चित्रकूट का भव्य प्राचीन भगवान सोमनाथ मंदिर क्यों है इतना प्रसिद्द

चित्रकूट के ख्याति नाम साहित्यकार श्री बाबूलाल गर्ग ने...

चित्रकूट का भव्य प्राचीन भगवान सोमनाथ मंदिर क्यों है इतना प्रसिद्द

चित्रकूट का सोमनाथ मन्दिर 

जनपद चित्रकूट मे इलाहाबाद, मानिकपुर मार्ग पर कर्वी से लगभग 12 कि0मी0 की दूरी पर वाल्मिकी नदी के तट पर चर नामक गाँव स्थिति है । गाँव के बाहर एक ऊची पहाड़ी पर पत्थरो से निर्मित मन्दिर के भग्नावशेष इतस्ततः विखरे पड़े है मुख्य मन्दिर मे प्राचीन शिवलिंग स्थापित है।  

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आस पास लघु मन्दिरो के भग्न खण्ड पड़े है इन पत्थरो मे एक पट्ट पर पूर्व  मध्यकालीन लिपि मे श्री सोमनाथ अंकित है मुख्य द्वार पर लगे शिला पट्ट पर प्राचीन लिपि मे अनेक पंक्तियां अंकित है किन्तु इस पर पीले रंग का पेंट लगा दिया गया है जिससे यह अभिलेख प्रायः अपठनीय हो गया है चर के सोमनाथ मन्दिर का निर्माण किसने और कब करवाया एवं इसे कब और किसने ध्वस्त किया यह प्रायः अवगुठठन मे है इतिहास मे उक्त देवालय का कही भी उल्लेख नही मिलता अतः जन मानस मे अनेक मत मातान्तर प्रचलित है।

चित्रकूट के ख्याति नाम साहित्यकार श्री बाबूलाल गर्ग ने अपनी कृति दर्शनश् पृ0 149 पर चर के सोमनाथ मन्दिर का सम्बन्ध वघेल बंशी शासक राजा कीर्ति सिह से जोड़ा है उनके अनुसार मन्दिर के गर्भ गृह की नरभित्ति पर अंकित  शिलालेख से पता चलता है कि इस मन्दिर का निर्माण 14 वी सदी के अन्त मे तत्कालीन वघेल राजा कीर्ति सिह ने सौराष्ट्र प्रदेश के मूल सोमनाथ की स्मृति मे कराया था उनके पूर्व पुरुष वयाघ्रदेव  13 वी सदी के अन्त मे सौराष्ट्र छोड़कर पहले कालिंजर फिर चित्रकूट आकर बसे।

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चन्देलो का भग्न देवालय

इस सम्बन्ध मे मेजर जनरल अलेक्जेण्डर कनिघम की रिपोर्ट खण्ड 21 द्रष्टव्य है सन 1885 मे प्रकाशित इस रिपोर्ट के पृ0 107 पर वघेल शासको की सूची दी गयी है। रीवा तथा वारा के इतिहास कारो के नाम की जो सूचियां उपलब्ध करायी उनके आधार पर कनिघम ने सिद्धराय जयसिह से प्रारम्भ करते हुये सन् 1880 मे विकटेसरमण तक कुल 33 वघेल शासको की सूची दी है परन्तु इसमे कीर्ति सिह नामक किसी शासक का नामोउल्लेख नही है 14 वी सदी मे कुल चार वघेल शासक क्रमशः वलारदेव सिह देव तथा भैरव देव हुये अतः यह दाव कि चर का सोमनाथ मन्दिर वघेल शासक कीर्ति सिह द्वारा निर्मित कराया गया तथ्य हीन है।

मिथिला के इतिहास मे कीर्ति सिह नामक अन्य शासक का उल्लेख मिलता है जो 14 वी सदी के अन्त मे हुआ। फिरोजशाह तुगलक ने मिथिला का क्षेत्र विजिट किया था वहां का अन्तिम कर्नाटवंशी राजा हरीसिह देव नेपाल भाग गया मिथिला मे अगले 27 साल अव्यवस्था बनी रही सन 1353 मे फिरोज तुगलक ने पिडित कामेश्वर ठाकुर को अपना करद राजा बनाया। वह वर्तमान जिला समस्तीपुर मे स्थिति ओनी;व्पदपद्ध गाँव का रहनेवाला ब्राम्हण था अतः इसके वंश को ओंवार;व्पदूंतद्ध वंश कहा गया आगे चलकर इसके स्थान पर उसका पुत्र भोगीस्वर ठाकुर अगला शासक बना भोगीस्वर की मृत्यु के पश्चात गजेश्वर सिह मिथिला का राजा बना।

