बुन्देली विरासत : वेदों में दर्ज है तपोभूमि बाँदा
यमुना नदी के दक्षिण और केन नदी के किनारे स्थित बाँदा जनपद का नाम वामदेव ऋषि के नाम पर पड़ा..
- जर्रे-जर्रे में गूंजती है क्रान्तिकारियों की आवाजें
यमुना नदी के दक्षिण और केन नदी के किनारे स्थित बाँदा जनपद का नाम वामदेव ऋषि के नाम पर पड़ा। ऋषि वामदेव, गौतम ऋषि के पुत्र थे, इसीलिए उन्हें गौतम भी कहा गया। वेदों के अनुसार सप्त ऋषियों में ऋषि वामदेव का नाम आता है और उन्होंने संगीत की रचना की थी। बाँदा शहर में स्थित बाम्बेश्वर पर्वत की गुफा में स्थित भगवान शिव का मन्दिर ऋषि वामदेव द्वारा रामायण काल में स्थापित किया गया था।
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महात्मा बुद्ध के समय भारतवर्ष में 16 महाजनपद थे उनमें एक चेदि था। चेदि यमुना और विंध्य के बीच का प्रदेश हैं इसकी राजधानी शुक्तिमती थी, जो केन नदी के तट पर थी। इसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है। ऋगवेद से ज्ञात होता है कि पुरू की पांचवी पीढ़ी में जन्में राजा वसु ने यादवों के राज्य चेदि को जीतकर केन नदी के किनारे शुक्तिमती नगरी को अपनी राजधानी बनाया। महाभारत काल में शिशुपाल का इस पर अधिकार था। धीरे-धीरे इस राज्य की अवनति होती गई और यह साम्राज्य कई शाखाओं में विभक्त हो गया, जिसमें से एक कलिंग था।
मौर्य सम्राट अशोक के अन्तिम समय 232 ईसा पूर्व तक बाँदा मौर्य साम्राज्य का अंग रहा। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद इस पर पुष्यमित्र शुंग का अधिकार हो गया। इसी काल में सर्वप्रथम कलचुरी वंश का उदय हुआ। ऐसा माना जाता है कि 249 ई. में चेदि वंश का कालिंजर पर अधिकार हो चुका था। 326 ई. के आसपास यह जनपद समुद्र गुप्त द्वारा जीत लिया गया था। प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार महाभारत कालीन विराट नगरी बाँदा जनपद में थी, जहां पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया था।
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जनपद के ग्राम कनवारा (कर्मवारा), दुरेडी (द्रोणी), कौरव सेनापतियों के रठी स्थल थे। विभिन्न पुराणों में कालिंजर का वर्णन श्राद्ध तीर्थ, कालीतीर्थ, नौउखलों में से एक रूप में वर्णित है। सती द्वारा वर्णित 108 तीर्थो में एक भक्त प्रदलदा द्वारा नीलतीर्थ मे स्थान का उल्लेख है। महर्षि वेदव्यास का जन्म भी इसी जनपद में कुछ इतिहासकार मानते हैं।
बाँदा जनपद का आर्यीकरण भगवानराम के युग में ऋषि अगस्त, अत्रि, वामदेव, मांडव्य, शरभंग आदि द्वारा किया गया। चित्रकूट का विस्तृत वर्णन इसी जनपद में जन्मे आदिकवि बाल्मीकि की रामायण में प्राप्त है। उनके शिष्य पैल भी अपना आश्रम केन नदी के तटपर बनाये थे। महाभारत में कालिंजर पर्वत को हिरण्यबिन्दु नाम से पूज्य माना है। महाभारत काल मे इस प्रदेश में इस प्रदेश में कारूष जाति का शासन था और ब्रजदन्ती वहां का शासक था। कारूषपुरी वर्तमान कर्वी राज्य की राजधानी थी।
