल को मिलता था, वह नहीं मिला। इसलिए कहा जा सकता है कि भाजपा के लगातार व्यापक प्रयासों के साथ-साथ कांग्रेस की अपनी जीत के लिए की गई मेहनत, आम आदमी पार्टी की चुनावी हार की पटकथा लिख दी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
हिन्दुस्थान समाचार
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