हस्तरेखा विशारद बनकर चंद्रशेखर आजाद ने बांदा में बिताया था अज्ञातवास

आजादी की लड़ाई में सांडर्स हत्याकांड, काकोरी ट्रेन डकैती और दिल्ली असेंबली बम कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद मथुरा और बुंदेलखंड के झांसी में कुछ वक्त गुजार कर बांदा में हस्तरेखा विशारद बनकर अज्ञातवास में छुपे रहे

Aug 14, 2021 - 07:44
Aug 14, 2021 - 08:08
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हस्तरेखा विशारद बनकर चंद्रशेखर आजाद ने बांदा में बिताया था अज्ञातवास
फाइल फोटो

आजादी की लड़ाई में सांडर्स हत्याकांड, काकोरी ट्रेन डकैती और दिल्ली असेंबली बम कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद मथुरा और बुंदेलखंड के झांसी में कुछ वक्त गुजार कर बांदा में हस्तरेखा विशारद बनकर अज्ञातवास में छुपे रहे और यहां से जाने के बाद प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश सैनिकों के साथ मुठभेड़ में घिर गए, बाद में गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने खुद को गोली मारकर देश के लिए बलिदान दिया था। 

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  • एसपी के ड्राइवर के रूप में झांसी में रहे

 गुप्तचरों की डायरी व स्थानीय क्रांतिकारियों के संस्मरण के अनुसार दिल्ली असेंबली विस्फोट के उपरांत चंद्रशेखर आजाद कुछ दिनों तक मथुरा में रहे।इस बीच तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए 10000 रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी और स्थान स्थान पर उनके चित्र गुप्तचर विभाग को सौंप दिए थे। मथुरा को सुरक्षित स्थान न मानकर आजाद झांसी आ गए और यहां एसपी के ड्राइवर के रूप में बहुत दूर तक रहे।

एसपी के ड्राइवर के रूप में ही बांदा का दो बार भ्रमण कर गए। इधर झांसी के एसपी को इनको गिरफ्तार कर लेने का पत्र सरकार द्वारा भेजा गया,तब सौभाग्य से वह पत्र आजाद के ही हाथ लग गया, जिसे पढ़कर आजाद ने एक पत्र एसपी के नाम लिखा।जिसमें आजाद ने लिखा की जिसे गिरफ्तार करने की बात आज आए हुए पत्र को पढ़ कर सोचेंगे वह आज तक आपका ड्राइवर था और आज भी आपके यहां से विदा हो रहा है।

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  • ओरछा के सातार में एक कुटिया बनाकर रहे

इसके बाद आजाद बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में नाम व भेष बदलकर रहे।ओरछा स्थित सातार में वह एक कुटिया में पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से रहते थे।सातार में उनकी कुटिया क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी।इसके बाद कुछ दिनों उन्होंने ओरछा में बताएं और यहां के जंगलों में दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया था।कुछ दिनों बाद तालबेहट और कुलपहाड़ होते हुए बांदा आए और हस्तरेखा विशारद बनकर नगर के विभिन्न भागों में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे। तभी यहां उनके संपर्क में गोपी नेता, मास्टर नारायण प्रसाद और मास्टर रामनाथ विशारद आए जो क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्त थे।

  • महिला के भेष में पुलिस को दिया चकमा

इधर ब्रिटिश पुलिस उनको निरंतर खोजती रही ,आजाद बहुत दिनों तक बांदा के प्रमुख व्यक्तियों के घरों में गुप्त रूप से रहे।जब पुलिस को मास्टर नारायण प्रसाद के घर में उनके छुपे होने का शक हुआ तो पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए योजना बनाई ,तब तक यहां के क्रांतिकारियों को पुलिस की योजना का पता लग गया। इससे पहले की पुलिस मास्टर नारायण प्रसाद के घर पहुंची।क्रांतिकारी आजाद को लेकर सरवर की मस्जिद के पास बनी बन्योटा वाली गली से होते हुए गोपी नेता के घर पहुंच गए।

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इधर पुलिस को भी आजाद के गोपी नेता के घर में छुपे होने की भनक लग गई, जिससे पुलिस ने उनका घर घेर लिया। इसके बाद परिवार की नारियों के सम्मान् में कोई ठेस न पहुंचे इसलिए उन्हें घर से बाहर निकल जाने को कहा गया। इस पर आजाद बुंदेलखंड की नारी के भेष में गिलट के कड़े पहनकर लाल साडी धारण कर बाहर निकल गए।उनके साथ अनुचर के रूप में रामनाथ अपने सर पर गठरी लेकर निकल गए। 

  • चित्रकूट कर्वी के गणेश बाग में ठहरे

यहां से गलियों गलियों होते हुए आजाद राजघाट पहुंचे वहां से प्रयागराज के मार्ग से जाते हुए चित्रकूट कर्वी में रुके। इस दौरान कुछ दिनों गणेश बाग में रहे और क्रांतिकारियों से मुलाकात कर प्रयाग राज चले गए थे।संभवत बांदा के ही गुप्तचरों की सूचना पर उन्हें प्रयागराज  के अल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश सैनिकों ने घेर लिया जहां वह 27 फरवरी 1931 को शहीद हो गए।उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को गोली मार ली थी।

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