हमीरपुर में बाढ़ से बेघर हुए दर्जनों परिवारों ने खुले आसमान के नीचे जमाया डेरा
हमीरपुर में यमुना नदी की उफान में बेघर हुए दर्जनों गरीब परिवारों ने अब खुले आसमान के नीचे डेरा जमाया है। बाढ़ से...
हमीरपुर में यमुना नदी की उफान में बेघर हुए दर्जनों गरीब परिवारों ने अब खुले आसमान के नीचे डेरा जमाया है। बाढ़ से कटान में इन गरीबों के कच्चे घर के जमींदोज हो गए है। घर और गृहस्थी से मोहताज गरीब परिवार खेतों में झोपड़ी बनाकर किसी तरह से जीवन गुजार रहे है। मदद के नाम पर एक भी धेला इन गरीबों को नसीब नहीं हो सका।
- सर्द रातें काटने की गरीबों की बेबसी
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उल्लेखनीय है कि पिछले माह बांधों से लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाने से यहां हमीरपुर और बेतवा नदियां उफना गई थी जिससे मेरापुर गांव में यमुना नदी के किनारे बसे तमाम गरीबों के कच्चे घर कटान से नदी में जमींदोज हो गए थे। वहीं दर्जनों लोगों के घर भी पानी में जलमग्न हो गए थे। दोनों नदियों ने भी पिछले कई दशकों के रिकार्ड ही तोड़ दिए थे। नदियों के तटवर्ती सैकड़ों गांवों में बाढ़ से बड़ी तबाही मची थी। करोड़ों रुपये की लागत के निर्माणाधीन पिचिंग के कार्य भी बाढ़ के पानी में समा गए थे। मेरापुर गांव में तो कई मीटर लम्बी सड़क भी बाढ़ के पानी में बह गई थी। प्रशासन ने बाढ़ प्रभावित ग्रामों का राजस्व विभाग की टीम से सर्वे कराया। फौरी तौर पर मदद भी दी गई लेकिन जिन दर्जनों गरीबों के मकान बाढ़ में कटान से नदी में समा गए है उन्हें फिर से बसाने के लिए अभी तक कोई पहल नहीं की जा सकी। बता दे कि मेरापुर गांव यमुना नदी किनारे लम्बाई में बसा है जहां पिछले कई दशकों के अंदर यमुना नदी की बाढ़ से कटान में सौ से ज्यादा मकान नदी में समा चुके है।
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- खेत और खलिहान में सर्द भरी रातें काट रहे गरीब
मेरापुर गांव में यमुना नदी की बाढ़ ने तमाम गरीबों के कच्चे मकानों को आगोश में लेकर मैदान बना दिया है। बाढ़ की तबाही से बेघर हुए गरीब परिवारों ने गांव के बाहर खेत और खलिहान में तम्बू लगाकर डेरा जमाया है। इन परिवारों में तमाम मासूम बच्चे और बुजुर्ग लोग भी है जो दीये की रोशनी में रातें गुजारने को मजबूर है। संतराम व विजय कुमार समेत अन्य तमाम गरीबों ने बताया कि दो महीना पहले बाढ़ की तबाही का सामना करने के बाद से परिवार को लेकर खेत खलिहान में आशियाना बनाया गया है जहां बच्चे खुले आसमान के नीचे किसी तरह रह रहे है। हालत यह है कि सिर छिपाने के लिए भी ठोस इंतजाम नहीं है।
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- घास फूस की झोपड़ी में गरीबों को रहने की मजबूरी
बाढ़ से बेघर हुए संतराम और विजय समेत तमाम दर्जनों परिवारों ने प्रशासन से कोई मदद न मिलने के कारण खेतों में घास फूस की झोपड़ी बनाई है। इन झोपड़ी में गरीब परिवारों को बड़ी दिक्कतें उठानी पड़ रही है। पीड़ितों ने बताया कि घास फूस की झोपड़ी में सर्द भरी रातें काटना बड़ा ही मुश्किल होगा। लेकिन इसके सिवाय कोई दूसरा चारा भी नहीं है। यहां के एडीएम वित्त एवं राजस्व रमेश चन्द्र तिवारी ने बताया कि जिनके पास जमीन नही है उन्हें मुफ्त आवास दिलाए जाने की कार्रवाई जांच के बाद की जाएगी। बताया कि जिनके घरों को बाढ़ व बारिश से नुकसान पहुंचा है उन्हें भी आर्थिक मदद मुहैया कराई जाएगी।