देश के कई राज्यों में इन नामों से विख्यात रहे, रोटी राम की तपोस्थली में उमड़ी भक्तों की भीड़
स्वामी रोटीराम की तपोस्थली गायत्री तपोभूमि में चल रही यज्ञ की वर्षगांठ में बह रही भक्ति ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी में गोता...
यज्ञ परिसर में वृक्षों के नीचे साधू संत साधना में लीन
स्वामी रोटीराम की तपोस्थली गायत्री तपोभूमि में चल रही यज्ञ की वर्षगांठ में बह रही भक्ति ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी में गोता लगाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। यज्ञ परिसर में वृक्षों के नीचे साधू संत साधना में लीन हैं। एक ओर जहां यज्ञ वेदी में जप तप चल रहा है, वहीं भागवत महापुराण की कथा सुनाई जा रही है। तपोभूमि में स्थित विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने और मेला ग्राउंड में भी दोपहर से शाम तक वेशुमार भीड़ नजर आ रही है।
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गौरतलब है कि सुमेरपुर गायत्री तपोभूमि में स्वामी रोटीराम जी ने 1957 विराट यज्ञ का आयोजन कराया था। उसी यज्ञ की वर्षगांठ प्रतिवर्ष होती चली आ रही है। यज्ञ की 65वीं बरसी भी पूरे आस्था और भक्ति भावना से मनाई जा रही है। 28 नवंबर से प्रारम्भ हुआ यज्ञ का आयोजन 08 दिसम्बर को सन्त प्रवचन और भंडारे के साथ संपन्न होगा। अब जब यज्ञ समारोह के दो दिन ही शेष बचे हैं तो यज्ञ परिसर में भारी भीड़ उमड़ रही है।
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लोग भागवत कथा के साथ स्वामी जी मूर्ति में पूजा अर्चना करके पुण्य अर्जित करने में संलग्न हैं, दूर से आए साधू संन्यासी पेड़ों के नीचे धूनी रमाए हुए साधना में लीन हैं। कथा व्यास दुर्गा प्रसाद द्विवेदी ने कथा के पांचवें दिन कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि कृष्ण ने जड़ चेतन दोनों की शक्ति संकल्प मात्र से जीत ली थी। कृष्ण ने ग्यारह वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी लेकिन आज कितनी कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेज दिया जाता है, जिससे यह बचपन का सुख भी नहीं प्राप्त कर पाता। कथा ब्यास ने कहा कि कृष्ण माखन चोर थे, वह दूध का सार तत्व मक्खन चुराकर खा जाते हैं। इससे वह लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है, जब परमात्मा का सान्धिय प्राप्त करने का प्रयास करेंगे तभी संसार सागर से पार हो पाएंगे।
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देश में अलग-अलग नामों से विख्यात रहे स्वामी रोटीराम
काफी समय तक कस्बा सुमेरपुर सहित जनपद के विभिन्न स्थानों में साधनारत रहे स्वामी रोटीराम लोगों के कल्याण के लिए सतत प्रयत्नशील रहे। उन्होंने धर्माेपदेश के जरिए से लोगो को परमात्मा की भक्ति की ओर प्रेरित किया, वह बीच बीच में तपस्या के लिए अज्ञात स्थानो की ओर भी जाते रहे, वह देश के कई प्रांतों में रहे। उनके शिष्य उन्हें खोजकर अपने-अपने क्षेत्र की ओर चलने की जिद न करें। इससे बचने के लिए वह अपना नाम बदल लेते थे, फिर भी उनके भक्त उन्हें कुछ समय बाद ही सही किन्तु खोज ही लेते थे, लोग बताते हैं कि उतर भारत के हिमाचल प्रदेश में स्वामी जी मतंग स्वामी के नाम से जाने जाते थे। उत्तर प्रदेश पावन क्षेत्र नैमिष में इन्हें अवधूत स्वामी कहा जाता था। महाराष्ट्र ने मोटा बाबा नाम से विख्यात रहे। बुन्देलखण्ड में नागा स्वामी के रूप में जाने गये, जबकि मध्य प्रदेश के रतलाम में स्वामी रोटी राम महाराज के नाम से चर्चित रहे।