डिग्री कालेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाला ये प्रवक्ता अब गली कूचे में क्यों बेच रहा सब्जी
कोरोना संक्रमण काल में आर्थिक संकट का सामना कर रहे महाविद्यालय के एक प्रवक्ता ने अब साइकिल से फेरी लगाकर सब्जी बेचने को मजबूर है...
- परिवार के भरण पोषण के लिये पुरानी साइकिल से सब्जी बेचने को पूरे शहर में लगाता है फेरी
स्नातक के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला ये प्रवक्ता सब्जी भी बड़े ही उत्साह के साथ गली कूचों में बेचता है। उसका कहना है कि मेहनत की कमाई से जो सुख मिलता है उसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है।
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- स्नातक के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले प्रवक्ता के सब्जी बेचने के जज्बे को देख हर कोई कर रहा सलाम
हमीरपुर शहर के अमन शहीद मुहाल निवासी बादशाह सिंह दो बच्चों का पिता है। ये स्वासा गांव के मूल निवासी है जो चालीस सालों से यहां शहर में रह रहे है। एमएम करने के बाद बीएड भी किया लेकिन सरकारी नौकरी उसे नहीं मिल सकी। बेरोजगारी की पीड़ा से आहत बादशाह सिंह ने सुमेरपुर क्षेत्र के एक प्राइवेट महाविद्यालय में अंग्रेजी विषय पढ़ाने के लिये प्रवक्ता के पद पर नौकरी शुरू की। ये पिछल कई सालों से महाविद्यालय में विद्यार्थियों को अंग्रेजी पढ़ा रहे थे। उसे अच्छी पगार भी मिलती थी।
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लेकिन कोरोना संक्रमण काल में स्कूल कालेज बंद चलने से ये प्रवक्ता घर में ही कैद हो गया। परिवार के भरण पोषण के लिये उसके सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इसीलिये इसने अपनी पुरानी साइकिल में बड़े-बड़े थैले में सब्जी रखकर शहर के हर गली कूचों में बेचने का फैसला किया। सुबह से लेकर दोपहर तक ये शहर में घर-घर पहुंचकर सब्जी बेचता था। लोग इससे सब्जी भी खरीदते है।
डोर-टू-डोर सब्जी बेचने से घर में आयी खुशहाली
महाविद्यालय के अंग्रेजी विषय के प्रवक्ता बादशाह सिंह ने बताया कि डोर-टू-डोर सब्जी बेचने से घर की गाड़ी चलती है। महीने में कम से कम आठ हजार की आमदनी हो जाती है। ये एक पुत्र और एक पुत्री का पिता है। दोनों बच्चे छोटे है। उसका कहना है कि कोरोना संक्रमण काल में महाविद्यालय से पगार भी नहीं मिल रही है। स्कूल और कालेज बंद चलने के कारण विद्यार्थी भी पढऩे के लिये घर से बाहर नहीं निकल रहे है। इसीलिये परिवार को पालने के लिये यही रास्ता दिखा। सब्जी के धंधे से हर रोज आमदनी होने से घर में खुशहाली लौटी है।
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भूमिहीन परिवार ने कभी भी नहीं ली सरकारी सुविधायें
महाविद्यालय के प्रवक्ता बादशाह सिंह ने बताया कि वह पूरी तरह से भूमिहीन है। सिर्फ शहर में खुद का मकान है। इसके भाई और पारिवारिक सदस्य गांव में ही रहते है। इसके पास राशन कार्ड है लेकिन आज तक सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं लिया। इनका कहना है कि सरकारी सुविधा का लाभ लेने के बजाय खुद का व्यवसाय करना ठीक है। जीवन में अभी तक एक भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लिया गया है। सब्जी बेचने के अलावा वह दो बच्चों को अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ाता है जिसमें उसे हर माह चार हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।
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हिन्दुस्थान समाचार