बाँदा : कटरा में एक ऐसा मंदिर जहां रहता था सर्पों का वास
प्रसिद्ध सिंहवाहिनी मंदिर बहुत प्राचीन है। इस स्थान में नौ देवियों के रूप में स्थापित प्राचीन मूर्ति किसने और कब स्थपित की इसका इतिहास में..
जनपद मुख्यालय बांदा के कटरा में प्राचीन सिंह वाहिनी मंदिर स्थित है, इस मंदिर के आसपास सर्पों का वास है। कहा जाता है कि सर्प सदा देवी की स्तुति करने पहुंचते हैं।
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इतिहास
प्रसिद्ध सिंहवाहिनी मंदिर बहुत प्राचीन है। इस स्थान में नौ देवियों के रूप में स्थापित प्राचीन मूर्ति किसने और कब स्थपित की इसका इतिहास में उल्लेख नही मिलता है परन्तु यहां स्थापित मूर्तियां सम्राट अशोक के शासन काल की है। मुगल शसनकाल में यहां की मूर्तियों को कई बार खन्डित किया गया था। इस मंदिर की प्राचीनता की साक्षी देवी प्रतिमाएं तो है ही स्वयं ही मंदिर के शिलालेख से स्पष्ट हो जाता है कि 1856 ई. में शहर एक धनाढ्य व्यक्ति पन्नालाल ओमर ने सर्वप्रथम इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
किवदंती है कि कंस के हाथों से फिसल कर जब योगमाया आकाश में उडगई थी तब वहां से उडते हुए मध्य प्रदेश के बदौरा ग्राम में कुछ पलों के लिए विश्राम किया और वहां से सीधे ‘कंटक वन’ जहां आज सिंहवाहिनी मंदिर में आई और कुछ देर यही ठहरी तब बड़ी तादाद में सर्पो व सिंहो ने उनकी स्तुति की थी।
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मध्यप्रदेश के बदौरा गांव में वे भद्रकाली और कंटकवन कटरा में सिंहवाहिनी बनी योगमाया और खत्री पहाड़ ने अंगुल्या देवी, इसके बाद मिर्जापुर में विंध्यवासिनी के रूप में स्थापित हो गई।मंदिर के सेवाधारी मदन मोहन शर्मा बताते है कि इस मंदिर के इर्द-गिर्द सर्पो का वाश है जो सदा देवी की स्तुति करने पहुंचते है।
मंदिर का जीर्णोद्धार
मंदिर के प्रबंधक प्रदुम्न कुमार दास लालू दुबे बताते हैं मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार का काम होता रहता है।इधर मंदिर के निचले हिस्से में श्री राम मंदिर का निर्माण कराया गया है जिनकी मूर्तियां भी आ गई है। सूर्य उत्तरायण होने पर मूर्तियों की स्थापना की जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि देवी जी के प्रमुख मंदिर का भी जीर्णोद्धार शीध्र कराया जाएगा ताकि मंदिर को भव्य रुप दिया जा सके।
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पुजारी कहते हैं
मंदिर के पुजारी बृजलाल बताते हैं कि इस मंदिर में नौ देवियां स्थापित है उनके पूजा अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। नवरात्रि में दर्शनार्थियों का सैलाब उमड पड़ता है।
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