लोकगीत जीवंत थे, हैं और रहेंगे : मालिनी अवस्थी

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती के अवसर पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में एक शाम पद्मश्री मालिनी अवस्थी के नाम साेमवार की देर शाम कार्यक्रम का आयाेजन किया गया...

Aug 5, 2025 - 13:53
Aug 5, 2025 - 13:57
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लोकगीत जीवंत थे, हैं और रहेंगे : मालिनी अवस्थी

लाेक गायिका ने कहा, आल्हा गायन, लोकगीत और लोक कलाकारों पर शोध करें विद्यार्थी

झांसी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती के अवसर पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में एक शाम पद्मश्री मालिनी अवस्थी के नाम साेमवार की देर शाम कार्यक्रम का आयाेजन किया गया। कार्यक्रम में लोककला पर आधारित उनकी पुस्तक चन्दन किवाड़ पर विस्तृत चर्चा हुई। मालिनी अवस्थी ने इस दाैरान लोक कला, लोक संगीत, लोक परंपरा पर विस्तृत चर्चा की।

उन्होंने कहा कि लोक गीत आज भी युवाओं के बीच प्रासंगिक है। उन्होंने अपनी पुस्तक चन्दन किवाड़ के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए लोकगीत और शास्त्रीय गीत की विभिन्न विधाओं पर बातचीत की। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में बुन्देलखंड के आल्हा गायन और लोकगीत को सम्मिलित किया जाए। लोक कला को विद्यार्थियों और युवाओं के बीच पहुंचाइये।

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बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने मालिनी अवस्थी का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय उनको अपने बीच पाकर धन्य है। उनका बुंदेलखंड और झांसी से खास नाता रहा है। लोकगीतों को जन-जन तक पहुंचने में उन्होंने जो योगदान दिया वह अतुलनीय है। उनके गीत हर आयु वर्ग में समान रूप से सुने और प्रेरित किए जाते हैं। हिंदी विभाग की ओर से मालिनी अवस्थी का भव्य स्वागत किया गया। मंच पर मालिनी अवस्थी के साथ वार्ता शोधार्थी शाश्वत सिंह ने की।

इससे पूर्व हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज तथा हिंदी विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. उमेश कुमार सिंह, पूर्व अध्यक्ष, साहित्य अकादमी, भोपाल, मध्य प्रदेश ने कहा कि भारत ज्ञान में डूबा हुआ है और विश्व के कल्याण का केंद्र है। ईशावास्योपनिषद में भी इसकी चर्चा की गई है। दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डॉ. शंभूनाथ मिश्रा ने बुंदेलखंड के साहित्य और सांस्कृतिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला और कहा कि भारतीय समाज प्राचीन काल से ज्ञान का उपासक रहा है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के ही डॉ. गोपेश्वर दत्त पांडेय ने नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को समाहित करने के महत्व पर जोर दिया। लखनऊ विश्वविद्यालय से आईं प्रो. श्रुति ने बुंदेलखंड के साहित्यकारों के योगदान पर चर्चा की। उन्हाेंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा विस्तृत है और श्रुतियों, संहिताओं, परंपराओं और संस्कृति को संजोए हुए है। संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व और इसके संरक्षण के प्रयासों पर चर्चा की गई। सत्र का आभार डॉ विपिन प्रसाद ने किया।

द्वितीय व तृतीय सत्र में प्रो. आर. पी. सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति में ज्ञान व प्रज्ञा दोनों शब्दों का महत्व है। भोजपुरी संस्कृति में विवाह के समय में होने वाले संस्कारों में प्रकृति प्रेम दिखाई देता है। यूरोपीय संस्कृति शैतानी संस्कृति है जिसमें दया का अभाव है, पूरी दुनिया के संसाधनों पर कब्जा करने की प्रवृत्ति है।

प्रो. नवेंद्र सिंह के अनुसार मैथिलीशरण गुप्त जी ने भगवान राम को मानव के रूप में चित्रित किया केवल ईश्वर के रूप में नहीं उन्होंने अपने वक्तव्य में शोधार्थियों व विद्यार्थियों से अपील की की किसी एक विमर्श से ना बधे बल्कि साहित्य को अपने अध्ययन के केंद्र में रखें जब भी अपना शोध कार्य करें अपनी दृष्टि खुली रखें अपनी सूझबूझ व विवेक का इस्तेमाल करें।

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डॉ. विनोद कुमार द्विवेदी ने यह समझाने का प्रयास किया कि भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता क्या है? भारतीय ज्ञान परंपरा प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित रही जो वेद उपनिषद और पुराण आदि के रूप में थी। जिस योग की चर्चा आज व्यापक रूप में हो रही है उसका मूल भारतीय दर्शन में ही है। आयुर्वेद का मूल भी भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित है।

प्रो. सत्येंद्र कुमार दुबे ने कहा कि वर्षों की गुलामी ने भारतीयों में आत्महीनता की भावना उत्पन्न कर दी है जिसका समाधान है भारतीय ज्ञान परंपरा। इसे जानने के लिए हमें भारतीय अज्ञान परंपरा को भी जानना होगा। तात्पर्य वर्षों की गुलामी के बाद भारतीयों में आत्महीनता की भावना घर कर गई है। व्यंग्यात्मक शैली में उन्होंने कहा हर आदमी प्रश्न लिए घूम रहा है तो वह आधुनिक है और हर आदमी जो उत्तर लिए घूम रहा है उत्तर आधुनिक है।

प्रोफेसर सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त उसी प्रकार से आधुनिक काल में है जैसे मध्यकाल में तुलसीदास जी हैं। चेतना की गुलामी को दूर करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त थे। भारत को सांप सपेरों का देश, गाय का देश पश्चिम ने घोषित किया। भारत आध्यात्मिक देश है। भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार एकोहम बहुष्यामः अर्थात भारतीय ज्ञान परंपरा अनेक रूप में उपस्थित है।

हिन्दुस्थान समाचार

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