यूपी में प्रिंसिपल और टीचरों की कमी से छात्र परेशान हैं : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में टीचरों की कमी को लेकर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश...
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में टीचरों की कमी को लेकर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रधानाचार्यों और सहायक अध्यापकों की अनुपलब्धता के कारण छात्र परेशान हैं।
जस्टिस प्रकाश पाडिया ने यह आदेश कमेटी आफ मैनेजमेंट कृषि औद्योगिक विद्यालय एएयू अतर्रा बांदा की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका के मार्फत स्वीकृत पदों के अनुसार शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियां न किए जाने से व्यथित होकर स्कूल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका के अनुसार स्कूल में एक प्रधानाध्यापक, दो सहायक अध्यापक, एक क्लर्क और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद जून 2022 से रिक्त हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों के बीच कई बैठकों के बावजूद अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। दरअसल, पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने हेडमास्टर और शिक्षकों की नियुक्ति की समय सीमा को लेकर अस्पष्टता की ओर इशारा किया था।
10 दिसम्बर, 2024 को न्यायालय ने विशेष रूप से टिप्पणी की थी कि बड़ी संख्या में रिक्तियों के कारण राज्य की शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता हो रहा है तथा इस मुद्दे के समाधान में कोई प्रगति नहीं हुई है। केस की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार द्वारा महानिदेशक, बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश को स्पष्ट रिपोर्ट या प्रस्ताव के लिए शासन के पत्र भेजे जाने के बावजूद आज तक ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।
इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए एकल न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा महानिदेशक बेसिक को राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में हुई देरी के संबंध में दस दिनों के भीतर अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 फरवरी तिथि नियत की है।
हिन्दुस्थान समाचार