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उसकी हत्या सन् 1361 मे अस्लम नाम के एक विद्रोही ने षड़यन्त के तहत चाकू मारकर की थी। गजेश्वर के दोनो पुत्र वीरसिह तथा कीर्ति सिह छुप जाने के कारण बच गये कीर्ति सिह को फिरोज ने अपनी सेना दी युद्ध करके कीर्ति सिह ने अस्लम से मिथिला पुनः छीना। अस्लम तथा वीर सिह युद्ध मे मारे गये कीर्ति सिह राजा बना वह निसन्तान दिबंगत हुआ अतः इसके पश्चात कामेश्वर ठाकुर के छोटे पुत्रः भावेश ठाकुर राजा बने बदायुंनी के अनुशार कीर्ति सिह कुछ समय तक कालिजर का हाकिम रहा इस तथ्य को चर के सोमनाथ मन्दिर पर लगे द्वार लेखसे मिलाने पर प्रतीत होता है कि इस मन्दिर का निर्माता मिथिला का राजा ओंवार वंशी ब्राम्हण कीर्ति सिह था।

किन्तु ओवार वंशी राजा कीर्ति सिह द्वारा इस मन्दिर के निर्माण को स्वीकार करने मे अनेक आपत्तियां है ।इस मन्दिर के भग्नावेशो मे अनेक प्रतिमाये यक्ष य़क्षणी कंधे पर शिवलिंग धारण किये पुरुषएदाढ़ी युक्त पुरुष भी है इसी श्रेणी की प्रतिमाय़े कालिजर दुर्ग से तथा जनपद मिर्जापुर के पम्पासुर से प्राप्त होती है विद्वानो ने इनका समीकरण प्रायः चन्देल अथवा उनके पूर्ववर्ती भरों से किया है मन्दिर से प्राप्त लिपि पूर्व मध्यकालीन  है मन्दिर स्थापत्य एवं मूर्ति भरों से किया है। मंदिर से प्राप्त लिपि पूर्व मध्य कालीन है मंदिर स्थापत्य एवं मूर्ति शिल्प निश्चय ही पूर्व मध्य कालीन है।

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फिरोजशाह तुगलक मूर्ति भंजक था ऐसे में उसका एक छोटा सा करद राजा जो माल कुछ समय के लिये ही कलिंजर दुर्ग का हाकिम बना मुसलमानों की विजय के प्रतीक रहें सोमनाथ मंदिर की अनुकृति कैसे बनवा सकता था। चर के सोमनाथ मंदिर की प्रतिमाओं के सूक्ष्म अवलोकन से प्रतीत होता है कि इनका श्रमिक विकास हुआ है एवं कलापूर्ण मंदिर के निर्माण तथा मूर्तियों के तक्षण में अनेक वर्ष लगा होगा जो 14 वीं सदी के घोर मुस्लिम काल में संभव नहीं है इस काल में प्राचीन शैली की स्थापत्य व प्रतिमा शैली का लोप हो गया था।

इस प्रसंग में अन्तिम  आपत्ति यह है कि इस सम्पूर्ण क्षेत्र से खासकर कालिंजर दुर्ग से जहाँ  कीर्ति सिंह कुछ काल तक हाकिम रहा कोई भी निर्माण अथवा लेख प्राप्त नहीं होता जिस पर मिथिला या तिरहुत के राजा कीर्ति सिंह का नाम अंकित हो। प्रश्न उठता है कि यदि चर के सोमनाथ का निर्माण न तो वघेल शासकों ने कराया और न ही ओंवार वंशी मिथिला नरेश किर्ति सिंह ने  तो फिर इसका निर्माण कब व किसने कराया। 

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अनेक साक्ष्यों के आधार पर लेखक का मत है कि चर के सोमनाथ मंदिर का निर्माण चन्देल शासक कीर्ति देव ने कराया था। वाल्मीकि नदी के तट पर स्थित इस पहाड़ी पर सर्व प्रथम भर राजाओं ने अपना पूजा स्थल बनाया। भर. राजभर साम्राज्य में पृष्ठ 309 पर लेखक एम0वी0 राजभर ने लिखा है। 

