बुंदेलखंड राज्य की मांग तेज, समर्थकों ने पीएम मोदी को खून से लिखा पत्र
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग एक बार फिर जोर पकड़ती दिखी...
मांग न मानी गई तो व्यापक आंदोलन की चेतावनी
बांदा। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग एक बार फिर जोर पकड़ती दिखी। इस मौके पर बुंदेलखंड राज्य के समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने रक्त से पत्र लिखकर भेजा और स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि जल्द उनकी मांग पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करने को बाध्य होंगे।
इस संबंध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय राज्य पुनर्गठन महाधरना आयोजित किया गया, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से छोटे राज्यों की मांग करने वाले संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। धरने में बुंदेलखंड के साथ-साथ पूर्वांचल, मिथिला, सीमांचल-कोसी, महाकौशल, सौराष्ट्र-कच्छ सहित अन्य प्रस्तावित राज्यों के गठन की मांग को प्रमुखता से उठाया गया।
धरना स्थल पर मौजूद बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के अध्यक्ष इंजीनियर प्रवीण पांडेय ने कहा कि वर्ष 2014 में झांसी में आयोजित एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पृथक बुंदेलखंड राज्य के गठन का आश्वासन दिया था। उन्होंने कहा कि आज उसी वादे की याद दिलाने के लिए समर्थक यहां एकत्र हुए हैं।
उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वाजपेयी जी ने अपने छह वर्ष के कार्यकाल में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे तीन नए राज्यों का गठन कर इतिहास रचा था, जबकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार लगातार तीसरी बार सत्ता में है। इसके बावजूद बुंदेलखंड की मांग अब तक अधूरी है।
प्रवीण पांडेय ने कहा कि बुंदेलखंड की धरती हमेशा से संघर्ष और क्रांति की प्रतीक रही है और पृथक राज्य बनाना यहां के लोगों का संवैधानिक अधिकार है, जिसे लेकर ही आंदोलन जारी रहेगा।
धरने में शामिल पूर्वांचल राज्य जनआंदोलन के अनुज राही हिंदुस्तानी और राजेश पांडेय ने कहा कि बड़े राज्यों के भीतर कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां विकास की गति बेहद धीमी है और बेरोजगारी के कारण पलायन तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने आधुनिक, वैज्ञानिक और संतुलित राष्ट्रीय राज्य पुनर्गठन को समय की आवश्यकता बताया।
नेताओं ने कहा कि नए राज्यों के गठन से क्षेत्रीय असमानता कम होगी, रोजगार के अवसर स्थानीय स्तर पर सृजित होंगे, औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा और लोगों का पलायन रुकेगा। साथ ही वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को भी मजबूती मिलेगी।
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