सम्राट अशोक के शिलालेख के अनुसार बाँदा जनपद तथा समीपवर्ती क्षेत्र आहिसंक था। शिलालेखों के आधार पर स्पष्ट है कि बुध गुप्त सन् 477-99 ई. के आधीन बाँदा जनपद था। गुप्त सम्राटों ने हुणों को पराजित किया, मिहिर कुल को कैद किया। किन्तु उसकी शक्ति क्षीण हो गई। जनता ने यशोवर्मा को अपना नेता चुना उसके अन्तर्गत बाँदा भी रहा। भूगोल वेन्ता टाले भी ने कालिंजर पर्वत का पतसिस या कातपासिस का नाम दिया है।
हर्ष के समय यह प्रदेश जुझौति के नाम से प्रसिद्ध था। इस काल में वर्णन स्कन्दर पुराण में प्राप्त है। परिब्राजकों के अभिलेख में इस प्रदेश का नाम डमाल आया है। वर्तमान में अब बाँदा में पुराने तालाब, निम्नीपार में दउवा का जर्जर भवन, राजाबाग और मोदी मन्दिर जहां आजादी के आंदोलन में क्रान्तिकारी अपना अड्डा बनाये थे।
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भग्नावशेष के रूप में अस्तित्व बनाये खडे़ है। भूरागढ़ दुर्ग जहां आजादी के दीवानों को फांसी दी गई। इसके जर्रे-जर्रे में गर्व की अनुभूति की जा सकता है। सन् सत्तावन की गदर फाँसी पर लटकाये गए हजारों क्रान्तिकारियों की अवाजंे आज भी भूरागढ़ में गूंजती है। भू-अभिलेखों में दर्ज है कि बाँदा की आबादी उत्तर की ओर भवानी पुरवा और दक्षिण की ओर लड़का पुरवा में थी। भवानी और लड़ाका राजपूत वंश के शासक ब्रजरात के भाई और यहां उनका आधिपत्य था।
सन् 1882 ईं में हुआ ऐतिहासिक अन्वेषण में सर्वप्रथम उत्तरप्रदेश के बाँदा जनपद के इतिहास का परिचय जिले के विभिन्न स्थानों पर प्राप्त पाषाण तीरों तथा अन्य साधनो से मिलता है। बुन्देलखण्ड के उत्तर कालीन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली प्रसिद्ध कालिंजर का दुर्ग का वर्णन वेदों तक मे है।
मानव के पुत्र और मनु के पौत्र ऐल बहुत बड़ा विजेता और भारतीय इतिहास का प्रथम सम्राट था। बाँदा जनपद में कुछ भू-भाग पर उस समय उसी का साम्राज्य था। ऐल ने अपने पांच पुत्रों में अपने साम्राज्य का विभाजन किया था। इस विभाजन में उसके पुत्र यदु को चम्बल वेतवा तथा केन की घाटियों का राज्य प्राप्त हुआ।
ऐल वंश के अनन्तर विदर्भ के राजा चेदि के वंशजांे ने चम्बल और केन को मध्यवर्ती द्वाबे में अपने राज्य की स्थापना की। आर्यों के प्रसार के तीसरे चरण तक इस जनपद का अधिकांश भू-भाग चेदि वंश के इन राजाओं के अधीन रहा। बाँदा जिले के पूर्व में चित्रकूट की प्रसिद्ध पहड़ियां तथा अन्य इतिहास प्रसिद्ध स्थान रहे है। रामायण में इस बात का उल्लेख है कि इच्क्षाकु के 65वीं पीढ़ी में उत्पन्न राम लक्ष्मण सीता एवं गंगा के उस पर निषादों से मैत्री करके चित्रकूट और पंचवटी आदि में वनवास काल बिताया था।
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चित्रकूट की मऊ तहसील से आठ कि.मी. दूर गढ़वा (हिसामबाद) में चन्द्रगुप्त द्वितीय के शिलालेख प्राप्त हुए थे, जिससे यह सिद्ध होता है। 525 ई. तक यह जनपद गुप्त साम्राज्य के अन्तर्गत रहा। 648-49 ई. तक जो हर्ष की मृत्यु की तिथि है। यह जनपद कन्नौज साम्राज्य का अंग रहा। यहीं से सर्व प्रथम बुन्देलखण्ड का अस्तित्व प्रकाश में आता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस प्रदेश को (चिषितो) कहा है, और इसकी राजधानी छतरपुर जनपद खजुराहों को माना है। 641 ई. में यहां पर ब्राहम्णों का राज्य था।
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