बाँदा में हिन्दू आस्था के केन्द्र बामदेवेश्वर पहाड़ पर आखिर कब बनी यह मस्जिद ?

जनउपयोगी तालाब, कुएं और पहाड़ों में अवैध कब्जे हटाने के शासन के निर्देश के बावजूद बांदा के प्रसिद्ध महर्षि वामदेव की तपोस्थली बामदेवेश्वर पर्वत के चारों तरफ अवैध कब्जे के कारण ऊंचे-ऊंचे मकान बन गए हैं ...

Aug 14, 2020 - 13:31
Aug 14, 2020 - 20:13
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बाँदा में हिन्दू आस्था के केन्द्र बामदेवेश्वर पहाड़ पर आखिर कब बनी यह मस्जिद ?
बामदेवेश्वर पहाड़ पर आखिर कब बनी यह मस्जिद ?

शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते ही अब पर्वत के नीचे मस्जिदों का निर्माण करवा इबादतरगाह की आड़ में अवैध कब्जों की गति तेज हो गई है। इन्हीं अवैध कब्जों से शहर का माहौल बिगाड़ने की तैयारी चल रही है।

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जनपद मुख्यालय में प्राचीन बामदेवेश्वर पर्वत स्थित है। इसी पहाड़ की गुफाओं में बैठकर महर्षि वामदेव ऋषि ने तपस्या की थी और वामदेव ऋषि के कारण ही इस शहर का नाम बाँदा पड़ा। एक समय पहले इस पहाड़ के चारों ओर कोई मकानात नहीं थे। सिर्फ मन्दिर के प्रवेश द्वार के आसपास मकान इत्यादि थे। पर धीरे-धीरे इस पहाड़ के चारों ओर सभी दिशाओं में लोगों की नजर लगी और इस पहाड़ में लगे लाखों पेड़ों को काट-काट कर पहाड़ को वनविहीन बना दिया गया।

इसके बाद तो पहाड़ के नीचे अवैध कब्जों की भरमार हो गई। लोगों ने पहले कच्चे मकान बनाए और अब पक्के मकान बन कर तैयार हो गए। कब्जा करने की यही रणनीति बरसों से अपनाई जा रही है। पहाड़ के नीचे धीरे-धीरे बस्तियां गुलजार हो गई। किसी जगह पहाड़ तले बस्ती, कहीं केवटरा पहाड़ तले और कहीं खुटला पहाड़ तले नाम से बस्तियां तैयार हो गई। इतना ही नहीं कुछ लोगों ने अपनी दबंगई से पहाड़ की जमीन को बेचना भी शुरू कर दिया और रातों-रात लखपति फिर करोड़पति बन गए। इनसे किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं जुटाई की आखिर सरकारी संपत्ति वह क्यों बेच रहे हैं और किसकी अनुमति से बेच रहे हैं।

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अवैध कब्जों का सिलसिला अभी भी थम नहीं रहा है। कुछ दिन पहले छाबी तालाब की ओर पहाड़ के नीचे मस्जिद का निर्माण भी कराया गया है। इन मस्जिदों में बाकायदा नमाज भी शुरु हो गई है और यहां ऐसे तत्वों को शरण मिल रही है, जिनके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं रहती। अक्सर यह तत्व रात के अंधेरे में आते हैं और सुबह होते ही चले जाते हैं। सरकारी जमीन पर अनधिकृत रूप से मस्जिद का निर्माण करने वाले व्यक्तियों से भी शासन-प्रशासन के द्वारा कोई पूछताछ नहीं की गई।

यह सर्वविदित है कि बामदेवेश्वर पर्वत हिंदू आस्था का केंद्र है। क्योंकि इसी पर्वत में भगवान भोलेनाथ का मन्दिर है। यही पर्वत वामदेव ऋषि की तपोभूमि भी है। पर्वत के शिखर पर भगवान बजरंगबली का एक सिद्ध मन्दिर भी है। यहां जिसने भी इच्छा करके धागा बांधा, उसकी इच्छा बजरंगबली पूरी करते हैं, इसी आस्था के कारण इसका नाम सिद्धन पड़ गया। यह एक सिद्ध धार्मिक स्थल है। इसी पहाड़ में बाबा के अखाड़े में कुछ मंदिर बने हैं, जहां पहले साधु-संत रहते थे।

वहीं दूसरी तरफ खुटला में भी पहाड़ के नीचे एक देवी मन्दिर है। हिंदू धार्मिक स्थलों के आसपास मस्जिद का निर्माण होने से कभी भी विवाद हो सकता है। क्योंकि इन्हीं विवादों की वजह से काशी, मथुरा और अयोध्या भी घिरे थे। कारण वही था, कि मन्दिर के स्थान पर या फिर मन्दिर के बगल में मस्जिद का निर्माण करा लिया गया था। इसीलिए आज तक वो स्थल विवादित हैं।