सन 836 से 953 तक कालिंजर बरार प्रान्त के भरों के अधिकार में था। चन्देलों ने सन 953 में कालिंजर पर कब्जा किया। अर्थात 117 साल तक कालिंजर व आस.पास का इलाका भर राजाओं के कब्जे में था। इसी समय गहोरा बरकोट; या भरकोटद्ध आदि का निर्माण कार्य हुआ होगा। चर के सोमनाथ से प्राप्त दाढ़ी युक्त पुरूष प्रतिमाए कंधे पर शिवलिंग धारण किये भारशिव की प्रतिमाए चामुण्डा व भैरव की प्रतिमाए राक्षसों की प्रतिमा का निर्माण इसी समय हुआ होगा। कालिंजर दुर्ग की अनेक मूर्तियां भी भरों के काल की जान पड़ती है। इस क्षेत्र में भरों का अधिकार अकबर के समय तक था। इसका पता अकबर द्वारा जारी राजज्ञा से चलता है। 

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सन् 953 में चन्देलों  ने भरों से सत्ता हस्तगत की। चन्देल शासक विधाधर के समय में महमूद गजनवी ने सन 1025.26 में सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को ध्वस्त किया था। विधाधर अपने वंश का 9 वां शासक था। उसका पुत्र विजयपाल देव तथा पौत्र देववर्मा हुआ। विधाधर का प्रपौत्र कीर्ति देव वर्मा था जिसने सन् 1063 से 1097 तक कुल 34 साल शासन किया। सत्यकेतु विधालंकार ने अपने ग्रन्थ भारतीय इतिहास का पूर्व.मध्य युग के पृ0 191 पर लिखा है अब चन्देल राजा की स्थिति कलपुरियों के समान रह गयी। पर यह दुर्दशा देर तक नहीं रही। किर्ति बर्मा के एक सामन्त राजा गोपाल ने कल्पुरी कर्क के विरूद्ध युद्ध कर अपने स्वामी को उसकी अधीनता से मुक्त किया। कीर्तिवर्मा को गजनवी तुर्कों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। उसके समय में तुर्क सुल्तान की ओर से पंजाब का शासन करने के लिए महमूद नियुक्त था।

जो उत्रापथ को आक्रान्त करता हुआ कालिंजर तक चला आया था। पर वह दुर्ग को जीत सकने में असमर्थ था। उसे कीर्ति वर्मा द्वारा परास्त किया गया। इसी प्रकार कीर्ति वर्मा का वर्णन करते हुए कलिंघम ने अपनी रिर्पोट खण्ड.21द्ध पृ0 80 पर लिखा। कीर्तिवर्मा का नाम अनेक टूटे हुए अभिलेखों पर मिलता है वह चन्देल शासकों में अत्यन्त ताकतवर था। उसका राज्य देवगढ़ व ललितपुर तक था। उसके नाम से युक्त स्वर्ण मुद्रायें भी मिलती हैं। महोबा का कीरत सागर उसी के द्वारा बनवाया गया था। वह मालवा के भोजए गुजरात के सोंलकी राजा भीमदेव डाहल के कल्पुरी राजा कर्ण का समकालीन था। इसी तरह आर्वियो लाजिकल सर्वे रिपोर्ट खण्ड.18 पृ0 134 पर डा0 स्मिथ ने लिखा है चन्देल राजा कीर्ति सिंह वर्मन ने कालिंजर दुर्ग में अनेक भवनों का निर्माण कराया।

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सत्यकेतु के अनुसार ;पृ0190द्ध महमूद गजनवी के आक्रमणों के कारण उत्तरी भारत के अनेक राजपूत राज्यों की शक्ति को बड़ा आघात लगा। लेकिन उसके हमलों से बन्देलखण्ड के चन्देल राज्य पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। महमूद के पश्चात चन्देल राज्य को अपने उत्कर्ष का स्वर्गीय अवसर प्राप्त हो गया। भारत के मध्य क्षेत्र में मालवा के परमार व त्रिपुरी के कल्पुरियों के साथ जेजाल मुक्ति के चन्देलों ने खूब उन्नति व राज्य विस्तार किया । कनिंघम की रिर्पोट से ज्ञात होता है कि कालिंजर का प्रसिद्ध दुर्ग 800 ई0 से 1203 तक अर्थात कुल चार सदियों तक चन्देल राजाओं के हाथ रहा। इस दौरान महोबा को राजधानी बनाकर पूरे क्षेत्र में काफी निर्माण किया। अन्हिलवाड़ा का सोमनाथ मंदिर हिन्दू आस्था का प्रतीक था।

