बुन्देलखण्ड की आन और शान है आल्हा-ऊदल, वीरता की गाथायें सुन फड़क उठती है भुजायें
बुन्देलखण्ड में सैकड़ों साल पुरानी परम्परा का गांव-गांव निर्वहन होने से यह पता चलता है कि आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी लोगों के दिलों में समाई हुई है...
 
                                - कोरोना वायरस महामारी को लेकर कजली मेले की अब नहीं मचेगी धूम
- रस्म अदायगी के लिये ग्रामीण इलाकों में आल्हा की गायी जायेगी गाथायें
जोश भरने वाली वीरता की गाथा सुनकर युवा, वृद्ध समेत सभी लोगों की भुजायें फड़क उठती है। रक्षाबंधन के अगले दिन इन्हीं दोनों की वीरता से सम्बन्ध रखने वाला कजली मेला मनाये जाने की परम्परा कोरोना वायरस महामारी के कारण टूट सी गयी है। सामाजिक दूरी के बीच ग्रामीण इलाकों में ये कार्यक्रम सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित होंगे।
आल्हा गायक दिनेश कुमार ने बताया कि सैकड़ों साल पहले रक्षाबंधन के दिन राजा पृथ्वीराज चौहान ने महोबा में हमला कर दिया था। उनकी सेना ने रानी मल्हना के डोले लूट लिये थे तब वीर भूमि के लोगों ने इस त्यौहार को रद्द कर दिया था। इस एतिहासिक घटना के बाद आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान की सेना से मोर्चा लेकर लूटे गये डोले वापस लाये थे।
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इसीलिये उस दिन रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया गया था। लूटे गये कजली से भरे डोले वापस मिलने के बाद महोबा के कीरत सागर में रानी मल्हना ने रक्षाबंधन के अगले दिन कजलियों का विसर्जन कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था। इस दिन जलेबी घर-घर खाने की परम्परा भी है। बहनें भाईयों के हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है। कजली लेकर महिलायें सावन गीत व कजली गीतों के साथ तालाबों में विसर्जन करती है। जगह-जगह आल्हा-ऊदल की वीरगाथा आल्हा के माध्यम से गाये जाती है।
 
आल्हा गायक ने बताया कि बुन्देलखण्ड में रक्षाबंधन व कजली महोत्सव के दौरान यदि आल्हा न सुनाई पड़े तो सावन, मनभावन नहीं लगता है। लोग महोबा के दो महान वीर आल्हा-ऊदल की वीरता की गाथा बड़े ही उमंग से सुनते है और बुन्देलखण्ड की वीरता पर गर्व महसूस भी करते है। इस तरह आल्हा-ऊदल की वीरता आज भी यहां के लोगों के दिलों में बसी है। महोबा के साथ ही हमीरपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में आगामी मंगलवार होने वाले यह परम्परागत कार्यक्रम महज रस्म अदायगी के लिये होंगे।
राजा परमाल के दरबारी कवि थे आल्ह खंड के रचयिता
यहां के आल्हा गायक दिनेश कुमार ने बताया कि जिस खण्ड काव्य को सुनकर लोगों की भुजायें फड़क उठती है उसकी रचना करने वाले महान कवि जगनिक थे जो शूरवीर सेनापति व मंत्री भी थे। वह आगरा या फतेहपुर के नहीं बल्कि महोबा के ही रहने वाले थे। आजकल के आल्हा गायक आल्ह खण्ड को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करते है जिससे लोगों को सही जानकारी नहीं मिल पाती है। उदाहरण के तौर पर आल्ह खण्ड के रचयिता महाकवि जगनिक को आगरा या फतेहपुर का निवासी बताया जता है जबकि वास्तविकता यह है कि जगनिक महोबा के ही रहने वाले थे। वे राजा परमाल के दरबारी कवि थे। आल्हा-ऊदल उन्हें मामा कहते थे।
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मूलरूप से कवि जगनिक आल्हा-ऊदल के ननिहाल के रहने वाले थे। आल्हा गायक ने बताया कि आल्ह खण्ड सैकड़ों सालों से शोध का विषय बना हुआ है। जगनिक के नाम और ग्राम पर भ्रांति बनी है। लोगों ने जगन, जागन, जगनायक आदि नामों से भी कवि को प्रस्तुत किया है। शोधकर्ता ने भले ही अलग-अलग नाम दिये हो मगर पृथ्वीराज रायसो, परमाल रायसो, वीर विलास, बालभट्ट विलास में कई बार जगनिक का नाम आया है। जगनिक ग्राम घटहरी छतरपुर मध्यप्रदेश के निवासी थे जो महोबा के एक मुहल्ले में रहते थे। यह मुहल्ला भी जगनिक के नाम से प्रसिद्ध रहा है।
160 वर्षों पुरानी परम्परा का कजली, दंगल मेला रद्द
रक्षाबंधन त्यौहार के अगले दिन हमीरपुर शहर के रमेड़ी रहुनियां मुहाल में 160 सालों से अनवरत होने वाला कजली, दंगल मेला कोरोना संक्रमण के फैलने के कारण रद्द कर दिया गया। दंगल आयोजक एवं भाजपा नेता राजीव शुक्ला एडवोकेट ने बुधवार को बताया कि उनके पूर्वजों के जमाने से यहां कजली मेला और दंगल का आयोजन होता आ रहा है लेकिन इस बार कोरोना के कारण यह एतिहासिक आयोजन रद्द करने का फैसला किया गया है।
उन्होंने बताया कि हमीरपुर शहर में भी कोरोना वायरस महामारी ने दस्तक दे दी है लिहाजा ऐसे में इस पुरानी परम्परा के आयोजन को सामाजिक लोगों की सहमति पर नहीं कराया जायेगा। भाजपा नेता ने जिला प्रशासन से मांग की है कि 4 अगस्त को हमीरपुर और अन्य स्थानों पर लगने वाले दंगल और कजली के त्यौहार पर रोक लगायी जाये जिससे कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाया जा सके। बता दे कि शहर के इस स्थान पर इस एतिहासिक कजली मेला और दंगल को देखने के लिये कई गांवों से भारी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती थी। इसमें नामी गिरामी पहलवानों की कुश्तियां भी होती थी।
हिन्दुस्थान समाचार
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