बाँदा : 43 साल पूर्व कोई नहीं जानता था मरही माता का दरबार
43 साल पहले जिस मरही माता मंदिर को शहर के लोग ही नहीं जानते थे, आज वही मंदिर भव्य रूप धारण कर चुका है..
43 साल पहले जिस मरही माता मंदिर को शहर के लोग ही नहीं जानते थे। आज वही मंदिर भव्य रूप धारण कर चुका है। जहां चैत्र व शारदीय नवरात्रि पर दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमड़ती है।
यह भी पढ़ें - मराठा शासक ने बनवाया था बाँदा में काली देवी मंदिर
शहर के नोनिया मोहाल मे विराजमान मरही माता को 43 साल पहले हर कोई नही जानता था। मात्र मोहल्ले के ही लोग मिट्टी के चबूतरे मे बनी मढिया के बारे में जानते थे। 1977 में जब मध्य प्रदेश के जबलपुर निवासी गनेश प्रसाद तिवारी उर्फ बब्बा तिवारी का विवाह शहर के कटरा मोहल्ले में लक्ष्मी नारायण चतुर्वेदी की बेटी विनीता तिवारी के साथ हुआ। उस समय तक शहर के लोग मरही माता से अपरचित थे।
शादी के 5-6 माह बाद जब श्री तिवारी बांदा आये और उन्होंने मरही माता मंदिर जाने की बात कही तो रिश्तेदारांे ने ऐसा कोई मंदिर होने से इंकार किया, लेकिन उनका कहना था कि मंदिर शहर में है। रिश्तेदारेा ने कई स्थानो पर पता किया पर मंदिर का पता नही चला। तब बब्बा तिवारी स्वयं संकरी गलियो से होते हुए नोनिया मोहल्ले में पहुंचे जहां मिट्टी के चबूतरे में विराजमान देवी प्रतिमा को मरही माता का प्राचीन स्थल बताया।
यह भी पढ़ें - चीन के साथ युद्ध में पीतांबरा देवी ने की थी भारत की रक्षा
भूमि संरक्षण अधिकारी ने बनवाया मंदिर
बब्बा तिवारी ने जब वहां पूजा अर्चना शुरू की तो मोहल्ले के लोगों की आस्था बढ़ी। कहा जाता है कि तत्कालीन भूमि संरक्षण अधिकारी बाँदा शैलेन्द्र सिंह वर्मा के कोई पुत्र नही था। उनके सात लडकियां थी उन्होंने बब्बा तिवारी से पुत्र प्राप्ति के लिए कोई उपाय करने को कहा तो उन्हांेने मरही माता मंदिर में पूजा अर्चना की सलाह दी। उन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और तभी उन्होंने मरही माता मंदिर का निर्माण कराया। यहां विराजमान देवी प्रतिमा सैकड़ांे वर्ष पुरानी बताई जाती है।
इतिहास
मरही माता मन्दिर का इतिहास ज्यादा पुराना तो नहीं है परन्तु माता मरही की मूर्ति इस पेड़ के नीचे कितने वर्षों से है इसकी आज तक कोई सटीक जानकारी नहीं दे सका है। यहाँ रहने वाले वयोवृद्ध लोग बताते हैं कि उनके भी दादा-परदादा माता मरही की पूजा वर्षों से करते चले आ रहे हैं। यानि इतना तो कह ही सकते हैं कि माता की यह मूर्ति कम से कम सैकड़ों वर्ष पुरानी है। फिलहाल इस मन्दिर का निर्माण सन् 1978 में हुआ जब जबलपुर के रहने वाले श्री गणेश प्रसाद तिवारी उर्फ बब्बा तिवारी का विवाह सन् 1977 में बाँदा शहर के कटरा मोहल्ले में रहने वाले चतुर्वेदी परिवार में हुआ।
पूजा-पाठ व तन्त्र-मन्त्र से जुड़े बब्बा तिवारी ने बाँदा आते ही अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा जान लिया था कि यहाँ माता मरही की अति प्राचीन मूर्ति है। उनके प्रयासों से मन्दिर का निर्माण हुआ। उनके ससुर पं. लक्ष्मी नारायण चतुर्वेदी इस मन्दिर के आचार्य बने। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र पं. शान्तनु कुमार चतुर्वेदी वर्तमान में मन्दिर के आचार्य हैं। उन्हीं की देख-रेख में मन्दिर में होने वाले पूजा व अनुष्ठान सम्पन्न कराये जाते हैं।
यह भी पढ़ें - खत्री पहाड़ : नंदबाबा की बेटी ने इस पर्वत को दिया था कोढी होने का श्राप
क्या कहते हैं आचार्य
आचार्य पं. शान्तनु कुमार चतुर्वेदी बताते हैं कि माँ के सामने तीन अगरबत्ती और तीन परिक्रमा करके जो भी मांग लिया जाता है, उसे माँ अविलम्ब पूरा करती हैं।
विशेषता
इस मंदिर में 9 दिन तक लगातार कन्या भोज चलता है जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है वह मंदिर में इच्छा अनुसार कन्याओं को भोजन कराते है व भेंट स्वरूप कुछ न कुछ उपहार भी देते हैं ।
मंदिर को भव्य रूप देने का प्रयास
जो मंदिर 43 साल पहले एक मिट्टी की मढ़िया के रूप में स्थापित था एक भूमि संरक्षण अधिकारी ने भव्य रूप प्रदान करने का प्रयास किया और इसी वर्ष इस मंदिर का प्रवेश द्वार और आकर्षक गुंबद भी निर्मित कराया गया है साथ ही मंदिर के सामने स्थान स्थापित भवन को सत्संग भवन के रूप में विकसित किया जाए जा रहा है।
यह भी पढ़ें - बाँदा में शिला के रूप में प्रकट हुई थी महेश्वरी देवी
कैसे पहुंचें मंदिर
राजकीय बस स्टैंड से व रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी एक किलो मीटर है। कटरा चैराहै से आगे नोनिया मोहाल में स्थित है। यहां पर जाने के लिए टैंपो व रिक्शा मुख्य साधन है।