हमीरपुर में चांदी की मछली उद्योग में कोरोना की पड़ी मार
मौदहा तहसील मुख्यालय की बनी चांदी की मछली भारत ही नहीं खाड़ी देशों में भी लोकप्रिय है। लेकिन, कोरोना की मार से चांदी की मछली के व्यापार को तगड़ा झटका लगा है...
- सर्राफा दुकानों में पड़ा सन्नाटा, मछली बनाने वाले तमाम कारीगर भी परेशान
जनपद में चांदी की मछली को सबसे पहले करीब 153 साल पहले मौदहा कस्बे के एक स्वर्णकार ने प्रेरित होकर बनाया था। इसके बाद यह सुर्खियों में आई। महारानी विक्टोरिया भी चांदी की बेहतरीन मछली बनाने पर स्वर्णकार को तांबे का मैडल देकर सम्मानित कर चुकी हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने स्वर्णकार को सम्मानित भी किया था।
यह भी पढ़ें - चित्रकूट में दीपदान के बाद देश-दुनिया में शुरू हुई थी 'दीपावली'
धनतेरस त्यौहार को लेकर अब स्वर्णकारों ने बड़ी मात्रा में चांदी की मछली बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। दिन रात दुकानों में मछलियां बनाने का काम चल रहा है। साथ ही चांदी के दीये और श्रीगणेश लक्ष्मी की मूर्तियां भी पूजन के लिये इस बार बनायी गयी हैं। लेकिन, इन्हें कोई पूछ नहीं रहा है। स्वर्णकार राजेद्र सोनी का कहना है कि कोविड-19 ने चांदी की मछली के उद्योग को बड़ा जख्म दिया है। पूरा व्यवसाय ही चौपट हो गया है। अब तो लगता है कि कोई और दूसरा काम देखना पड़ेगा।
- विश्व के तमाम देशों में मौदहा की लोकप्रिय मानी जाती है चांदी की मछली
कोरोना के कारण बंद होने के मुहाने आया मछली उद्योग
चांदी की मछली के कारोबारी राजेन्द्र सोनी ने सोमवार को बताया कि कोरोना के कारण चांदी की मछली का उद्योग संकट में पड़ गया है। पिछले साल इस सीजन में ही सवा लाख रुपये की आमदनी इस व्यवसाय से हो जाती थी। लेकिन, इस बार एक भी चांदी की मछली के लिये आर्डर नहीं मिला है। दुकानें सन्नाटे में हैं। उन्होंने बताया कि धनतेरस के तीन दिन रह गए हैं। मगर, कोई भी चांदी से बनी मछली की मांग नहीं कर रहा है। इससे लगता है कि अब इस उद्योग को बंद करना पड़ेगा।
यह भी पढ़ें - रेल आरक्षण केंद्रों की निगरानी शुरू, यात्रियों को इस तरह मिलेगी राहत
बताया कि विदेशों में भी हर साल बड़ी संख्या में चांदी की मछली जाती थी। लेकिन, अब कोई भी इसे पूछ नहीं रहा है। कोरोना के साथ ही चांदी की कीमत भी आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मछली पचास ग्राम से एक किलोग्राम वजन की है। एक किलोग्राम वजन की मछली की कीमत 68 हजार रुपये है।
शुभ कार्यों के लिये लोग घर में रखते है चांदी की मछली
मछली को लोग शुभ मानते हैं। इसलिये आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग इसे अपने ड्राइंग रूम में सजाकर घर की शोभा बढ़ाते हैं। वीआईपी लोगों में भी इसकी मांग होती है। भारतीय परम्परा में आस्था व विश्वास के आधार पर खास दिवसों व पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय सबसे पहले मछली देखना पसंद करते थे। इसका उल्लेख भी तमाम पुस्तकों में है।
यह भी पढ़ें - जल्द चल सकती है चंबल और इंटरसिटी एक्सप्रेस ?
तीसरी पीढ़ी के अब नाती-पौत्र चला रहे चांदी की मछली का कारोबार
जागेश्वर प्रसाद सोनी के निधन के बाद अब उनके नाती और पौत्र राजेन्द्र सोनी, ओमप्रकाश सोनी व रामप्रकाश सोनी मछली बनाते हैं। उत्तर प्रदेश व अन्य किसी भी राज्य में चांदी की मछली बनाने का काम नहीं होता है। लेकिन, हमीरपुर में यह कला बड़े उद्योग की शक्ल ले चुकी है। राजेन्द्र सोनी ने बताया कि चांदी की मछली इतनी आकर्षक होती है कि लोग इसे उपहार में देते हैं। कई बड़े वीआईपी और शासन के वरिष्ठ अफसरों को यहां की चांदी की मछलियां देकर सम्मानित किया जा चुका है। यहां की बनी चांदी की मछली छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व खाड़ी देशों में भी बेची गयी है। बाहर के लोग हाथों हाथ इसे खरीदते हैं।
यह भी पढ़ें - हमीरपुर : 40 किमी का सफर अब पूरा होगा सिर्फ 3 किमी में, 152 लाख की लागत से बनेगी रोड
विशेष बनावट होने से पानी में तैरती है चांदी की मछली
स्वर्णकार राजेन्द्र सोनी का कहना है कि जैसे पानी के बाहर मछली शरीर को लोच देती है ठीक वैसे इस मछली में भी लोच देखी जा सकती है। पानी में डालने पर ऐसी प्रतीत होता है कि चांदी की मछली जैसे तैर रही हो। इसके अलावा मछली का प्रयोग इतर रखने में भी होता है। मछली बनाने की जानकारी देते हुये स्वर्णकार ने बताया कि सबसे पहले मछली की पूंछ बनायी जाती है। फिर पत्ती काट छल्लेदार टुकड़े होते हैं। जीरा कटान पत्ती को छल्लेदार टुकड़े बनाते हुये कसा जाता है। इसके बाद सिर, मुंह, पंख व अंत में इसमें लाल नग लगा दिया जाता है। चांदी की मछली बनाने में कई घंटे का समय लगता है। लेकिन, सरकारी तौर पर कोई मदद न मिलने से अब यह कला दम तोड़ रही है। स्वर्णकार पूरे दिन दुकानों में सन्नाटा पसरा रहने से चिंतित भी हैं।
हिन्दुस्थान समाचार