सपा में उठा-पटक से नतीजा फिर से बदला, मोहन बजायेंगे बंसी
बांदा नगर पालिका चेयरमैन के लिए समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से टिकट बदलकर स्वघोषित...
बांदा नगर पालिका चेयरमैन के लिए समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से टिकट बदलकर स्वघोषित बर्खास्त चेयरमैन मोहन साहू की धर्मपत्नी गीता देवी को देकर यहां की राजनीति के समीकरण बिगाड़ दिये हैं। पहले गीता देवी फिर रूचि त्रिपाठी और अब फिर से गीता देवी की प्रत्याशिता पर मुहर लगने वाली है। सूत्रों के मुताबिक आज दोपहर में पार्टी कार्यालय से इस बात की घोषणा की जायेगी।
वो सपा ही क्या, जिसमें अंतिम दौर तक उठा-पटक न चले। अपने समय में धरतीपुत्र और नेता जी के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के समय तक सपा में जब टिकट फाइनल हो जाता था, तो वो विषम परिस्थितियों में ही बदला जाता था। पर इधर जब से सपा की बागडोर टीपू ने संभाली है, तब से उठा-पटक का दौर शुरू हो गया है। बार-बार प्रत्याशी बदलना और पारिवारिक वाद-विवाद समाजवादी पार्टी की पहचान बन चुकी है। और उसी कड़ी को संजोते हुए एक बार फिर बांदा नगर पालिका में अध्यक्ष पद के लिए टिकट को बदल दिया गया।
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कहते हैं कि हिम्मत न हारने वाला ही बाजीगर कहलाता है। और इसी को साबित किया है मोहन साहू ने। पूरे पांच साल सपा से बांदा नगर पालिका परिषद का अध्यक्ष चुने जाने के बाद संघर्ष करते रहने का नाम बन गये हैं मोहन साहू। काम किया हो चाहे न किया हो परन्तु अपने काम का डंका सोशल मीडिया में पीटते-पीटते मोहन साहू ने नगर पालिका परिषद में एक जुझारू नेता की छवि बनाई।
पूरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार और जातिवादी राजनीति के दलदल में फंसकर बदनामी झेलने वाले मोहन साहू की इसी छवि को शायद अखिलेश यादव ने पहचाना और उन्हें दोबारा इसी सीट पर किस्मत आजमाने का मौका सौंपा। पर उधर सपा की राजनीति में उदीयमान ब्राह्मण चेहरे के रूप में बाकियों को दरकिनार कर अपने कद को और बड़ा करते हुए विदित नारायण त्रिपाठी ने मोहन साहू को पटखनी देते हुए टिकट हथिया लिया और कल गाजे-बाजे के साथ पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के साथ अपनी पत्नी रूचि त्रिपाठी का नामांकन भी दाखिल करा दिया। हालांकि इसके पहले नामांकन तो मोहन साहू ने भी अपनी पत्नी गीता साहू का करा दिया था।
लेकिन आज सुबह होते होते एक बार फिर से चर्चा थी, मोहन साहू के जुझारूपन की। जिसे साबित होने के लिए कुछ ही घंटे शेष हैं। पर मोहन साहू ने स्वयं ही इस चर्चा को सही बताते हुए अपनी प्रत्याशिता एक बार फिर से ठोंक दी है। बेहद आत्मविश्वास से लबरेज मोहन साहू के मैदान में आने से राजनीतिक गणित गड़बड़ाई है। लेकिन फिर भी आगे विश्लेषण का विषय है कि इस उठा-पटक से आखिरकार लाभ किसे होगा और किसकी झोली में जायेगी ये सीट?
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