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भगवान राम की जन्मभूमि का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट में चली लम्बी प्रक्रिया के कारण हो गया पर काशी और मथुरा में भी इसके बाद विरोध के स्वर प्रबल होने लगे हैं। कहीं वो स्थिति यहां पर भी न आये इसलिए प्रशासन को चाहिए कि पहाड़ के आसपास से अतिक्रमण हटाया जाए अन्यथा विरोध के स्वर उठे तो स्थिति विस्फोटक हो जाएगी।

किसने बेच दी पहाड़ की जमीनें
पहाड़ तो वैसे भी सरकारी सम्पत्ति हुआ करता है। नदी, नाले, झील, तालाब, पहाड़ इत्यादि को कोई भी बेच नहीं सकता, ये सरकार की सम्पत्ति हुआ करती है। इस पर कोई अपना हक भी नहीं जता सकता। तो फिर पहाड़ पर इतने मकान कैसे बने? क्या प्रशासन आंख मूंदकर सो रहा था? इतना ही नहीं, जब देखा कि कोई भी विरोध का स्वर नहीं है तो कुछ शरारती तत्वों ने यहां पर मस्जिद का निर्माण भी कर लिया। एक मस्जिद खुटला की तरफ बनी तो दूसरी छाबी तालाब की ओर। अब एक और मस्जिद बनने की तैयारी चल रही है।

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दलित महिला को अंधविश्वास से डराकर हथियाई जमीन
इस मस्जिद का निर्माण जिस जगह पर किया गया है, वह जगह एक अनुसूचित जाति की महिला सिमिया देवी की है। सिमिया ने बुन्देलखण्ड न्यूज को बताया कि 2 साल पहले कुछ मुसलमान आये थे और कहने लगे कि यहां पर मुर्दा है, इस पर मजार बनानी है। पहले तो सिमिया देवी ने मना किया पर उन लोगों ने उसे अंधविश्वास में डराते हुए कहा कि यदि यहां मजार नहीं बनी तो तुम्हारा लड़का मर जायेगा। इस पर वह गरीब दलित महिला सिमिया देवी डर गयी और उसने उन्हें इजाजत दे दी। पर उसे तब बहुत बुरा लगा कि मजार बनाने के लिए 4 फिट लम्बी जगह की बजाये उन लोगों ने काफी बड़ी जगह पर मस्जिद का निर्माण करना शुरू कर दिया।

सिमिया देवी ने लगातार विरोध किया पर उसकी आवाज पहाड़ से नीचे नहीं आई। लिहाजा वो मस्जिद आज हिन्दू आस्था के केन्द्र वामदेवेश्वर पर्वत पर सिमिया देवी को धोखा देकर पूरी शान से खड़ी अट्टहास कर रही है।

सिमिया देवी बताती हैं कि कभी कभी कोई यहां आता है, कोरोना के कारण यहां काफी समय से नमाज पढ़ने कोई नहीं आया जबकि लाॅकडाउन के पहले आते थे। मोहल्ले वाले सिमिया देवी के इस दुख में उसका साथ नहीं देते तो वह डर जाती है। सिमिया देवी दुखी हैं, एक तो उनकी जमीन पर कुछ शरारती तत्वों ने मस्जिद बना ली उस पर उन्हें धोखा भी दिया। सिमिया कहती हैं कि गरीब का कोई नहीं, सब लोग पैसे वालों की ही बात सुनते हैं। कहती हैं, "मजार बनाने के नाम पर धोखे से जमीन मांगी थी, पर ताजमहल बना डाला"।

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दरअसल छाबी तालाब के आसपास अभी भी बड़ी संख्या में गरीब और कम पढ़े-लिखे परिवार रहा करते हैं, उनकी इसी मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें धर्म की आड़ में धमकाया गया जिससे उन्होंने भी मुंह बंद रखने में अपनी भलाई समझी और वो चुप रहे। पर सवाल ये है कि क्या किसी को भी ये अवैध निर्माण नहीं दिखा?

बुन्देलखण्ड न्यूज से हुई बातचीत में विश्व हिन्दू परिषद के जिलाध्यक्ष चन्द्रमोहन वेदी तो कहते हैं, "प्रशासन से मिलकर इस बावत बात करेंगे, क्योंकि अवैध रूप से मस्जिद बनाना गलत है, यदि यह निर्माण नियमतः नहीं किया गया है तो इस पर कार्यवाही होनी चाहिये। जो दोषी हैं उन पर भी उचित कार्यवाही होनी चाहिये।"

वहीं विश्व हिन्दू परिषद के नगर अध्यक्ष महेन्द्र चौहान कहते हैें, "इस पर्वत पर कभी भी कोई मस्जिद नहीं रही, यह हिन्दू आस्था का केन्द्र है, फिर भी यहां मस्जिद बनाया जाना इस ओर इशारा करता है कि कुछ लोग शान्तिपूर्वक नहीं रहना चाहते। प्रशासन इस ओर कदम उठाये अन्यथा हमारा संगठन ऐसे किसी भी अवैध कब्जे को स्वतः हटाने पर मजबूर होगा।"

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