चन्द्रयान -3 विक्रम की हठ बुन्देली में
मोय जानेंं मम्मा के पास ...
मोय जानेंं मम्मा के पास
मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
धरती मताई नें ऐंनईं समझाऔ,
लल्ला जिन जाओ हम हैंई से दिखात।
थरिया में पानूं भरकें खूबईं बहलाव ,
तनक भओ सांत पै,फिरकऊं मचल जात।
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
उन्नईस में जाकें,तनक भटक हतौ गओ ,
तबईं सें मिलजुल कें जुगाड़े फिट कर रओ।
दिल्ली में जाकें मिलौ , मोदी चौकीदार सें,
उन्नें खूब दिलासा दई, मूड़ पै हाथ फेरौ।
भारत जा दुनिया कौ है सरताज,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
फिर का कइये, ईनें तो सब रोरा जुटा लओ ,
इसरो की बड्डी टीम से बतकाव कर रओ।
दक्षिणी ध्रुव खों छूबे की कोशिश करन लगौ,
दो हजार चार में कलाम साब नें देखौ तौ सपनों।
सपनों सच करकें बढ़ाई भारत की शान
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
तेईस तारीख खों पौंच कें,कैसौ मटक रओ,
अम्मा की राखी दै कें, मिठाई ख्वा रओ।
चंदा मम्मा ने विक्रम खों भरलव अंकवार,
तिरंगा फहराकें दुनिया में पै ली बार।
इंतजार भओ खत्म बड़ी देश की शान।
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
मचल रओ है विक्रम, कर रओ खूबईं प्रयास,
कै रओ कै जानें मोय मम्मा के पास।
प्रोफेसर डॉ सरोज गुप्ता
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
पं दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय
सागर, म प्र
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