इसके पतन ने पूरे भारत के हिन्दू शासकों की चेतना पर गहरा प्रभाव डाला । मंदिर के धराशायी किये जाने के साढ़े तीन दशक बाद तत्कालीन चन्देल शासक ने बाल्मीकि नदी के तट पर चर गांव की इस पहाड़ी पर भर शासकों के देवालय के पास श्री सोमनाथ के नाम से उसी शैली के शिवमंदिर का निर्माण कराया। कीर्ति वर्मा के पौत्र जयदेव वर्मा ने वर्तमान सीतापुर की नींव डाली। कलिंघम रिपोर्ट के अनुसार इस स्थान का प्रचीन नाम जयसिंहपुर था। 19 वीं सदी के प्रारम्भ में चरनदास ने इसका नाम बदल कर सीतापुर कर दिया। जयसिंह का प्रपौत्र तथा 17 वां चन्देल शासक मदन देव वर्मा 1129.1165 था। चर के पास वर्तमान मदना में उसके समय निर्माण कार्य हुआ इसी तरह 25 वें चन्देल शासक परमार्दि देव द्वतीय का एक अभिलेख ;23 मार्च 1404 का युद्ध रसिन से मिला है। कर्वी बांदा मार्ग पर कर्वी से 13 मील दूर गोण्डा गाँव में चन्देली मंदिरों का जोड़ा है।

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27 अप्रैल 1203 को कुतुवुद्दीन ऐवक न  कालिंजर का दुर्ग जीत लिया। वहां के मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद बनवा दिया । सन् 1233 में इल्तुतमिश के सेनापति नुसरूवुद्दीन वयासी ने कालिंजर व आस.पास के क्षेत्रों को बुरी तरह लूटा। चर के सोमनाथ मंदिर के बारे में धारणा थी कि चन्देल शासकों ने इसमें अपना खजाना गुप्त रूप से छुपा रखा है। अतः खजाने के लालच में हमला बारों ने चर के सोमनाथ मंदिर को तेहरवीं सदी में ढहा दिया। 11 वीं सदी के चतुर्थांश में चन्देल राजा कीर्तिवर्मा द्वारा निर्मित यह मंदिर पौने दो सौ साल खड़ा रहा। कीर्ति वर्मा के वंशजों ने यहां अन्य लघु मंदिर बनवाये। 13 वीं सदी के प्रथम चरण में कुतुबुद्दीन ऐबक व नुसरूवुद्दीन तयासी ने धन के लालच में इसे गिरा दिया। पौने आठ सौ साल से यह गिरा पड़ा है।

इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि चर गांव का सोमनाथ मंदिर 12 वें चन्देल शासक कीर्ति देव के द्वारा 1063 के बाद किसी वर्ष में बनवाया गया। सन् 1203 से 1233 के मध्य इसे ध्वस्त किया गया। संभव है कि फीरोज शाह के कारण ओंवार वंशी राजा कीर्ति सिहं ने इसको जीर्णोद्धार का 14 वीं सदी में प्रयत्न किया हो तथा मंदिर के मुख्य द्वार पर इसी समय अपने नाम का शिला पट्ट लगवा दिया है। यह स्थान आस्था का प्रतीक है। लोगों की मान्यता है यहां समस्त मन्नतें पूरी होती हैं तता कष्टों का निवारण होता है। महाशिवरात्रि में यहां मेला लगता है सन् 1982 में अनेक ग्रामीणों के सहयोग से चर निवासी श्री रामसुख पाण्डेय ने धर्मशाला का निर्माण कराया आगे उनके पुत्र श्री गिरीश पाण्डेय ने 3 हाल तथा सीढीयों का निर्माण कराया 2007.2008 में तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष ने एक कि0मी रोड का निर्माण कराया।

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सन् 2013&14 में तत्कालीन जिलाधिकारी श्री बलकार सिंह ने दो कि0मी0 रोड का निर्माण कराया। किन्तु पुरातत्व विभाग एवं प्रशासन के स्तर पर भर.चन्देल कालीन इस नायाव भग्नावशेष के संरक्षण के लिये जितने सहयोग की अपेक्षा थी उससे यह वंछित है। मूर्तियां खुले में अरक्षित पड़ी है तथा समय.समय पर चोरी होती रही है। पुरात्व विभाग को तत्काल इसे अपने संरक्षण में लेना चाहिए। स्थानीय प्रशासन द्वारा इसकी सुरक्षा व संवर्धन की व्यवस्था कर पर्यटन  स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।

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